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कंगाली की ओर बढ़ते पाकिस्तान के कदम

संतोष कुमार वर्मा

कंगाली की ओर बढ़ते पाकिस्तान के कदम
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पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में निरंतर गिरावट जारी है। अभी हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान के भुगतान संतुलन की स्थिति दयनीय बनी हुई है। पाकिस्तान के आर्थिक, विशेष रूप से भुगतान संतुलन से संबंधित समस्याओं के बढ़ने का कारण, दो हालिया अंतरराष्ट्रीय घटनाओं से जुडा हुआ है। पहला संयुक्त राज्य अमेरिका में ब्याज दरों में वृद्धि और दूसरा अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी। अमेरिका, जो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, 2007-09 के बीच आवास और वित्तीय संकट के कारण एक लंबी आर्थिक मंदी के घेरे में रहा। अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट को रोकने के लिए ब्याज दरें घटा दी गईं थी। हालांकि वर्तमान में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की गति तीव्र हुई है और चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में इसने 4.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है तथा बेरोजगारी दर घटकर 3.9 प्रतिशत रह गई है, जो पिछले एक दशक में सबसे कम है। अत: अब अमेरिकी फेडरल रिजर्व (फेड) ने ब्याज दरें बढ़ा दी हैं। यह मार्च 2018 में 25 आधार अंक बढाकर 1.50 प्रतिशत से 1.75 प्रतिशत और फिर जून 2018 में 1.75 प्रतिशत से बढ़ा कर 2 प्रतिशत कर दी गई। इसके अलावा सितंबर के अंत में और दिसंबर में दो अन्य ब्याज दरों में वृद्धि की संभावना भी व्यक्त की जा रही है।

ब्याज दरों और घरेलू मुद्रा के मूल्य के बीच सीधा संबंध है। अन्य सभी बराबर हैं, ब्याज दरों में वृद्धि मुद्रा के मूल्य में वृद्धि करती है, क्योंकि निवेशक डॉलर के रूप में मूल्यवान संपत्तियों में अपने निवेश पर उच्च रिटर्न देखते हैं। चूंकि अमेरिका वैश्विक आर्थिक, वित्तीय और विनिमय दर प्रणाली का केंद्र है, इसलिए अमेरिकी ब्याज दरों में परिवर्तन अन्य देशों को भी प्रभावित करता है। चूंकि पाकिस्तान के अधिकांश अंतरराष्ट्रीय लेनदेन डॉलर में ही होते हैं, इसलिए अर्थव्यवस्था अमेरिकी मुद्रा में उतार चढ़ाव से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है। अमेरिकी ब्याज दर में वृद्धि पाकिस्तान के बाहरी ऋण के साथ-साथ ऋण सेवा की लागत के मूल्य को भी बढ़ा रही है। दिसंबर 2017 के अंत में, पाकिस्तान का बाहरी सार्वजनिक ऋण 70.51 बिलियन डॉलर था, जो जून 2018 के अंत में 75.35 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। वित्त वर्ष 18 में, विदेशी ऋण सेवा पर 5.62 बिलियन डॉलर खर्च किए गए थे। डॉलर की विनिमय दर में वृद्धि के चलते, पाकिस्तान के कर्ज के साथ-साथ ऋण सेवा लागत चालू वित्त वर्ष में भी बढ़ेगी, भले ही कोई नया ऋण नहीं लिया गया हो। ऋण में वृद्धि पूंजी के बहिर्गमन को प्रोत्साहित कर सकती है, क्योंकि निवेशकों को सरकार की ओर से अब नकारात्मक प्रतिक्रिया का डर बना रहेगा।

अमेरिका में कम ब्याज दरों ने विकासशील देशों को विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए आसान बना दिया था। हालांकि अब अमेरिका में ब्याज दर में वृद्धि के चलते, पाकिस्तान जैसे विकासशील देशों को विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिए उच्च ब्याज दरों और जोखिम प्रीमियम की पेशकश करनी होगी। पाकिस्तान की नई सरकार अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड बाजार से धन जुटाने पर विचार कर रही है, परन्तु डॉलर की विनिमय दर में वृद्धि के कारण बांड पर रिटर्न की उच्च दर से वापसी करनी होगी।

