उत्तराखंड बाढ़ पीड़ितों से राहत के नाम पर खिलवाड़
नई दिल्ली | तीन महीने पहले उत्तराखंड में भारी बाढ़ आई थी। इसके साथ ही भूस्खलन ने राज्य में व्यापक तबाही फैलाई। यहां के लोग अभी उस भयावह हादसे से उबरे भी नहीं हैं कि उन्हें एक और त्रासदी झेलनी पड़ रही है। यह त्रासदी है राहत कार्य में बरती जा रही भारी लापरवाही। प्राकृतिक आपदा में अपना सब कुछ गंवा देने वाले लोगों को अब सरकारी लापरवाही की मार झेलनी पड़ रही है। भारी नुकसान झेलने वालों को मुआवजे के नाम पर चंद रुपए बांटे जा रहे हैं। एक समाचार पत्र की खबर के अनुसार, आपदा में बर्बाद हुए लोगों को मुआवजे के नाम पर 150 रुपए के चेक दिए गए हैं। आपदा में जीवित बचे इन लोगों के लिए सरकारी मुआवजे का यह चेक अपमान है। उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के लोग सरकार के इस मजाक से हताश हैं। उत्तराखंड सरकार के सूचना और जनसंपर्क विभाग के आंकड़ों के हिसाब से जिले में अब तक मुआवजे के तौर पर दो करोड़ से ज्यादा की रकम बांटी जा चुकी है। हालांकि, जमीनी हकीकत इससे अलग है।
हालात यह हैं कि सैलाब में बर्बाद हुए जिले के एक गांव को सिर्फ 8680 रुपए का मुआवजा दिया गया है। इस गांव के लोगों ने सैलाब में अपने घर, खेत और मवेशी गंवा दिए थे। कई लोगों ने तो अपना पूरा परिवार खो दिया। समाचार पत्र ने प्रभावितों को मिले चेकों के आधार पर बताया है कि इस गांव में लोगों को नाम भर की रकम दी गई है। इस गांव में सबसे अधिक मुआवजा 789 रुपए का दिया गया है जबकि दो किसानों को महज 150-150 रुपए के चेक दिए गए हैं। बागेश्वर के आपदा प्रबंधन केंद्र के मुताबिक, जिले में 2.060 हेक्टेयर जमीन बर्बाद हुई है जबकि दो सौ से अधिक मवेशी मारे गए हैं। 46 गांवों में 74 परिवारों के 390 लोग प्रभावित हुए हैं। सरकार ने प्रत्येक मृतक के परिजनों के लिए 5 लाख और जिनके खेत बर्बाद हुए उनके लिए एक लाख के मुआवजे की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने हाल में ही कहा था कि सरकार ने लोगों के बीच चेक के जरिए 150 करोड़ रुपए की राहत बांटी है।
दूसरी ओर, राज्य में विपक्षी दल भाजपा का कहना है कि सरकार राहत और पुनर्वास के काम में विफल रही है। सरकार ने सिर्फ प्रचार पर 75 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। सरकार के मुताबिक उत्तराखंड त्रासदी में 6000 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई और हजारों लोग प्रभावित हुए। इसके अलावा उत्तराखंड में आपदा पीड़ितों को बांटे गए राहत के चेक भी बाउंस हुए हैं। सरकारी खजाने में पैसे ही नहीं है।