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वर्ष 1980 से 2010 के दौरान विदेश में कालाधन

वर्ष 1980 से 2010 के दौरान विदेश में कालाधन
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विदेशी बैंकों में भारतीय नागरिकों का कितना कालाधन जमा है, इस सिलसिले में कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन हाल ही में तीन अध्ययनों ने दावा किया है कि वर्ष 1980 से 2010 के दौरान भारतीयों का करीब 15 लाख करोड़ से लेकर 35 लाख करोड़ रुपए तक कालाधन विदेषी बैंकों में जमा हो सकता है। कालाधन का यह अनुमान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फायनेंस एंड पाॅलिसी, एनसीएईआर और एनआईएफएम ने लगाया है। इन अध्ययनों ने यह भी कहा है कि सबसे ज्यादा कालाधन भूमि एवं भवन कारोबार, दवा उद्योग, पान मसाला, गुटखा, तंबाकू, बुलियन, वस्तु व्यापार, फिल्म और षिक्षा क्षेत्रों में लगा है। कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली स्थाई समिति की रिपोर्ट में भी यही बात सामने आई है। इस समिति ने सोलहवीं लोकसभा भंग होने से पहले तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को 28 मार्च 2019 को यह रिपोर्ट सौंप दी थी, 'स्टेटस ऑफ अनएकाउंटेड इनकम वेल्थ वोथ इनसाइड इंडिया एंड आउटसाइड द कंट्री' शीर्षक वाली यह रिपोर्ट सत्रहवीं लोकसभा के वर्तमान सत्र में पेश की गई है।

संसदीय रिपोर्ट के अनुसार, कालेधन के सृजित व जमा होने के संबंध में न तो कोई विश्वसनीय आंकड़े है और न ही अनुमान लगाने का कोई सर्वमान्य तरीका प्रचलन में है। अब तक जो अनुमान लगाए गए हैं, उनमें भी न तो एकरूपता है और न ही गणना के तरीके को लेकर आमराय है। बावजूद यह सही है कि देश और देश के बाहर कालाधन बड़ी मात्रा में मौजूद है। जो ताजा रिपोंर्टे आई हैं, यह देश की जीडीपी का सात प्रतिशत से लेकर 120 प्रतिशत तक हो सकती है। हालांकि मोदी सरकार ने कालेधन पर अंकुश के लिए 'कालाधन अघोशित विदेशी आय एवं जायदाद और आस्ति विधेयक-2015' और कालाधन उत्सर्जित ही न हो, इस हेतु 'बेनामी लेनदेन ;निशेधद्ध विधेयक अस्तित्व में ला दिए हैं। ये दोनों विधेयक इसलिए एक दूसरे के पूरक माने जा रहे थे, क्योंकि एक तो आय से अधिक काली कमाई देष में पैदा करने के स्रोत उपलब्ध हैं, दूसरे इस कमाई को सुरक्षित रखने की सुविधा विदेशी बैंकों में हासिल है। लिहाजा कालाधन फल फूल रहा है। दोनों कानून एक साथ वजूद में आने से यह उम्मीद जगी थी कि कालेधन पर कालांतर में लगाम लगेगी, लेकिन नतीजा ढांक के तीन पात रहा। दरअसल कालेधन के जो कुबेर राश्ट्र की संपत्ति राश्ट्र में लाकर बेदाग बचे रहना चाहते हैं, उनके लिए अघोशित संपत्ति देष में लाने के दो उपाय सुझाए गए हैं। वे संपत्ति की घोषणा करें और फिर 30 फीसदी कर व 30 फीसदी जुर्माना भर कर षेश राषि का वैध धन के रूप में इस्तेमाल करें। इस कानून में प्रावधान है कि विदेशी आय में कर चोरी प्रमाणित हाती है तो 3 से 10 साल की सजा के साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसी प्रकृति का अपराध दोबारा करने पर तीन से 10 साल की कैद के साथ 25 लाख से लेकर एक करोड़ रुपए तक का अर्थ-दण्ड लगाया जा सकता है। जाहिर है,कालाधन घोशित करने की यह कोई सरकारी योजना नहीं थी। अलबत्ता अज्ञात विदेषी धन पर कर व जुर्माना लगाने की ऐसी सुविधा थी, जिसे चुका कर व्यक्ति सफेदपोष बना रह सकता है। ऐसा ही उपाय प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने देषी कालेधन पर 30 प्रतिषत जुर्माना लगाकर सफेद करने की सुविधा दी थी। इस कारण सरकार को करोड़ों रुपए बतौर जुर्माना मिल गए थे, और अरबों रुपए सफेद धन के रूप में तब्दील होकर देष की अर्थव्यस्था मजबूत करने के काम आए थे।

