जनमानस
प्रत्याशी चुनाव की पार्टी थुक्का फजीहत
कांग्रेस आधा चुनाव प्रत्याशी चयन में ही हार चुकी है। म.प्र. में प्रत्याशी चयन का कलह भाजपा के लिए इसलिए संतोष दायक है कि विरोधी पार्टी में उनकी पार्टी से ज्यादा कलह और बगावती तेवर उग्र हुए। एक प्रत्याशी की आत्महत्या और कांग्रेसी कार्यालयों में मची तोडफ़ोड़, इस्तीफे देश की बड़ी पार्टी को अलोकतांत्रिक व असंवेदनशील ठहराते है। राहुल गांधी का क्लास भी फेल हो गया और सोनिया गांधी की कमान बेमतलब सिद्ध हुई। सही मायने में दोनों पार्टियों के लिए टिकट आवंटन का कुफल पार्टी की शून्य स्वामी भक्ति और घोर अवसरवादिता के रूप में स्पष्ट हुआ है। टिकट आवंटन के लिए कोई पारदर्शी प्रोग्राम नहीं बनाया गया तो ऐसी अनुशासनहीनता में पार्टी का महत्व और भी घटता जाएगा। डण्डा लेकर घूमने वाले किसी भी पार्टी का झण्डा यूं ही लगाते रहे तब किसी भी पार्टी की थुक्का-फजीहत का बचाना दुष्कर कार्य हो जाएगा। तीन-तीन बार एक पार्टी के विधायक रहने के बाद भी पार्टी फैसले के प्रति संयम नहीं है तब ऐसी सिद्धांत विहीन राजनीति का कोई मतलब नहीं रह जाता। भितरघात की तमाम संभावनाएं चुनाव के समय जिस प्रकार से सिर उठा रही हैं उसमें खासकर भाजपा पार्टी को आगे के लिए गंभीर चिंतन करना होगा।
हरिओम जोशी, भिण्ड