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मप्र में "सिंधिया" के अल्टीमेटम के बाद क्यों बेफिक्र है "दिग्विजय सिंह"

सिंधिया के गढ़ में जाकर क्या सन्देश दे रहे दिग्गिराजा ?

मप्र में सिंधिया के अल्टीमेटम के बाद क्यों बेफिक्र है दिग्विजय सिंह
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- डॉ अजय खेमरिया

मप्र की सियासत में दिग्विजय सिंह एक ऐसा नाम है जिनसे आप असहमत हो सकते है उनके घुर विरोधी हो सकते है लेकिन आप उन्हें खारिज नही कर सकते है।वैसे उनकी छवि एक वर्ग में खासकर मीडिया में प्रतिक्रियावादी नेता की है वे जब भी बोलते है ऐसा माना जाता है कि कांग्रेस के लिये मुसीबत बन आती है ।पर इससे दिग्गिराजा (लोग उन्हें मप्र में इसी नाम से पुकारते है)बेफिक्र होकर राजनीति करते आये है उनकी अट्टहास भरी हंसी बहुअर्थी होती है जिसे सियासी जानकर अपने अपने हिसाब से विश्लेषित करते रहे है।

आज दिग्विजयसिंह सिंधिया के गढ़ यानी ग्वालियर में थे यहां उनका अट्टहास भरा अंदाज मप्र की सियासत में मची उथल पुथल को एक नई इबारत दे गया। जिस बेफिक्री के साथ उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के सवाल को हल्के में उड़ाया उसके निहितार्थ बहुत गहरे है।बकौल दिग्गिराजा कमलनाथ अभी अध्यक्ष है औऱ हाँगकाँग में आंदोलन 20 से 22 साल के युवा चला रहे है। सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के अल्टीमेटम को उन्होंने बीजेपी के व्हाट्सएप ग्रुप की करतूत करार दिया।

इन बातों के सियासी मायने क्या है?जो दिग्गिराजा को गहराई से समझते है उन्हें पता है कि दिग्विजयसिंह की हर बात गहरे सियासी अर्थ लिये होती है।सिंधिया की कथित धमकी के 24 घण्टे के भीतर ही दिग्विजय का ग्वालियर में आना और युवा नेतृत्व के सवाल को हाँगकाँग के आंदोलनकारियों से जोड़ना इस बात की तस्दीक करता है कि राजा कांग्रेस के महाराजा की चुनौती को खुलकर स्वीकार कर रहे है वह अच्छी तरह जानते है कि सिंधिया की उम्र 50 है और वे बीस बाइस साल के नही है सियासी पंडित इसका आशय आसानी से लगा सकते है ।फिर कमलनाथ अभी अध्यक्ष है यानी राजा यही समझा रहे है कि कोई वैकेंसी फिलहाल नही है।

दिग्विजय सिंह की यह ग्वालियर यात्रा कई मायनों में मप्र की सियासत की आसन्न तस्वीर को समझने के लिये पर्याप्त है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के घर मे वह डॉ गोविंद सिंह के साथ आये और अपैक्स बैंक के चेयरमैन अशोक सिंह के घर उनकी सियासी महफ़िल जमी जिसमें अंचल के सभी सिंधिया विरोधियों का जमावडा जुटा। खासबात यह रही कि एक भी सिंधिया समर्थक नेता पूर्व मुख्यमंत्री की आगवानी तो दूर उनके आसपास तक नही फटका।यानी साफ है कि राजा और महाराजा की चार दशक पुरानी सियासी विभाजन रेखा कमजोर नही हुई है बल्कि गहराती अधिक जा रही है।जिन कांग्रेसियो को सिंधिया फूटी आँख से भी नही देखते उन्हें आज के दौरे में दिग्गिराजा ने भरपूर तबज्जो दी। सुमावली के विधायक एदल सिह कंसाना से तो उन्होंने यहां तक कहाकि "तुमने तो बड़े बड़े नेताओं की पेशाब तक बन्द करा दी थी".


एदल सिंह मंत्री नही बनाये जाने से इतने नाराज थे कि उन्होंने इसके लिए सिंधिया को खुलेआम जिम्मेदार ठहराया था उनके समर्थकों ने जाम तक लगा दिया था।एदल सिंह 1998 में बसपा से विधायक थे उन्हें दिग्विजयसिंह ही कांग्रेस में लेकर आये थे।कभी बसपा के कद्दावर नेता रहे फूलसिंह बरैया भी को भी दिग्गिराजा ने भरपूर तबज्जो दी जो घोषित रूप से सिंधिया के विरोधी है उनका कांग्रेस में प्रवेश भी सिंधिया की असहमति के बाबजूद दिग्विजयसिंह द्वारा ही कराया गया है।भिंड से लोकसभा का टिकट पाए देवाशीष जरारिया भी ऐसे ही नेता है जो सिंधिया के फॉर्मेट में फिट नही है।यानी सन्देश साफ है सिंधिया के घर मे भी राजा अपने समर्थकों को पूरा सरंक्षण देंगे।जबकि पिछले 15 बर्षो से यह तबका हासिये पर था।

