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संघ के मकर संक्रांति उत्सव शुरू, सामाजिक समरसता का संदेश दिया

संघ के मकर संक्रांति उत्सव शुरू, सामाजिक समरसता का संदेश दिया
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मथुरा। आरएसएस के मकर संक्रांति कार्यक्रम आज से शुरू हो गए हैं, यूं तो मकर संक्रांति का उत्सव अपनी भारतीय संस्कृति में बहुधा महत्व रखता ही है, परन्तु संघ इस उत्सव को सामाजिक समरसता के प्रतीक के रूप में मनाता है। आरएसएस बृज प्रांत के आग्रह पर इस बार इस उत्सव को महानगर की प्रत्येक बस्ती में मनाया जाएगा इसी श्रृंखला में सैकड़ों स्वयंसेवकों व सामान्य जनों द्वारा आज 24 स्थानों पर इस उत्सव को मनाया गया। आगे आने वाली 20 तारीख तक इस कार्यक्रम को सभी बस्तियों में मनाने की योजना है।

इस दिन को मनाने के लिए एक हफ्ते पहले से संघ के स्वयंसेवक अपने कार्य क्षेत्र में आने वाली आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़ी बस्तियों जिनको की संघ में सेवा बस्ती कहा जाता है में जाकर वहां निवास करने वाले स्वयंसेवक के साथ उसी बस्ती के घरों से दाल चावल व अन्य खिचड़ी बनाने के खाद्य पदार्थ इक_ा करते हैं व कार्यक्रम वाले दिन वहीं किसी बगीची या अन्य सामुदायिक स्थान पर खिचड़ी बनाते हैं व वहीं कार्यक्रम के अंत में उनके साथ खिचड़ी खाते हैं। कई स्थानों पर जहां खिचड़ी बनाना सम्भव नहीं हो पाता वहां कार्यक्रम में आने वाले सभी स्वयंसेवकों व आमजन से थोड़ी-थोड़ी गजक, गुड़ या तिल का कोई भी समान मंगा कर उसे एक जगह इक_ा करके बाद में सब मे बांटा जाता है।

कार्यक्रम में सबसे पहले संघ के गुरु भगवा ध्वज को उनके स्थान पर आसीन कराया जाता है फिर एकल गीत व अमृत वचन जिसमे कोई भी सामाजिक समरसता का संदेश हो वो पढ़ा जाता है तत्पश्चात पधारे हुए अतिथि का बौद्धिक होता है।

सामान्यत: बौद्धिककर्ता इस उत्सव पर मकर संक्रांति के वैज्ञानिक कारणों पर प्रकाश डालते हैं की किस तरह भगवान सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करते हैं एवं इस परिवर्तन से शुरू होने वाले गर्म दिन व प्रकृति पर पडऩे वाले सकारात्मक प्रभाव को भी बौद्धिककर्ता सरल भाषा मे समझाते हैं। इस दिन सामान्यत: बनने वाली खिचड़ी के उदाहरण को रखते हुए बौद्धिककर्ता संघ की अपेक्षा को भी बताते हैं कि जिस प्रकार दो अलग अलग विशेषता और स्वाद रखने वाले चावल और दाल जब खिचड़ी में मिलते हैं तो दोनों ही अपने अपने स्वरूप को त्याग कर खिचड़ी का स्वरूप ले लेते हैं उसी प्रकार हम सबको भी आपस में मिल जुल कर रहना चाहिए व समय आने पर अपने अंदर के अहं व हर तरह के भेदभाव को त्याग कर एक हो जाना चाहिए। रविवार को धौलीप्याऊ, सदर, महोली रोड, जन्मभूमि, गोविंद नगर, यमुनापार के इलाकों की बस्तियों में कार्यक्रम आयोजित किये गए। बौद्धिक देने वालों में कैलाश जी, डा. कमल कौशिक, डा. धर्मेन्द्र, शिवकुमार, श्रीओम, हरवीर, महानगर प्रचारक धर्मेन्द्र प्रमुख रूप से रहे।

Updated : 13 Jan 2019 4:47 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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