पुष्य नक्षत्र में निकलेगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा
रायपुर | एक दशक बाद भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा इस वर्ष पुष्य नक्षत्र में निकलेगी। प्रदेश में रथयात्रा 10 जुलाई को निकाली जाएगी। इस वर्ष पुष्य नक्षत्र में निकलने वाली रथयात्रा को भक्तों के लिए विशेष लाभकारी माना जा रहा है। पुष्य नक्षत्र का यह संयोग एक दशक बाद बन रहा है। इसलिए रथयात्रा का ज्योतिषीय दृष्टि से खास महत्व बताया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा इस बार पुष्य नक्षत्र में निकलेगी। यह नक्षत्र 9 जुलाई की सुबह 10.20 बजे से शुरू होकर 10 जुलाई को दिनभर रहेगी। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार पुष्य नक्षत्र को 27 नक्षत्रों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस नक्षत्र पर भगवान जगन्नाथ की पूजा-अर्चना कई गुना पुण्यकारी मानी जाती है। ज्योतिषाचार्य अजय शास्त्री के अनुसार पुष्य नक्षत्र अपने आप में लाभकारी प्रभाव रखता है। रथयात्रा की वजह से इसका महत्व हजार गुना बढ़ जाएगा। इस मौके पर विशेष रूप से वाहन, आभूषण की खरीददारी शुभ होगी।
वहीं पं.मनोज शर्मा ने बताया कि पुष्य नक्षत्र के स्वामी शनि देव हैं। इस दिन भगवान जगन्नाथ के साथ भगवान शनि की अराधना से विशेष लाभ मिलेगा। इस खास दिन का भक्तों को भी बेसब्री से इंतजार है।
गौरतलब है कि भारत में धार्मिक आयोजनों की दृष्टि से भगवान जगन्नाथ रथयात्रा को अति महत्वपूर्ण माना गया है। यह रथयात्रा न केवल भारत में अपितु विदेशों से आने वाले पर्यटकों के लिए भी विशेष आकर्षण का केंद्र रहता है। कहा जाता है कि जगन्नाथ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर होता है। सागर तट पर बसे पुरी शहर में होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव के समय आस्था का जो विराट वैभव देखने को मिलता है, वह और कहीं दुर्लभ है। इस रथयात्रा के दौरान भक्तों को सीधे प्रतिमाओं तक पहुँचने का बहुत ही सुनहरा अवसर प्राप्त होता है।
ज्ञात हो कि भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए रथों का निर्माण लकड़ियों से होता है। यह एक धार्मिक कार्य है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहा है। रथों का निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होता है तथा लकड़ियां चुनने का कार्य इसके पूर्व वसंत पंचमी से शुरू हो जाता है। पुराने रथों की लकड़ियाँ भक्तजन श्रद्धापूर्वक ख़रीद लेते हैं और अपने–अपने घरों की खिड़कियाँ, दरवाज़े आदि बनवाने में इनका उपयोग करते हैं।
रथयात्रा आरंभ होने से पूर्व पुराने राजाओं के वंशज पारंपरिक ढंग से सोने के हत्थे वाली झाडू से ठाकुरजी के प्रस्थान मार्ग को बुहारते हैं। इसके बाद मंत्रोच्चार एवं जयघोष के साथ रथयात्रा शुरू होती है। ऐसी मान्यता है कि रथयात्रा में सहयोग से मोक्ष मिलता है, इसलिए लोग रथ खींचने के लिए आतुर रहते हैं।