दिग्विजयसिंह का यह दौरा सरकार गिराने की कतिपय चुनोतियाँ को कमतर प्रदर्शित करने की कोशिश भी है क्योंकि वे भिंड के बसपा विधायक संजू कुशवाह के बुलाबे पर महाराणा प्रताप की मूर्ति का अनावरण करने गए थे।संजू कमलनाथ की सरकार को समर्थन दे रहे है और दिग्गिराजा को बुलाकर उन्होनें अंचल में मेसेज क्लियर कर दिया कि वे सिंधिया नही दिग्विजयसिंह के साथ है।

दिग्विजयसिंह जानते है सियासत में टाईमिंग का बड़ा महत्व होता है इसलिये उन्होंने बसपा विधायक की इस स्वीकारोक्ति के लिये जानकर यह समय चुना जब मप्र की राजनीति में सिंधिया का कतिपय अल्टीमेटम चर्चा का केंद्रीय विषय बना हुआ है।दिग्गिराजा और सिंधिया की राजनीति को नजदीक से समझने वाले जानते है कि दोनों की स्टाइल में जमीन आसमान का अंतर है दिग्गिराजा जहां अपने समर्थकों और फ़ॉलोअर्स के पीछे चट्टान की तरह खड़े रहते है वहीं सिंधिया इससे परहेज करते है यही कारण है कि 15 साल तक कांग्रेस मप्र में सत्ता से दूर रही लेकिन उनकी सरकार के ताकतवर चेहरे लगातार जीतते रहे या जमीनी पकड़ बनाकर रखने में सक्षम रहे।

मौजूदा समीकरण भले ही उपर से कमलनाथ सरकार को कमजोर बताते हो पर दिग्विजय अच्छी तरह से जानते है कि सरकार का भविष्य क्या?इसीलिए वह हंसी ठिठोली के साथ जिस बेफिक्री का सन्देश ग्वालियर में खड़े होकर दे रहे है उसे कोई उनके तुष्टिकरण के बयानों की तरह लेने की गलती नही कर सकता है।उन्हें पता है कि सोनिया गांधी के दरबार मे क्या निर्णय होना है औऱ वे यह भी जानते है कि सिंधिया के अल्टीमेटम को किस हद तक सरकार की सेहत के साथ जोड़ा जाए इसलिए वे ग्वालियर में उसी अशोक सिंह के घर पर खड़े होकर अट्टहास कर रहे है जिसे सिंधिया कभी पसन्द नही करते है वे भिंड जाने के लिये सहकारिता मंत्री गोविन्द सिंह की गाड़ी को चुनते है जो एक रोज पहले ही सिंधिया समर्थक मंत्रियों से खुलेआम भिड़ रहे थे।

यही दिग्विजयसिंह का स्टाइल है वे वक्त की नजाकत को भांपने और उसके अनुरूप चलने के माहिर खिलाड़ी है इसीलिये उनके समर्थक मंत्री जीतू पटवारी का नाम सिंधिया कोटे के मंत्री लाखन सिंह यादव आगे करते है तो इसे आप सामान्य घटनाक्रम मत मानिए।लाखन सिंह यादव ग्वालियर की भितरवार सीट से विधायक है 1998 में वे बसपा से पहली बार जीते थे और दिग्गिराजा ही उन्हें कांग्रेस में लेकर आये थे यह शायद लोग भूल गए है।

मुरैना में सिंधिया के सबसे विश्वसनीय रामनिवास रावत के विरुद्ध लोकसभा चुनाव में सभी सिंधिया निष्ठ विधायकों ने कितनी निष्ठा से काम किया यह भी दिग्विजयसिंह से ज्यादा शायद ही किसी को पता हो। यही बुनियादी फर्ख राजा और महाराजा के समर्थक कांग्रेसियों में है।

इसके बाबजूद सिंधिया समर्थक सोशल मीडिया पर आरपार की जंग और याचना नही अब रण होगा जैसी हुंकार भर रहे है। आखिर सवाल यह है कि रण किससे होना है? दिग्विजयसिंह तो ग्वालियर में ही खड़े है ....!

हांगकांग में बीस बाइस साल के लोग आंदोलन का नेतृत्व कर रहे है यानी 50 साल के सिंधिया के लिये क्या नेतृत्व नही मिलने वाला ????

दिग्गिराजा की अट्टहास भरी हंसी को आप विश्लेषित कीजिये।

Updated : 31 Aug 2019 1:56 PM GMT
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