अमेरिका और साथ ही कुछ अन्य अर्थव्यवस्थाओं में ब्याज दरों के ऊपर की ओर बढ़ने के उत्तर के रूप में, स्टेट बैंक आॅफ पाकिस्तान ने मई 2018 में पॉलिसी रेट 50 आधार अंक बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत कर दिया और जुलाई 2018 में इसे और भी बढ़ाकर 7.50 प्रतिशत कर दिया। यह संभावना बनी हुई है कि आगामी मौद्रिक नीति वक्तव्य में पॉलिसी रेट में और भी वृद्धि की जाएगी, परन्तु ब्याज दरों में वृद्धि के अपने साइड इफेक्ट हैं। जहाँ एक ओर यह ऋण बोझ में वृद्धि करता है, वहीं दूसरी ओर संकुचन कारी मौद्रिक नीति आर्थिक विकास पर रोक लगाने का काम भी करती है।

डॉलर की मूल्य वृद्धि का प्रभाव : चूंकि अधिकांश अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लेनदेन में अमेरिकी डॉलर का उपयोग करते हैं, इसलिए डॉलर की विनिमय दर में वृद्धि कमोडिटी की कीमतों में स्वत: वृद्धि करेगी। चूंकि पाकिस्तान अनिवार्य रूप से एक वस्तु निर्यातक है, अत: निर्यात के इकाई मूल्य में वृद्धि होगी, परन्तु यहाँ भी पाकिस्तान के लिए उत्साहवर्धक बात नहीं है, क्योंकि कीमतों में बढ़ोतरी कपास और चावल जैसी गैर-तेल वस्तुओं की मांग को कम कर देगी, जिस पर पाकिस्तान का निर्यात प्रदर्शन मुख्यत: निर्भर है।

दूसरी तरफ तेल की कीमतों में वृद्धि पाकिस्तान के आयात बिल को बढ़ाएगी, क्योंकि पेट्रोलियम उत्पाद प्रमुख आयात सामान हैं। नतीजतन, पाकिस्तान, जो 2017-18 में 37.67 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा था, व्यापार असंतुलन को और भी खराब कर सकता है। डॉलर की विनिमय दर में वृद्धि का एक और परिणाम पाकिस्तानी रुपये का मूल्यह्रास है। दिसंबर 2017 के बाद से रुपये में 17 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। मुद्रा में मूल्यह्रास का सीधा सम्बन्ध महंगाई से भी है। वित्त वर्ष 18 में औसत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) 3.9 प्रतिशत और थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) 3.5 प्रतिशत की मुद्रास्फीति के दर पर चल रहे थे। हालांकि, मई 2018 के बाद से, सीपीआई दर बढ़ रही है, जो अगस्त 2018 के लिए वर्ष-दर-वर्ष की वृद्धि दर 5.8 प्रतिशत पर बनी हुई है। इसी तरह अप्रैल 2018 के बाद से डब्ल्यूपीआई भी बढ़ रहा है और अगस्त 2018 तक इसकी सालाना विकास दर 11 प्रतिशत के लगभग बनी हुई है, जो स्थिति की गंभीरता को प्रकट करती है।

तेल का खेल : तेल की कीमतों में फिर से वृद्धि का दौर आता दिख रहा है। वर्ष 2015, 2016 और 2017 में औसतन प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत क्रमश: 49.50, 40.68 और 52.51 डॉलर थी, लेकिन इसकी तुलना 2018 की कीमतों से करें तो जून, जुलाई और अगस्त 2018 के अंत में औसत प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत क्रमश: 71.98 डॉलर, 72.67 डॉलर और 71.08 डॉलर थी। तेल की कम कीमतों ने पाकिस्तान को विकास के लिए आवश्यक पूंजीगत उपकरणों की खरीद में वृद्धि करने में सक्षम बनाया, परन्तु अब यह लाभ नहीं मिल सकेगा। पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से ऋण लेने का भी दबाव है। परन्तु ऐसे संस्थान ऋण देने के पहले मितव्ययिता की मांग करते हैं। अब यदि विशेषज्ञों की मानें तो एक साल में विकास खर्च में 500 अरब रुपये की भारी कटौती आर्थिक विकास की गति को 3.5 प्रतिशत तक धीमा कर देगी और बेरोजगारी की दर 9.5 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। जबकि पीटीआई सरकार ने पांच साल में 10 मिलियन नौकरियां बनाने का वादा किया है और इस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र के खर्च में कटौती से लक्ष्य हासिल करना मुश्किल हो जाएगा।

कितना कर्ज : पाकिस्तान के ऋण के बोझ में अनेक प्रकार की देयताएं सम्मिलित हैं। कुल ऋण और देनदारियों में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (पीएसई) ऋण, गैर-सरकारी बाह्य ऋण और विदेशों में प्रत्यक्ष निवेशकों से अंतर-कंपनी बाहरी ऋण भी शामिल है। एसबीपी ऋण बुलेटिन के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष में, पाकिस्तान के कुल ऋण और देनदारियों में 4.9 ट्रिलियन रुपये की वृद्धि हुई, जो 18.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। देनदारियों को छोड़कर देश का कुल कर्ज 28.4 ट्रिलियन रुपये हो गया, जो पिछले पांच साल में ऋण भंडार में 12.9 ट्रिलियन या 82.6 प्रतिशत की वृद्धि है।

