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ज्योतिर्गमय

पालन पोषण की कला


इन दिनों माता-पिता के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वे अपने बच्चों के समक्ष एक स्वप्न रखकर बच्चों को उस पर चलने के लिए प्रेरित कैसे करें आपको अपने बच्चों को बहुमुखी प्रवृत्तियों से परिचित कराना आवश्यक है- जैसे विज्ञान, कला और सबसे महत्वपूर्ण सेवा ये सुनिश्चित करें कि कि बच्चों की दृष्टि विशाल हो साथ ही उनकी जड़ें भी गहरी हों। प्रत्येक बालक इस धरती पर कुछ निश्चित प्रकृति और मूलभूूत सोच के साथ आया है जो कि बदली नहीं जा सकती है। माता पिता के रूप में उनको स्वप्न के लिए प्रेरित करना आवश्यक है लेकिन झूठी आशा जगानी ठीक नहीं है। यह सुनिश्चित कर लें कि आपके बालक की दायें और बायें मस्तिष्क की गतिविधियां ठीक है। 'विद्या की देवी सरस्वती की अवधारणा - विश्व में अनूठी है। उनके एक हाथ में वीणा संगीत का यंत्र और दूसरे हाथ में पुस्तक ज्ञान का चिन्ह। पुस्तक बायें मस्तिष्क की प्रवृत्तियों को दर्शाता है और संगीत दायें मस्तिष्क की। जप माला भी है जो कि द्यान्मग्नता के पहलु पर प्रकाश डालती है। इस प्रकार गान, ज्ञान और ध्यान ये तीनों मिलकर सभी पहलुओं से शिक्षा को पूर्ण करते हैं। बच्चों में जैसे जैसे बड़े होते हैं उनमें कई प्रकार की मनोग्रंथियों का विकास होने लगता है। एक अभिभावक के रूप में उनके विभिन्न आयु वर्ग के अनुसार व्यवहार का सूक्ष्म अध्ययन करके आपको महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है। इस प्रकार उनके व्यवहार को देखकर आप समझ सकते है कि उनमें कोई हीन या अहं की भावना का विकास तो नहीं हो रहा या फिर वे पूर्ण अंतर्मुखी या ब्राह्यमुखी तो नहीं हो रहे। जो बच्चे हीन भावना से ग्रस्त होते हैं वे अपने से छोटों के साथ ज्यादा और अपने से बड़ों क साथ कम बातचीत करते हैं। जो बच्चे अहंभावी होते है वे छोटों को छोड़कर बड़ों के साथ ज्यादा रहते हैं। आपको कुछ इस प्रकार के खेल सृजित करने होंगे और उनके साथ इस प्रकार व्यवहार करना होगा कि वे तीनों आयु वर्ग के लोगों के साथ थोड़ी बहुत बातचीत करने लगें और आप उनका व्यक्तित्व केन्द्रित गुणवान सरल और सभी ग्रंथियों से मुक्त हो ऐसे ढाल सकते हैं जब एक बच्चा आपके पास आकर आपसे शिकायत करता है तो आप क्या करते हैं? क्या आप उनकी नकारात्मकता को बढ़ावा देते हैं या उसे सकारात्मकता में ढाल देते हैं ? यहां पर आपको एक संतुलित भूमिका निभानी होती है। यदि वे किसी के बारे में आकर नकारात्मक बातें करते हैं तो आपको सकारात्मकता दर्पण बनना होगा। प्रकृति के अनुसार बालक में भरोसा रखने की प्रकृति होती है। लेकिन जब वे बड़े होते है तो उनका विश्वास कहीं ना कहीं टूट या हिल जाता है। एक स्वस्थ बालक में तीन प्रकार का विश्वास होता है:- पहला दिव्यता में, दूसरा लोगों में और तीसरा लोगों की अच्छाई में। ये तीन प्रकार के विश्वास ही एक बालक को गुणवान और प्रतिभाशाली बनाने के लिए आवश्यक तत्व है। यदि आप उनसे ये ही कहते रहेंगे कि यहां सभी झूठे या धोखेबाज़ हैं तो उनका लोगों और समाज से विश्वास उठ जाता है। और इसका असर हर रोज की उनकी बातचीत पर पड़ता है यदि उनका लोगों से, समाज से और लोगों की अच्छाई से विश्वास हट जाता है तो वे चाहे कितने भी योग्य हो उनकी सारी योग्यता किसी के काम नहीं आती और वे कुछ भी करें असफल ही रहते है। जब हम विश्वास का वातावरण बनाते है तो बच्चे बुद्धिमान बनकर बड़े होते हैं। लेकिन यदि हम नकारात्मकता, परेशानी, उदासी और क्रोध का वातावरण बनाते हैं तो वे बड़े हो कर यही सब वापस लौटाते हैं। हर रोज जब आप काम से लौंटे तो उनके साथ खेलें या हंसे। जहां तक हो सके सभी एक साथ बैठकर खाना खाऐं। एक रविवार उन्हें बाहर ले जाएं और उनको कुछ चॉकलेट देकर उन्हें सबसे गरीब बच्चों में बांटने को कहें या फिर साल में एक दो बार कच्ची बस्तीं में ले जाकर उनसे कोई सेवा कार्य करने के लिए कहें। थोड़ी बहुत धार्मिकता, नैतिक और अध्यात्मिक मूल्य उन पर गहरा प्रभाव उत्पन्न करते हैं। यह अज्ञात रूप से उनके व्यक्तित्व का विकास करते है। उनसे थोडा बहुत गाना, मंत्रोच्चारण, ध्यान और प्राणायम करवाना चाहिए। संशोधन से पता चला है कि ध्यान और प्राणायम उनकी योग्यता को बढ़ाते हैं। वे शांत, सतर्क, सजग और समझने की योग्यता को बेहतर कर पाते हैं। पहले शिक्षक, गुरु और उपदेशक उनके सलाहकार की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। आजकल यह बच्चों के लिए उपलब्ध नहीं है। अभिभावक को दोनों ही भूमिका निभानी होती है एक प्रेरक और सलाहकार की। यह एक घुडसवारी की तरह ही है; कभी लगाम कसनी होती है तो कभी ढीली छोडऩी होती है।

Updated : 1 Jan 2013 12:00 AM GMT
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