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देश में लोकतंत्र की स्थापना के लिए चुनाव चिन्ह हटना जरूरी: अन्ना हजारे

आजादी का दूसरा आंदोलन चलाएंगे अन्ना

देश में लोकतंत्र की स्थापना के लिए चुनाव चिन्ह हटना जरूरी: अन्ना हजारे
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नई दिल्ली। रालेगढ़ के संत से प्रख्यात प्रमुख समाज सेवी अन्ना हजारे ने कहा है कि अंग्रेज भारत से चले गए लेकिन सही मायने में अभी भी देश में लोकतंत्र स्थापित नहीं हुआ। लोकतंत्र लाने के लिए आजादी का दूसरा आंदोलन करना पड़ेगा। अन्ना ने कहा कि संविधान में कहीं भी राजनीतिक पक्ष या पार्टी का उल्लेख नहीं है तो फिर राजनीतिक दलों के लिए यह चिन्ह कहां से आ गया? उन्होंने कहा कि यह चिन्ह हट गया तो लोकतंत्र आ जाएगा। आजादी के लिए कुर्बानियां देने वालों का सपना था कि अंगे्रजों को बाहर कर लोकतंत्र स्थापित किया जाए लेकिन, पक्ष और पार्टियों ने लोकतंत्र को आने नहीं दिया। संसद के अंदर और बाहर पक्ष और समूह बन गए जिन्होंने भ्रष्टाचार को जन्म दिया। भ्रष्टाचार के पालन-पोषण के चलते गुंडागर्दी बढ़ी और समूहों को नियंत्रण में लेने के लिए समाज में जातिवाद का जहर घोल दिया गया। आरटीआई, लोकपाल और लोकायुक्त जैसे कानून की रचना में अन्ना की विशिष्ट भूमिका रही है। आंदोलन का दूसरा नाम ही अन्ना है। अन्ना इसी हठ के चलते अब राजनीतिक पार्टियों से चिन्ह हठवाने की मांग को लेकर उग्र हो गए हैं। अन्ना रविवार को 'पक्ष विहीन गणतंत्र के लिए भारत' विषय पर आयोजित सम्मेलन में शिरकत करने आए थे। इस मौके पर उन्होंने 'स्वदेश' के साथ बातचीत की। व्यस्ततम समय में कुछ सवाल भी लिए। प्रस्तुत है बातचीत के अंश -

सवाल: आप आजादी की किस दूसरी लड़ाई की बात कर रहे हैं?

अन्ना हजारे: पहली लड़ाई 1857 से 1947 तक चली जिसमें अंग्रेजों को बाहर खदेड़ दिया। लेकिन, चुनाव आयोग ने 1952 में राजनीतिक दलों को चिन्ह देकर सबसे बड़ी भूल की, जिसके चलते लोकतंत्र पक्ष या पार्टी ने लोगों के अधिकार छीन लिए औश्र तंत्र पर ख्ुाद का कब्जा जमा लिया। मेरा मानना है कि अगर यह चिन्ह हट गया तो सही मायने में लोकतंत्र स्थापित हो जाएगा।

सवाल: चिन्ह के खिलाफ आप किस तरह की लड़ाई लड़ने जा रहे हैं? और इसके लिए अब कौन सा कानून लाने जा रहे हैं?

अन्ना हजारे: मैने देश और समाज के लिए लंबी लड़ाइयां लड़ी हैं। अब तक 11 कानून पारित करवाए लेकिन मुझे लगता है कि असली लड़ाई अभी बाकी है। हम चुनाव आयोग से इस मसले पर पांच बार मिल चुके हैं। लिखित में आवेदन किया, आयोग से जवाब भी आया लेकिन, समाधान नहीं निकला। मैं चुनाव आयोग को चुनौती देता हूं कि इसके लिए देशव्यापी आंदोलन चलेगा और जेलों में इतने युवा गिरफृतारी देंगे कि जगह कम पड़ जाएगी।

सवाल: राजनीतिक दल के बिना शासन संचालन का क्या विकल्प हैं आपके पास?

अन्ना हजारे: इसके लिए हम ठोस व प्रमाणिक विकल्प प्रस्तुत कर रहे हैं। पहले चुनाव आयोग पार्टियों के नाम से चिन्ह हटाए। उम्मीदवार का नाम और उसकी फोटो केवल प्रस्तुत की जाए ताकि मतदाता अपना मत देते समय केवल उम्मीदवार को जाने न कि पार्टी या दल को। मतदाता का संबंध सीधे उसके क्षेत्र के प्रतिनिधि से होना चाहिए न कि पार्टी या पक्ष से।

सवाल: बिना पार्टी या चिन्ह के आप इतने बड़े देश पर कैसे शासन चलाने की बात कर रहे हैं? आभासी या कल्पना में तो यह बात ठीक लगती है पर क्या वास्तविक धरातल पर यह संभव है?

अन्ना हजारे: देश में साढ़े छह लाख गांव हैं और हम निचले स्तर पर पंचायतों में बिना चिन्ह के उम्मीदवार उतारने जा रहे हैं। लोकतंत्र में यह पहला और अनूठा प्रयोग है। आप देखिएगा, लोग आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि इस व्यवस्था से वे सही और उपयुक्त प्रतिनिधियों को चुन सकेंगे। लोग जागरूक होंगे तो यह निकाय उपर तक बदलेगा।

सवाल: कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी क्या इसके लिए सहज तैयार हो जाएगी। जबकि वह अपनी कायाकल्प बदलने के लिए संघर्ष कर रही है।

अन्ना हजारे: आजादी मिलने के तुरंत बाद गांधी जी ने कांग्रेस को समाप्त करने की बात कही थी लेकिन कांग्रेस के कुछ स्वार्थी लोगों ने उनकी बात नहीं मानी। अगर कुछ लोगों को लगता है कि हमारी लड़ाई संवैधानिक नहीं है या वे हमसे असहमत हैं तो ऐसे लोग सामने आकर मुझसे बहस कर सकते हैं।

सवाल: आप आजादी के जिस दूसरे आंदोलन की बात कह रहे हैं, कहीं ऐसा न हो कि अरविंद केजरीवाल की तरह कोई दूसरा अवसरवादी तत्व इस आंदोलन की फसल न काट ले जाए।

अन्ना हजारे: नहीं ऐसी कोई बात नहीं। जनता दोबारा ऐसे किसी दूसरे व्यक्ति को अवसर नहीं देने जा रही। मैने तो केजरीवाल को उसी समय चुनाव नहीं लड़ने को लेकर पत्र लिखा था, आज भी कहता हूं पर उनको चुनाव लड़ने का नशा सवार हो गया है। यह ऐसा नशा है जो एक बार चढ़ जाए फिर उतरने का नाम नहीं लेता।

Updated : 17 Sep 2019 1:33 PM GMT
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