पिछले पांच सालों में 6.9 ट्रिलियन रुपये के अतिरिक्त घरेलू ऋण के साथ कुल घरेलू ऋण 16.4 ट्रिलियन रुपये हो गया। सर्वाधिक तेज गति से वृद्धि सरकारी स्वामित्व वाले उपक्रमों के ऋणों में हुई है जो 242 प्रतिशत है। पीएसई का कर्ज 2013 में केवल 312 अरब रुपये था, जो पिछले सरकार के कार्यकाल के अंत में खतरनाक रूप से 1 ट्रिलियन रुपये हो गया था। और यह 1.1 ट्रिलियन के कर्ज, जो अभी तक बजट में शामिल नहीं हुए हैं, अंतत: करदाताओं द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा।

वित्तीय वर्ष 2017-18 के अंत तक देश का कुल बाह्य ऋण 11 ट्रिलियन रुपये तक पहुंच गया, जो कि पिछले पांच वर्षों में 5.2 ट्रिलियन रुपये का शुद्ध परिवर्धन है। एसबीपी के मुताबिक, सरकार का बाहरी ऋण 4.4 ट्रिलियन से बढ़कर 7.8 ट्रिलियन हो गया। 2013 में गैर-सरकारी बाह्य ऋण, जो कि 649 अरब रुपये था, बढ़कर 1.9 ट्रिलियन रुपये हो गया, जो कि 1.3 ट्रिलियन रुपये की भरी बढ़ोतरी दिखा रहा है। उल्लेखनीय है गैर-सरकारी ऋण में वृद्धि के मुख्य कारणों में से एक था पूर्व वित्त मंत्री इशाक दर का सार्वजनिक ऋण की परिभाषा से विदेशी ऋण की कुछ श्रेणियों को बाहर करने का निर्णय। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से पाकिस्तान द्वारा लिया गया ऋण भी 2013 में 435 अरब रुपये से बढ़कर पिछले वित्त वर्ष के अंत में 741 अरब रुपये हो गया। इंटर-कंपनी बाहरी ऋण पांच साल में 308 अरब रुपये से बढ़कर 473.4 अरब रुपये हो गया। इसके अलावा घरेलू देनदारियां 470 अरब रुपये से बढ़कर 819 अरब रुपये हो गईं। पांच साल में बाहरी देनदारी 308 अरब रुपये से बढ़कर 622 अरब रुपये हो गई। 2013 में, कुल देनदारियां जीडीपी के 3.5 प्रतिशत के बराबर थीं, जो अब पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद का 4.2 प्रतिशत हो गई है।

ऋण पर ब्याज भुगतान, जो पांच साल पहले 996 अरब रुपये था, पिछले वित्त वर्ष के अंत में 1 ट्रिलियन रुपये हो गया था। सरकार ने घरेलू ऋण पर ब्याज भुगतान में 1.33 ट्रिलियन और बाहरी ऋण पर 172.4 अरब रुपये का भुगतान किया, जो काफी अधिक है। मुद्रा के मूल्यह्रास ने बाहरी ऋण सेवा की लागत में भी काफी वृद्धि की है। पाकिस्तान की सरकार दिवालियेपन की कगार पर कड़ी है। उसे तुरंत धन की आवश्यकता है नहीं तो वह अपनी देयताओं के भुगतान में चूक सकती है जो उसकी बदतर आर्थिक स्थिति के लिए और भी बुरा हो सकता है। पाकिस्तान के पुराने सहयोगी अमेरिका ने भी अपने हाथ खींच लिए हैं और चीन जो इस समय उसका सबसे विश्वसनीय सहयोगी है, इस स्थिति पर नजर गढ़ाए हुए है। हालांकि debt को equality में परिवर्तित करने में चीन का शानदार रिकॉर्ड रहा है, परन्तु ऐसी स्थिति जहाँ एक ओर पाकिस्तान की संप्रभुता पर गंभीर आघात करेगी, वहीं दूसरी ओर भारत के लिए सामरिक रूप से नई चिंताएं पैदा कर सकती है।

(लेखक पाकिस्तान मीडिया स्कैन के एसोसिएट एडीटर एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के रिसर्च फैलो हैं)

Updated : 26 Sep 2018 2:02 PM GMT
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