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ईश्वर प्राप्ति का सुगम साधन है संगीत: तारे

अखिल भारतीय मधुकर सम्मान समारोह आयोजित

ईश्वर प्राप्ति का सुगम साधन है संगीत: तारे
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दतिया ब्यूरो। ईश्वर की प्राप्ति तपस्या से ही संभव है। तपस्या के माध्यम कई हैं पर इनमेें से सर्वाधिक सुगम साधन संगीत ही है। संगीत एवं आध्यात्म का गहन रिश्ता है। उक्त विचार स्वदेश ग्वालियर के समूह सम्पादक अतुल तारे ने गहोई वाटिका सीतासागर में आयोजित मधुकर सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए। कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के 12 लोगों को मधुकर सम्मान दिया गया। इस अवसर पर बुन्देली के फाग लेखक डॉ.हरी कृष्ण हरी की पुस्तक का विमोचन भी हुआ।

श्री तारे ने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति में संगीत सृष्टि के प्रारंभ से ही है। ब्रह्माजी ने देवी सरस्वती को दिया ओम का नाम हमने ही सुना। उन्होंने कहा जीवन में आज शास्त्रीयता का क्षरण हो रहा है। हम धैर्य खो रहे हैं। शास्त्रीय संगीत जीवन में संस्कार एवं अनुशासन लाता है। उन्होंने आयोजन संकल्पना की प्रशंसा की और कला साधकों को बधाई दी।

सर्वप्रथम माँ सरस्वती के चित्र पर अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके बाद श्रीमधुकरजी के बारे में परिचय डॉ. रामेश्वर प्रसाद गुप्ता द्वारा दिया गया। कार्यक्रम की भूमिका आयोजक विनोद मिश्र द्वारा रखी गई। अतिथियों का स्वागत पूर्व प्राचार्य ए.एम. सक्सैना, डॉ.लखनलाल सोनी, अरविन्द्र श्रीवास्तव, अरूण सिद्वगुरू, डॉ. कल्पना तिवारी, मंगल सिंह परमार, विनोद तिवारी, आशा मिश्रा, रविभूषण खरे द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन अनूप गोस्वामी द्वारा किया गया।

विशेष अतिथि के रूप में बोलते हुये पूर्व राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त अवधेश नायक ने कहा कि मधुकर मिश्रजी बहुआयामी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति थे। कला, इतिहास, चित्रकारी, कविता, संगीत, पुरातत्व सभी में पारंगत थे। वे दतिया के सैकड़ों बच्चों को संगीत गुरूकुल के माध्यम से दीक्षित कर गये। विशेष अतिथि के रूप में प्रख्यात ओडिसी नृत्यांगना, नई दिल्ली की डॉ.चंदना राउल ने कहा कि आज मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है कि माँ पीताम्बरा की नगरी में मुझे इतना बड़ा सम्मान प्राप्त हो रहा है। उन्होंने बताया कि 9 वर्ष की आयु से ही मैंने नृत्य करना सीखा। मेरे पिता को यह सब पसन्द नहीं था परन्तु मैंने कला को नहीं छोड़ा और प्रयास करती रही। इसी का परिणाम है कि आज देश-विदेश में मेरे कई कार्यक्रम हुये। उन्होंने कहा कि बच्चे आजकल पश्चिमी संस्कृति की नकल कर रहे हैं। अपनी जो संस्कृति है, शास्त्रीय नृत्य उसे आगे बढ़ाने के लिए हम सब को उनका सहयोग करना पड़ेगा, उन्हें भारतीय कला व संस्कृति से परिचित कराना होगा। कार्यक्रम को विशेष अतिथि समाजसेवी शिवचरण शर्मा ने भी सम्बोधित किया। इस दौरान मधुकर वाणी सम्पादक डॉ.अरविन्द्र श्रीवास्तव, बुन्देली के फाग लेखक डॉ.हरी कृष्ण हरी की पुस्तक का विमोचन हुआ।

अध्यक्षीय उद्बोधन में पूर्व शिक्षा मंत्री एवं साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय मंत्री रविन्द्र शुक्ल ने कहा कि जीवन में संस्कार शास्त्रीय संगीत ही लाता है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार दूध को गर्म करने से वह अधिक आयु प्राप्त करता है, और फिर संस्कार करने पर दही और नवनीत एवं घी मिलता है। इसी प्रकार शास्त्रीय संगीत भी हमें उच्चतम आदर्श स्थिति में लाता हैं। उन्होंने आगे कहा कि अब पश्चिम भी भारतीय संगीत के वैज्ञानिक महत्व को मान्यता दे रहा है।

समारोह में इनका हुआ सम्मान

अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन में उपस्थित अतिथियों द्वारा राष्ट्रीय मधुकर सम्मान डॉ.चंदना राउल, पखावज वादन में पण्डित लल्लूराम शुक्ल चित्रकूट, सितार वृन्द में प्रमोद सितार कला केन्द्र ग्वालियर में डॉ. संध्या प्रमोद बापट, तबला वादन में केतकी वैद्य (पुणे), शास्त्रीय गायन हर्षवर्धन दुबे दतिया, पखावज वादन में सुश्री प्रियंका मणी (वर्धा), शास्त्रीय गायन मेें श्रीमती कस्तूरी दातार अटावलकर (पूणे), मधुकर मिश्र की रचनाओं के प्रस्तुतिकरण में पं.हितेश मिश्रा लालजी, शास्त्रीय गायन में पं. सज्जनलाल ब्रहाभट्ट, सुश्री करूणाश्री (जयपुर), मधुकर बुन्देली संरक्षण सचिन चौधरी (भोपाल), मधुकर पुरातत्व सम्मान मजीत खां पठान (चन्देरी), मधुकर संगीत सृजक सम्मान डॉ. संध्या प्रमोद बापट (ग्वालियर), मधुकर शिक्षा सम्मान सुमित पुरोहित (दतिया) को दिया गया।

इस अवसर पर संतोष मिश्र, ऋषिराज मिश्र, पत्रकार संतोष तिवारी, विनीत मिश्र, सारंग मिश्र, धीरज साहू, विनोद सेन, डॉ.मुन्नीलाल शर्मा, श्वेता गोरे, गजेन्द्र धाकड़, गुलशन खान, रक्षा अग्रवाल, नारायण कुशवाहा, रिस्तूराज सेन, हरिराम साहू, पवन शर्मा, प्रदीप चतुर्वेदी, जाखिर हुसैन, राघवेन्द्र गुप्ता, अशोक नीखरा, महेश पाठक, अवधेश गुप्ता सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।

Updated : 26 Aug 2019 3:00 AM GMT
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