जनमानस
भद्रजनों का अभद्र खेल
कहा जाता था कि क्रिकेट भद्रजनों का खेल है, लेकिन अब क्रिकेट भद्रजनों का नहीं, बल्कि भ्रष्टाचारियों का खेल बन रहा है। काजल की कोठरी में से संजय जगदाले जी ने निकलकर अच्छा कार्य किया है। अगर ईमानदारी है तो और भी लोगों को क्रिकेट को अलविदा कह देना चाहिए, बहुत हो गया। दिन में खेलना और रात में अय्याशी करना, यह कैसी मानसिकता और नैतिकता है, किस बात की कमी है इन्हें। पैसा, नाम, शोहरत सब तो हंै।
भारतीय कप्तान इस विषय में मौन हैं, लगता है उनके दिल में भी बहुत कुछ खौल रहा है, कहीं बवंडर न आ जाए, इसलिए मौन रहना ही बेहतर है। आज आवश्यकता है देशी खेलों को बचाने की। शासन को बड़ी-बड़ी कंपनियों को देशी खेलों में पैसा लगाकर उन्हें उठाना चाहिए। इन खिलाडिय़ों का जीवन स्तर उठाने का संकल्प करना चाहिए। कुश्ती, तीरंदाजी, मलखंब, कबड्डी, खो-खो, हॉकी, फुटबॉल, तैराकी, दौड़ आदि खेलों के लिए जी जान लगा देना चाहिए, अन्य खेल भी हो सकते हैं जो विश्व स्तर पर खेले जाते हैं, उनके लिए विशेष प्रयास करना चाहिए, लेकिन ऐसे अभद्रजनों के साथ पैसा और आनंद लूटना बंद होना चाहिए। कहते हैं मौन रहना भी अन्याय और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना है। आज पूरे तालाब की सफाई आवश्यक है। संजय जगदाले जी बधाई जो आप अभद्रों के बीच से वापस अपने घर आ गए।
राजेन्द्र कोचला, इन्दौर