लोकसभा सीट : कभी नहीं जीती दलित राजनीति से उभरी बसपा
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गोरखपुर। आजादी के करीब डेढ़ दशक बाद अस्तित्व में आए बांसगांव सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र ने सभी दलों को मौका दिया है, लेकिन दलित राजनीति से उभरी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को जीत के लिए हमेशा तरसना पड़ा है। कई चुनाव में जीत के करीब होते हुए भी बसपा को इस सीट के लिए तरसना पड़ा है। बसपा को इस सीट के दलित वोटरों को एक करने में कभी सफलता नहीं मिली। नतीजा हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी है। वर्ष 1989 से वर्ष 2014 तक के हर लोकसभा चुनाव में बसपा त्रिकोणीय लड़ाई में रही, लेकिन खाता नहीं खुल सका। अब महागठबंधन के सहारे वह एक बार फिर मैदान में है।
बांसगांव लोकसभा क्षेत्र गोरखपुर-बस्ती मंडल की एकमात्र सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र है। वर्ष 1962 में अस्तित्व में आए गोरखपुर जिले की इस लोकसभा सीट पर पहली जीत कांग्रेस की हुई थी। 1989 में बसपा ने पहली बार यहां अपना चुनावी भाग्य आजमाया। वीपी सिंह की लहर थी, लेकिन बसपा नेता मोलई प्रसाद ने भाग्य आजमाया। पहले ही चुनाव में बसपा को 85 हजार से अधिक वोट मिले। हालांकि, यहां की जनता पर लहर का कोई असर नहीं हुआ और उसने अपने पुराने नेता पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद पर भरोसा जता दिया। वर्ष 1991 के रामलहर में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने यहां अपना खाता खोला। राजनारायण पासी सांसद बने और कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद चुनाव हार गए। इस बार भी बसपा प्रत्याशी मोलई प्रसाद को 80,791 वोट पर संतोष करना पड़ा था। वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में सपा के तत्कालीन दबंग विधायक ओम प्रकाश पासवान की पत्नी सुभावती पासवान पर जनता ने भरोसा जताया। इस बार बसपा के मोलई प्रसाद 10,2746 वोट पाकर फिर संसद में जाने रह गए। वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने अपने महावत को बदला और ई. विक्रम प्रसाद पर दांव लगाया। परिणाम पुराना ही रहा।
एक साल बाद फिर हुए चुनाव में बसपा ने सदरी पहलवान पर दांव लगाया, लेकिन जीत का जश्न बसपा के हिस्से में नहीं आया। 2004 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने पूरे दमखम के साथ चुनावी रणनीति बनाई। सदल प्रसाद चुनावी समर में उतरे, लेकिन क्षेत्रीय जनता ने एक बार फिर अपने पुराने नेता महावीर प्रसाद पर भरोसा जता दिया। इस बार बसपा दूसरे नंबर पर रही। वर्ष 2009 में बसपा के कद्दावर नेता श्रीनाथ एडवोकेट को भी दूसरे नंबर पर ही संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2014 में बसपा ने फिर सदल प्रसाद पर दांव आजमाया, लेकिन इस बार भी दूसरा स्थान पहले में नहीं बदल सका।
कुछ यूं रहा बसपा के संघर्ष का सफर
वर्ष 1989
महावीर प्रसाद-कांग्रेस-162287 मत
फिरंगी प्रसाद-निर्दल-152258 मत
मोलई प्रसाद-बसपा-85768 मत
वर्ष 1991
राजनारायण-भाजपा-124578 मत
महावीर प्रसाद-कांग्रेस-98437 मत
मोलई प्रसाद-बसपा-80791 मत
वर्ष 1996
सुभावती पासवान-सपा-203591 मत
राजनारायण-भाजपा-177422 मत
मोलई प्रसाद-बसपा-102746 मत
वर्ष 1998
राजनारायण-भाजपा-217433 मत
सुभावती पासवान-सपा-186893 मत
ई.विक्रम प्रसाद-बसपा-148699 मत
वर्ष 1999
राजनारायण-भाजपा-184684 मत
सुभावती पासवान-सपा-174996 मत
सदरी पहलवान-बसपा-137221 मत
वर्ष 2004
महावीर प्रसाद-कांग्रेस-180387 मत
सदल प्रसाद-बसपा-163946 मत
वर्ष 2009
कमलेश पासवान-भाजपा-223006 मत
श्रीनाथ-बसपा-170224 मत
वर्ष 2014
कमलेश पासवान-भाजपा-417597 मत
सदल प्रसाद-बसपा-228260 मत
गोरख प्रसाद पासवान-सपा-133534 मत
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