कालाधन उत्सर्जित न हो, इस हेतु दूसरा कानून बेनामी लेनदेन पर लगाम लगाने के लिए लाया गया था। यह विधेयक 1988 से लंबित था। इस संषोधित विधेयक में बेनामी संपत्ति की जब्ती और जुर्माने से लेकर जेल की हवा खाने तक का प्रावधान है। साफ है,यह कानून देष में हो रहे कालेधन के सृजन और संग्रह पर अंकुष लगाने के लिए था। यह कानून मूल रूप से 1988 में बना था। लेकिन अंतर्निहित दोशों के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका। इससे संबंधित नियम पिछले 27 साल के दौरान नहीं बनाए जा सके। नतीजतन यह अधिनियम धूल खाता रहा। जबकि इस दौरान जनता दल, भाजपा और कांग्रेस सभी को काम करने का अवसर मिला। इससे पता चलता है कि हमारी सरकारें कालाधन पैदा न हो, इस पर अंकुष लगाने के नजरिए से कितनी लापरवाह रही हैं। सबकुल मिलाकर मोदी सरकार यह जताने में तो सफल रही कि वह कालेधन की वापसी के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन ला नहीं पाई।

सरकार का दावा है कि अंतरराश्ट्रीय दबाव और भारत के निवेदन पर स्विट्जरलैंड सरकार से जो समझौते हुए हैं, उनके तहत स्विस बैंकों में भारतीयों के खातों की जानकारी मिलना षुरू हो जाएगी। जो अब मिलना षुरू हो जाएगी। स्विट्स अधिकारियों ने कम से कम पचास भारतीयों के स्विट्जरलैंड के बैंकों में खाते की जानकारी साझा करने की प्रक्रिया षुरू कर दी है। दोनों देशों एवं प्रवर्तन एजेंसियों ने गैरकानूनी धन जमा करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ नकेल कसना शुरू कर दी है। दरअसल स्विट्रलैंड ने कालाधन की पनाहगाह की अपनी छवि सुधारने के लिए कुछ वर्शों में कई सुधार किए हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद दोनों देषों ने अपने संबंध मजबूत बनाने के लिए 'ग्लोबल आॅटोमेटिक एक्सचेंज आॅफ इंफोरमेषन' संधि पर हस्ताक्षर भी किए हैं। इस संधि के तहत ही पचास भारतीय खाताधारकों की सूचना भारतीय अधिकारियों को देते हुए उन्हें अपील का अंतिम अवसर भी दिया है। प्रेस ट्रस्ट आॅफ इंडिया ने इन नामों को उजागर भी कर दिया है। इस समाचार में कुछ नामों के संकेत षुरूआती अक्षर के रूप में ही दिए गए हैं। दरअसल स्विट्जरलैंड के गोपनीय कानून के मुताबिक नाम के पहले अक्षर, जन्म तिथि और उनकी राश्ट्रीयता सार्वजनिक की जाती है।

यदि इस जानकारी के मिलने के बाद भी कालेधन की वापसी शुरू नहीं हुई तो सरकार के लिए कालांतर में समस्या खड़ी हो सकती है ? हालांकि ये जानकारियां स्विट्जरलैंड के यूबीए बैंक के सेवानिवृत् कर्मचारी ऐल्मर ने एक सीडी बनाकर जग जाहिर कर दी हैं। इस सूची में 17 हजार अमेरिकियों और 2000 भारतीयों के नाम दर्ज हैं। अमेरिका तो इस सूची के आधार पर स्विस सरकार से 78 करोड़ डाॅलर अपने देष का कालाधन वसूल करने में सफल हो गया है। ऐसी ही एक सूची 2008 में फ्रांस के लिष्टेंस्टीन बैंक के कर्मचारी हर्व फेल्सियानी ने भी बनाई थी। इस सीडी में भी भारतीय कालाधन के जमाखोरों के नाम हैं। ये दोनों सीडियां संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान ही भारत सरकार के पास आ गई थीं। इन्हीं सीडियों के आधार पर राजग सरकार कालाधन वसूलने की कार्रवाई को आगे बढ़ा रही है। लेकिन बीते चार सालों में सरकार एसआईटी के गठन और दो नए कानून बना देने के बाबजूद इस दिषा में कोई कारगर पहल नहीं कर पाई और न ही सूची में दर्ज नाम सार्वजनिक किए। इससे यह संषय बना हुआ है कि जनवरी 2019 के बाद भी कालेधन की वापसी स्विस बैंकों से हो पाएगी ?

Updated : 28 Jun 2019 1:21 PM GMT
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प्रमोद भार्गव

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