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कर्नाटक सरकार में दोस्ती कम, दुश्मनी ज्यादा

बीजेपी को सरकार बनाने से रोकने के लिए कांग्रेस ने 37 सीट जीतने वाली पार्टी जेडीएस के साथ गठबंधन तो जरूर कर लिया था, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अभी तक इस बात को दिल से स्वीकार नहीं कर सके हैं...

कर्नाटक सरकार में दोस्ती कम, दुश्मनी ज्यादा
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- पप्पू गोस्वामी

कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार का विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। गठबंधन की इस सरकार में दोस्ती कम और दुश्मनी ज्यादा नजर आती है। कभी कांग्रेस की ओर से सिद्धारमैया आंखें तरेरते हैं, तो कभी जेडीएस की ओर से मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी रो-रोकर अपना हाल-ए-दिल बयां करते हैं। अभी कुछ दिन पहले ही कुमारस्वामी ने कहा कि गठबंधन की सरकार चलाना विषपान करने के जैसा है। ये कहते वक्त उनकी आंखों में आंसू भर आए थे। उन्होंने कहा कि वर्तमान हालत से वे खुश नहीं है। मुख्यमंत्री ने उस दिन अपने आपको इतना दुखी दिखाया था कि उस कार्यक्रम में गुलदस्ता और फूलमाला तक को स्वीकार नहीं किया और कहा कि मैं किसी को बताए बिना अपने दर्द को जब्त कर रहा हूं। कुमारस्वामी का ये भी कहना है कि इस सरकार में जो कुछ भी चल रहा है, उससे भी वे खुश नहीं हैं।

बीजेपी को सरकार बनाने से रोकने के लिए कांग्रेस ने 37 सीट जीतने वाली पार्टी जेडीएस के साथ गठबंधन तो जरूर कर लिया था, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अभी तक इस बात को दिल से स्वीकार नहीं कर सके हैं कि उन्हें मजबूरी में जेडीएस को मुख्यमंत्री का पद देना पड़ा है। यही कारण है कि वे हर कुछ दिन पर कोई न कोई ऐसा विवाद खड़ा करते हैं, जिससे गठबंधन सरकार की सांसें अटक जाती है। मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने अपनी सरकार का पहला बजट पेश करते हुए उसे राज्य के गरीब लोगों के लिए समर्पित करने का ऐलान किया था। गरीब लोगों के लिए लागू की गयी योजनाओं के लिए पैसा इकट्ठा करने के लिए उन्होंने बजट में कुछ नए टैक्सों का भी ऐलान किया। लेकिन टैक्स में हुई बढ़ोतरी कांग्रेस को मंजूर नहीं थी। इस पर भी दोनों दलों के बीच खींचतान की स्थिति बनी हुई है।

इसी कारण कुमारस्वामी ने पिछले दिनों खुलकर कहा कि वे अन्ना भाग्य स्कीम में गरीबों को दिये जाने वाले खाद्यान्न की मात्रा बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन उसके लिए जरूरी 2500 करोड़ रुपये की व्यवस्था कर पाना उनके लिए संभव नहीं हो पा रहा है। वे यह भी कह रहे हैं कि उनकी सरकार को विरासत में सिद्धारमैया सरकार से 4000 करोड़ रुपये की देनदारी मिली थी, लेकिन इस देनदारी को चुकाने के लिए अगर वह मध्य और उच्च वर्ग के लोगों पर वे टैक्स लगाना चाहते हैं, तो ऐसा करने से कांग्रेस उन्हें रोक रही है।

सच तो यह है की जब से कांग्रेस और जीडीएस गठबंधन की सरकार बनी है, तभी से सिद्धारमैया मुख्यमंत्री कुमारस्वामी और उनके मंत्रियों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। वे अभी तक मुख्यमंत्री समेत अन्य मंत्रियों को नौ पत्र भेजकर अपनी शिकायत दर्ज करा चुके हैं। माना जा रहा है कि सिद्धारमैया ऐसा करके खुद को सुर्खियों में बनाये रखना चाहते हैं। इसके साथ ही उनका इरादा सरकार को भर बनाए रखने का है, ताकि राज्य की राजनीति में उनकी महत्ता बनी रहे।

