जनमानस

दो अनमोल रत्नों का सम्मान

भारत के दो रत्न पं. मदन मोहन मालवीय एवं श्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से अलंकृत करने का निर्णय एक अभूतपूर्व पहल है। वास्तव में अगर देखा जाए तो ये विश्व रत्न हैं। इन्हें तो इस अलंकार से बहुत पहले ही सजा देना चाहिए था। लेकिन अत्यन्त संकुचित मानसिकता वाली हमारी पिछली सरकार ने इन्हें या तो ताक पर उठा कर रख दिया था, या फिर कांग्रेस के प्रबल समर्थक न होने के कारण इन महान राष्ट्र विभूतियों को अपने मानस पलट से ही पूर्णत: विस्मृत कर दिया था। ऐसा भी नहीं कि इन दोनों राष्ट्र पुरुषों की कांग्रेस सरकार की भूमिका में कोई भागीदारी नहीं थी। पंडित मालवीय जी की बात करें तो वे स्वयं 1909 से 1918 के बीच राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे तथा वर्तमान कांग्रेस की अधिष्ठात्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश की विकट समस्याओं पर जब-जब अटल जी को याद किया वे उनके कंधे से कंधा मिलाकर खड़े नजर आए। इसके बावजूद हमारी पिछली सरकार द्वारा इन्हें अब तक भारत रत्न के लिए नहीं चुना जाना एक आश्चर्य ही था। इसका मुख्य कारण था कि इन दोनों राष्ट्र भक्तों ने पिछली सरकार कांग्रेस की संकुचित मानसिकता को एक सिरे से नकार दिया था। एक ओर एशिया के सबसे बड़े आवासीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना कर पंडित जी ने जहां आधुनिक राष्ट्रवाद की नींव रखी वहीं दूसरी ओर अपने शासनकाल में विश्व के सबसे बड़े मंच को हिन्दी में संबोधित कर एवं विश्व समुदाय के समक्ष पोखरण विस्फोट कर अदम्य साहस प्रदर्शित कर राष्ट्र की पहचान की गरिमा को शिखर पर पहुंचा दिया था। निश्चित ही इन दोनों राष्ट्र पुरुषों को भारत रत्न प्रदान कर भारत के इतिहास ने अपनी भूल सुधारने का प्रयास किया है।

प्रवीण प्रजापति, ग्वालियर

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