बिहार : मधुबनी सीट पर कब्जा करने की मारामारी

बिहार : मधुबनी सीट पर कब्जा करने की मारामारी

मधुबनी | बिहार में मधुबनी की मीठी बोली और पेंटिंग की अपनी खास पहचान है। यहां की कला ने न सिर्फ देश में, बल्कि विदेश में भी शोहरत पाई है, लेकिन मौजूदा समय में मधुबनी की चर्चा यहां की लोकसभा सीट पर कब्जे को लेकर है।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और वामपंथियों के लिए गढ़ माने जाने वाले मधुबनी क्षेत्र में इन दोनों दलों के उम्मीदवार नहीं हैं। इस महत्वपूर्ण सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुकाबले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (युनाइटेड) के प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।
मधुबनी संसदीय क्षेत्र में हरलाखी, बेनीपट्टी, बिस्फी और मधुबनी विधानसभा तथा दरभंगा जिले के केवटी और जाले विधानसभा शामिल हैं। वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव ने राजद के अब्दुलबारी सिद्दीकी को पराजित किया था, जबकि कांग्रेस के शकील अहमद को तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा था। इससे पहले वर्ष 2004 के चुनाव में कांग्रेस के शकील अहमद ने भाजपा के हुकुमदेव को 87,079 मतों से पराजित किया था।
इस चुनाव में यह पहला मौका है जब कांग्रेस ने यहां से अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है तथा वह राजद को समर्थन दे रही है। मधुबनी कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है। कांग्रेस के प्रत्याशी ने यहां छह बार जीत दर्ज की है, जबकि वामपंथियों के कब्जे में भी यह सीट पांच बार रही है।
16वीं लोकसभा चुनाव मेंराजद ने एक बार फिर अब्दुलबारी सिद्दीकी को चुनाव मैदान में उतारा है, वहीं भाजपा ने अपने निवर्तमान सांसद हुकुमदेव नारायण पर भरोसा जताया है। उधर, जद (यू) ने राजद से आए गुलाम गौस को 'तीर' थमा चुनावी अखाड़े में उतार दिया है।
इस चुनाव में दलों के उम्मीदवारों पर गौर किया जाए तो हुकुमदेव जहां भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की लहर के साथ अपनी लड़ाई जीत लेने का दावा कर रहे हैं, वहीं सिद्दीकी पिछली हार का बदला लेने के लिए कांग्रेस के 'हाथ' के साथ पर यकीन कर रहे हैं। उधर, जद (यू) के गौस के पास न केवल बिहार के मुख्यमंत्री के सुशासन का साथ है, बल्कि मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का साथ होने का विश्वास भी है।
इस चुनाव में वैसे कुल 11 उम्मीदवार चुनावी मैदान में अपने भाग्य आजमा रहे हैं, परंतु मुख्य मुकाबला राजद, जद (यु) और भाजपा के बीच माना जा रहा है। 16 लाख से अधिक मतदाताओं वाले इस संसदीय क्षेत्र के जातीय समीकरण पर गौर किया जाए तो ब्राह्मण, मुस्लिम और यादव बहुल वाले इस क्षेत्र में किसी भी प्रत्याशी की जीत के लिए इन जातियों के मतदाताओं की अहम भूमिका होती है। वैसे इस क्षेत्र में मुख्य राजनीतिक दलों द्वारा कोई ब्राह्मण जाति के प्रत्याशी को नहीं उतारे जाने पर यह देखने वाली बात होगी कि ब्राह्मण मतदाताओं का झुकाव किस प्रत्याशी की ओर होगा।
वैसे सभी दल इस सीट को अपने कब्जे में करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। भाजपा के प्रत्याशी को लोकसभा के अंतर्गत आने वाली चार विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा मजबूती दे रहा है। यही कारण है कि केवटी के विधायक और हुकूदेव के पुत्र अशोक यादव भी आईएएनएस से कहते हैं कि मोदी की लहर और पूर्व सांसद द्वारा किए गए कार्य भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वह कहते हैं कि मधुबनी में सभी जाति वर्ग का साथ भाजपा को मिल रहा है।
उधर, सिद्दीकी भी अपनी जीत का दावा करते हैं। वह सिर्फ राजद और भाजपा के बीच ही मुख्य मुकाबला देखते हैं।
बहरहाल, सभी प्रत्याशी अपने विश्वास को लेकर कुलांचे भर रहे हैं, परंतु क्षेत्र में जाति और धर्म के नाम पर मतदाताओं के समीकरण को कौन दल अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो पाएगा, यह चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा। वैसे भाजपा के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी मधुबनी में आकर मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश कर चुक हैं। मधुबनी में 30 अप्रैल को मतदाता अपने जनप्रतिनिधि का चुनाव के लिए मतदान करेंगे।

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