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महाशक्ति भारत

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अंतरिक्ष में वर्चस्व...

ऑपरेशन शक्ति का जबरदस्त सामरिक महत्व है। इस दृष्टि से इसकी तुलना वर्ष 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण से भी की जा सकती है। लेकिन 1998 एवं 2019 के भारत में काफी अंतर दिख रहा है। 1998 के परमाणु परीक्षण की महाशक्तियों समेत विश्वसमुदाय द्वारा विश्वव्यापी आलोचना हुई थी, वहीं इस बार ऑपरेशन शक्ति में भारत को विश्व समुदाय से कोई विरोध नहीं झेलना पड़ा। इस संपूर्ण उपक्रम से भारतीय कूटनीति के वैश्विक वर्चस्व को समझा जा सकता है। वर्ष 2007 में जब चीन ने इसी प्रकार का परीक्षण किया, तो उसे दुनियाभर के देशों का भारी विरोध का सामना करना पड़ा। स्पष्ट है कि मोदी सरकार ने देश की विदेश नीति को नया आयाम प्रदान किया है, जिससे वैश्विक तौर पर भारत के सम्मान और महत्व में वृद्धि हुई है।

भारत ने मिशन शक्ति के अंतर्गत अंतरिक्ष में एंटी सैटेलाइट मिसाइल से एक लाइव सैटेलाइट को नष्ट करके अपना नाम अंतरिक्ष महाशक्ति के तौर पर दर्ज करा लिया है और भारत ऐसी क्षमता प्राप्त करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है।अब तक यह क्षमता अमेरिका, रूस और चीन के पास ही थी। दुनिया के सभी विश्लेषक और रणनीतिकार इस मसले पर एक मत हैं कि भविष्य में वही विश्व पर हुकूमत करेगा, जिसके जखीरे में स्पेस वार जीतने के ब्रह्मास्त्र होंगे। भविष्य के युद्ध परंपरागत युद्धों से अलग अंतरिक्ष सामथ्र्य पर ही निर्भर होंगे। ऐसे में भारत ने स्पेस वार में अब अपना पहला सुरक्षात्मक कदम रख दिया है। मिशन शक्ति के अंतर्गत एंटी सैटेलाइट (एसैट) का प्रक्षेपण कलाम आइलैंड से किया गया। इसके अंतर्गत अंतरिक्ष में 300 किमी दूर लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) में केवल तीन मिनट में लाइव सैटेलाइट को मार गिराया गया।

स्पेस वार की ओर बढ़ती दुनिया और भारत

पिछले वर्ष जून में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन को अलग अंतरिक्ष बल या स्पेस फोर्स तैयार करने का आदेश दिया। ट्रंप ने अंतरिक्ष को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला बताया। इस तरह ट्रंप ने स्पेस फोर्स को अमेरिकी सेना की 6वीं शाखा के रूप में विकसित करने का आदेश दिया। अमेरिकी इंटेलिजेंस रिपोर्ट के अनुसार रूस और चीन ऐसे हथियार विकसित कर रहे हैं, जिसका प्रयोग स्पेस वार में कर सकते हैं। यहाँ जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि इस समय अमेरिका के अतिरिक्त 4 देशों के पास मिलिट्री स्पेस कमांड है। इसमें चीन के पास पीपुल्स लिबरेशन आर्मी स्ट्रेटजिक सपोर्ट फोर्स, रूस के पास रूसी स्पेस फोर्सेज, फ्रांस के पास ज्वाइंट स्पेस कमांड तथा इंग्लैंड के पास रॉयल एयर फोर्स कमांड। इन सभी फोर्सेज का काम अंतरिक्ष में अपने उपग्रहों की सुरक्षा करना व मिसाइलों से होने वाले हमलों की निगरानी करना है। इस दृष्टि से भारतीय ऑपरेशन शक्ति के महत्व को समझा जा सकता है। जब दुनिया की महाशक्तियाँ संभावित स्पेस वार की तैयारियाँ कर रही हैं, उसमें अब भारत कैसे पीछे रह सकता है। यह मूूूलत सरकार के दूरगामी सोच को ही प्रतिबिंबित करता है।

भारतीय अंतरिक्ष संपदा के सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण

ऑपरेशन शक्ति के अंतर्गत काइनेटिक हथियार का प्रयोग सैटेलाइट नष्ट करने के भारतीय क्षमता से अंतत: अब भारत की अंतरिक्ष संपदा भी सुरक्षित हुई है।भारत के 48 अत्याधुनिक उपग्रह अंतरिक्ष में परिक्रमा कर रहे हैं और यह इंडो पैसेफिक क्षेत्र में उपग्रहों का सबसे बड़ा जखीरा है, जिसकी सुरक्षा बेहद जरूरी है। आज की दुनिया में संचार, जीपीएस, नेविगेशन, सैन्य, मौसम, वित्त सहित हर क्षेत्र सैटेलाइट से नियंत्रित हो रहे हैं। ऐसे में सैटेलाइट सिस्टम टारगेट करने का मतलब है कि दूसरे को तकनीकी तौर पर लाचार कर देना। भारत के पड़ोसी चीन के पास इस तरह की क्षमता है कि वह सैटेलाइट को टार्गेट कर सकें। इसलिए यह बेहद जरूरी था कि भारत के पास भी एंटी सैटेलाइट मिसाइल तकनीक क्षमता हो।


अंतरिक्ष और उससे जुड़े तकनीकी प्रयोगों के मामले में भारत स्पेस इंडस्ट्री में दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों के दबदबे को चुनौती दे रहा है। एंटी सैटेलाइट क्षमता के प्रदर्शन से यह दावेदारी और भी मजबूत हुई है। 2018 में स्पेस इंडस्ट्री का आकार 360 अरब डॉलर रहा है, जो 2026 में 558 अरब डॉलर का हो जाएगा। भारत को स्पेस प्रोग्राम को चलाने वाली सरकारी एजेंसी इसरो का करीब 33 देशों और बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ स्पेस प्रोजेक्ट को लेकर करार है और वह दुनियाभर के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए लांचपैड का सबसे बड़ा बाजार बनकर उभरा है। ऐसे में ऑपरेशन शक्ति भारतीय अंतरिक्ष संपदा की रक्षा तथा भविष्य में संभावित स्पेस वार में आपातकालीन दृष्टि से भी भारतीय रक्षा तैयारियों को और भी मजबूत करता है। इसके अतिरिक्त भारत ने अपना वैश्विक कूटनीतिक वर्चस्व का भी परचम बुलंद किया है।

ऑपरेशन शक्ति से कूटनीतिक लाभ

इस संपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि से भारत की कूटनीतिक उपलब्धि में भी वृद्धि होगी। अब अंतरिक्ष को हथियारों की होड़ से बचाने के लिए भविष्य में जो भी अंतर्राष्ट्रीय समझौता किया जाएगा, उसमें भारत की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। अभी बाहरी अंतरिक्ष को हथियारों की होड़ से बचाने के लिए एक समझौता पारोस अर्थात प्रीवेंशन ऑफ एन आम्र्स रेस इन आउटर स्पेस प्रस्तावित है। अब भारत की अन्य मिसाइल तकनीकी समझौतों तथा जनसंहारक हथियारों के रोकथाम की समझौतों में दावेदारी मजबूत हो जाएगी।

-राहुल लाल

Updated : 30 March 2019 3:06 PM GMT
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Naveen Savita

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