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एक मई को 'दो जून' की रोटी के लिए पसीना बहाते रहे मजदूर

-तपती धूप और कुछ सौ रुपये की दिहाड़ी, काहे का मजदूर दिवस

एक मई को दो जून की रोटी के लिए पसीना बहाते रहे मजदूर
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नई दिल्ली। मजदूर दिवस (मई दिवस) पर यहां दो जून की रोटी की जुगाड़ के लिये तमाम मजदूर भीषण गर्मी के बावजूद पसीना बहाते रहे। कई होटलों में भी श्रमिक जूठे बर्तन धोते नजर आये। सैकड़ों गरीब परिवार 45 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर मौरंग ढोते रहे। तमाम सरकारी योजनाओं के बाद भी मजदूरों के जीवन में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है।

पूरे विश्व में एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है लेकिन मजदूरों को इस दिवस के बारे में कोई जानकारी नहीं है। रोज की तरह सुबह से मजदूर दो जून की रोटी की जुगाड़ के लिये घर से निकले और तपती धूप के बावजूद वह पसीना बहाते रहे। होटलों और चाय की दुकानों में ही छोटी उम्र के लोगों को काम करते देखा गया। होटलों व दुकानों में श्रमिकों (नौकर) को जूठे बर्तन और गिलास बड़े ही उत्साह के साथ धोते देखा गया।

नगर के बस स्टाप, धर्मशाला, अस्पताल रोड समेत कई स्थानों पर खुले होटल और दुकानों में मई दिवस पर नाबालिग भी पसीना बहाते रहे। यह ही नहीं औद्योगिक क्षेत्र में संचालित फैक्ट्रियों में भी मजदूर काम करते रहे जबकि रोड किनारे तंबू लगाकर बैठे गरीब मजदूर भी भीषण गर्मी में हथौड़ा चलाते रहे। जिले के तमाम इलाकों में भी मजदूरों को परिवार के भरण पोषण के लिये 45 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर फावड़े चलाते देखा गया।

हम आपको बता दें कि सैकड़ों गरीब परिवारों पेट की भूख मिटाने के लिये सुबह से ही ये लोग मौरंग ढो रहे है। साथ ही परिवार का पेट भरने के लिए आज के दिन भी कुछ सौ रुपये में काम करने की मजबूरी है तो काहे का मजदूर दिवस।

मजदूर दिवस कब मनाना शुरू हुआ

भारत में मजदूर दिवस सबसे पहले चेन्नई में 1 मई 1923 को मनाना शुरू किया गया था। उस समय इसे मद्रास दिवस के तौर पर प्रमाणित कर लिया गया था। इसकी शुरुआत भारती मज़दूर किसान पार्टी के नेता कामरेड सिंगरावेलू चेट्यार ने की थी। भारत में मद्रास के हाईकोर्ट सामने एक बड़ा प्रदर्शन किया और एक संकल्प के पास करके यह सहमति बनाई गई कि इस दिवस को भारत में भी 'कामगार दिवस' के तौर पर मनाया जाये और इस दिन छुट्टी का ऐलान किया जाये। भारत समेत लगभग 80 मुल्कों में यह दिवस पहली मई को मनाया जाता है। इसके पीछे तर्क है कि अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस मनाने की शुरुआत 1 मई 1886 से मानी जाती है जब अमेरिका की मज़दूर यूनियनों ने काम का समय 8 घंटे से ज़्यादा न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी।

Updated : 1 May 2019 11:57 AM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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