ज्योतिर्गमय

व्यक्ति निर्माण


मनुष्य के व्यक्तित्व के निर्माण में विचारधारा की प्रमुख भूमिका रहती है। रूस के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मेसौलेव के अनुसार विचारों के अलावा उस क्षेत्र की जलवायु, संस्कृति और अनुवांशिकी का भी महत्वपूर्ण योगदान किसी शख्स के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होता है। सकारात्मक विचारों से वह स्वयं भी आनंदित रहता है और अपने आस-पास के परिवेश में भी वह आनंद का प्रसार करता है। इसके विपरीत नकारात्मक विचार औरों की बजाय ऐसा सोचने वाले उस व्यक्ति को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। आज के युग में मनोरोग जैसे-डिप्रेशन आदि नकारात्मक विचारों की ही देन हैं। अंतत: नकारात्मक विचार व्यक्ति के व्यक्तित्व को नकारात्मक बना देते हैं। इस कारण वह इस लोक के बाद अगले जन्म में भी इस प्रकार के व्यक्तित्व को लेकर पैदा होता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि शरीर छोडऩे से पहले आत्मा मन को भी साथ ले जाती है, जिसे अध्यात्म की भाषा में सूक्ष्म शरीर कहते हैं। विचारों से मन का निर्माण होता है और मन मनुष्य की ज्ञानेंद्रियों व कर्मेद्रियों पर नियंत्रण करके उन्हें विचारों के अनुसार अच्छे या बुरे कर्मो में लगाता है।
स्पष्ट है कि नकारात्मक विचारों से व्यक्तित्व का निर्माण नहीं हो सकता। इसलिए सर्वप्रथम मनुष्य को स्वयं के बारे में यह निर्धारण करना चाहिए कि क्या उसका व्यक्तित्व नकारात्मक तो नहीं है। यदि है तो उसके मूल कारणों तक पहुंचने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रयास में ध्यान एक रामबाण औषधि है। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से अपने विचारों को बदलना चाहता है, तो उसे सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, स्वाध्याय, पवित्रता और संतोष के मार्ग को अपनाना होगा। 

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