सिद्धारमैया कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन समन्वय समिति के अध्यक्ष भी हैं। कुमारस्वामी की शिकायत है कि अगर सिद्धारमैया सरकार से कुछ कहना या शिकायत भी चाहते हैं, तो उन्हें पब्लिक फोरम पर जाने के बजाय समन्वय समिति की बैठक में अपनी बात रखनी चाहिए, ताकि वहीं हर शिकायत का समाधान निकल जाये। लेकिन, सिद्धारमैया समन्वय समिति की बैठक में अपनी बात रखने के बजाय कुछ दिनों के अंतराल पर पत्र भेजा करते हैं। इस पत्र को मीडिया को भी जारी कर दिया जाता है, जिससे मीडिया को हमेशा ही एक नया मसाला मिलते रहता है।

मजे की बात तो ये है कि आज सिद्धारमैया जिस तरह से शिकायती पत्र भेजकर एचडी कुमारस्वामी को दुखी किये हुए हैं, कुछ ऐसा ही काम कुमारस्वामी के पिता एचडी देवेगौड़ा 2004 में पूर्व मुख्यमंत्री एन धरम सिंह के जमाने में किया करते थे। उस वक्त कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन की सरकार बनी थी और उस सरकार में सिद्धारमैया उपमुख्यमंत्री हुआ करते थे। उस समय देवेगौड़ा छोटे-छोटे मुद्दों को लेकर सरकार को पत्र लिखा करते थे और उनको मीडिया को भी जारी कर दिया करते थे। पत्रयुद्ध का यह दौर लंबा खिंचा और इसकी वजह से दोनों दलों के संबंध बिगड़ते चले गये। अंततः धरम सिंह ने जेडीएस से अलग होने का निश्चय कर लिया और वह सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने के पहले ही गिर गयी। अब यही रणनीति देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी के खिलाफ सिद्धारमैया अपना रहे हैं।

सिद्धारमैया की रणनीति गठबंधन सरकार में अपना दबदबा बनाए रखने की है। उनको भी पता है कि सिर्फ 37 विधायकों वाली पार्टी जेडीएस उनका प्रबल विरोध नहीं कर सकेगी और सरकार चलाने के लिए उसे कांग्रेस के सामने झुक कर ही चलना होगा। हालांकि सिद्धारमैया को ये भी पता है कि कांग्रेस आलाकमान कम से कम अगले लोकसभा चुनाव तक इस गठबंधन की सरकार को चलाना चाहता है, ताकि लोकसभा चुनाव में ये दोनों दल एक साथ मिलकर बीजेपी का मुकाबला करें। इसीलिए वे गठबंधन से अलग होने की बात तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन अपनी निराशा और कुंठा पत्र युद्ध के जरिये जताने में लगे हुए हैं।

लेकिन उनकी ये रणनीति पूरे राज्य में एक गलत संदेश का प्रसार कर रही है। दोनों दलों के बीच तनाव की बात लगातार सामने आ रही है और इस पत्र युद्ध की वजह से राज्य की की जनता के बीच यही संदेश जा रहा है कि गठबंधन की इस सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है और ये सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकती। ऐसे में अगर सिद्धारमैया का यही रवैया आगे भी जारी रहा और अगले लोकसभा चुनाव तक इन दोनों दलों का गठबंधन बना भी रहा तो भी बीजेपी मतदाताओं को यह समझाने में आसानी से सफल हो जायेगी कि जेडीएस और कांग्रेस सिर्फ बीजेपी को रोकने के लिए ही एक बेमेल गठबंधन बनाया गया है, और उसका राज्य की जनता की भलाई से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में कांग्रेस गठबंधन की मदद से लोकसभा चुनाव में जिस राजनीतिक लाभ को हासिल करने की अपेक्षा कर रही है, उसकी जगह उसे भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

Updated : 18 July 2018 4:05 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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