Home > स्वदेश विशेष > आखिर प्यादे से ही पिट गए वजीर

आखिर प्यादे से ही पिट गए वजीर

गुना में सिंधिया की हार

आखिर प्यादे से ही पिट गए वजीर
X

भोपाल/विशेष प्रतिनिधि। ग्वालियर अंचल के 'महाराजÓ चुनाव हार गए हैं। यह भारतीय लोकतंत्र का एक असाधारण ऐतिहासिक जनादेश है। यह जनादेश इसलिए और रेखांकित करने योग्य है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने जब संसदीय क्षेत्र से डॉ. केपी यादव को अपना प्रत्याशी घोषित किया था, तब यह एक बड़े वर्ग में माना जा रहा था कि डॉ. यादव बेहद कमजोर प्रत्याशी हैं और पार्टी ने गुना में श्री सिंधिया को खाली मैदान दे दिया है। लेकिन अभी-अभी तक श्री सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि रहे डॉ. यादव की जीत ने दो राजनीतिक मान्यताएं स्थापित कर दी, एक गुना में भी मोदी की प्रंचड लहर थी और दूसरा स्वयं श्री सिंधिया के प्रति भी क्षेत्र में जबरदस्त नाराजगी थी। मोदी लहर तो देश भर में थी, इसलिए इसे अभी यहां छोड़ देते हैं। बात करते हैं सिंधिया के प्रति आक्रोश की। कारण यह महत्वपूर्ण इसलिए है कि सिंधिया राजवंश के प्रति अंचल में गहरी आस्था है। यह आस्था लहर में डूबती नहीं, आंधी में उड़ती नहीं। यह विगत का इतिहास बताता है। फिर श्री सिंधिया की छवि एक निष्क्रिय सांसद की नहीं है। केन्द्र में मंत्री हो या सांसद सिंधिया क्षेत्र से जुड़े रहे। महाराज की छवि से निकलने का योजनाबद्ध प्रयास भी करते दिखाई दिए। भ्रष्टाचार का दाग नहीं। अत: श्री सिंधिया चुनाव हारेंगे, यह सिंधिया विरोधी भी नहीं मानते थे। पर जमीन से जुडऩे वे अभ्यास में लगे सिंधिया शायद इस बार यह जान गए थे कि मामला गड़बड़ है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश वह मुंह दिखाने गए, जहां की कमान उनके मित्र कम बॉस याने राहुल गांधी ने उन्हें दी थी। गुना में खुद ही नहीं डटे अपनी पत्नी श्रीमती प्रियदर्शनी राजे को भी मैदान में इस प्रकार उतार दिया जैसे पार्षद का चुनाव लड़ रहे हों। कांग्रेसी कार्यकर्ता नेता हैरान, परेशान थे, कारण वे खुद उनके नाम पर ही राजनीति चमकाते रहते हैं, अत: गर्मी में पसीना बहाने के लिए वह तैयार नहीं थे। लेकिन लगना पड़ा, पर सिंधिया हार गए और अच्छे खासे हार गए।

गुना जिले की एक विधानसभा है, बमोरी। यह विधानसभा कांग्रेस की परंपरागत विधानसभा मानी जाती है। बमोरी के उमरी में एक रामू आदिवासी से चुनावी दौर में बातचीत का मौका मिला पूछा था, क्या हाल है इस बार। रामू ने कहा, हम हर बार महाराज को ही वोट देते हैं, अन्न दिया तो नहीं है, पर हम अन्नदाता मानते हैं। राजमाता हमारी भी माँ थीं। पर, जब से श्री सिंधिया ने संसद में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में देशद्रोही नारे लगाने वालों का समर्थन किया तब से हमारे दिल से उतर गए। रामू सरकारी मापदंड से निरक्षर है। पर देश के प्रति जागरुकता कितनी गहरी है और वह कितने कथित साक्षरों पर भारी है, यह उसकी भावना बताती है। गुना संसदीय क्षेत्र में यह गहरे से अनुभव किया गया कि अपने मालिक याने अध्यक्ष को प्रसन्न करने के लिए श्री सिंधिया की अनर्गल बयानबाजी को लेकर क्षेत्र में नाराजगी थी।

यही नहीं श्री सिंधिया के कथित विकास का सच समझाने में भी भाजपा संगठन सफल रहा। रणनीतिक तौर पर सिंधिया के खिलाफ व्यक्तिगत आरोप से बचा गया और विकास के ही मुद्दे पर उन्हें घेरा गया।

इधर श्री सिंधिया ने बसपा उम्मीदवार को बिठाकर आ बैल मुझे मार का काम किया। बचीखुची कसर सिंधिया के सिपहसालारों ने पूरी की। श्री सिंधिया को यह समझना होगा उनके समर्थक, परजीवी है, वह उनसे मदद ले सकते हैं, उन्हें राजनीतिक ताकत देने की स्थिति में नहीं हैं। कतिपय नेताओं के खिलाफ तो आक्रोश भी है।

यह भी एक सच है कि बेशक सिंधिया हर माह क्षेत्र में आएं, पर कोई एक सामान्य मतदाता अपनी मर्जी से उनसे मिलने की सोच नहीं सकता। बीच में कई दरवाजे आज भी हैं। भाजपा संगठन ने इसी आधार पर अपनी रणनीति तय की। एक खामोशी के साथ योजनाबद्ध चुनाव लड़ा गया और प्यादे से बजीर पिट गया।

Updated : 28 May 2019 2:41 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh News

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top