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बंगाल से दिल्ली तक उपद्रवियों के सिर पर किसका हाथ !

बंगाल से दिल्ली तक उपद्रवियों के सिर पर किसका हाथ !
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- सियाराम पांडेय 'शांत'

नागरिकता (संशोधन) कानून पर देश के कई राज्यों में कोहराम मचा हुआ है। विपक्ष को केंद्र सरकार को घेरने का मुद्दा मिल गया है। देश के मुस्लिम समुदाय को भड़काने की कोशिश की जा रही है। इस कानून का हिंसक विरोध असम, पश्चिम बंगाल और बिहार होते हुए दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद,अहमदाबाद और उत्तर प्रदेश तक पहुंच चुका है। विपक्ष इसे देशव्यापी बनाना चाहता है। केंद्र सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन क्या किया बवाल मच गया है। इस आंदोलन में राष्ट्रीय संपत्ति को भी खूब नुकसान हुआ है। कांग्रेस ने अपनी प्रेस वार्ता में जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों पर लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागने की तो बात की लेकिन उसे स्थिति को नियंत्रित करने में घायल हुए पुलिसकर्मी और दमकलकर्मी नजर नहीं आए। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिंसक प्रदर्शन में घायल डीआईजी, डीएसपी समेत कई पुलिसकर्मियों का चेहरा नजर नहीं आया। इस एकपक्षीय चश्मे से तो देश नहीं चलता।

जामिया मिलिया की कुलपति का कहना है कि पुलिस बिना अनुमति लिए विश्वविद्यालय कैम्पस में घुसी। इसलिए वे पुलिस के खिलाफ केस करेंगी। उन्होंने छात्र-छात्राओं के साथ हुए बर्बर व्यवहार की घोर निन्दा की। जामिया मिलिया के छात्रों के समर्थन में दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू के छात्र भी उतरे और जमकर विरोध किया। दिल्ली में रविवार को रातभर छात्रों ने पुलिस मुख्यालय घेरे रखा। सुबह गिरफ्तार छात्रों की बिना शर्त रिहाई के बाद ही लौटे। लखनऊ के नदवा विश्वविद्यालय के छात्रों ने पुलिस पर पथराव किया। पुलिस को भी भीड़ को तितर-बितर करने के लिए हवाई फायरिंग करनी पड़ी।

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल हो चुकी है। सोमवार को अदालत ने कहा कि पहले हिंसा रोकें तब सुनवाई करेंगे। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री भी कह चुके हैं कि देश में रह रहे एक भी मुस्लिम को नागरिकता कानून और एनआरसी से घबराने की जरूरत नहीं है। फिर देश के कई राज्यों में इस तरह के हिंसक आंदोलन का औचित्य क्या है? लगता नहीं कि इस देश के राजनीतिक दलों को सांविधानिक संस्थाओं के महत्व का रंच-मात्र भी ध्यान है। इस कानून के विरोध में जिस तरह असम में मुख्यमंत्री, मंत्री और भाजपा सांसदों के घरों पर हमले हुए हैं, क्या वह लोकतंत्र की गरिमा के अनुरूप है? पश्चिम बंगाल के कोलकाता, मुर्शिदाबाद, हावड़ा समेत कई जिलों में प्रदर्शनकारियों ने उग्र प्रदर्शन किया। रेलवे स्टेशनों और सरकारी दफ्तरों में तोड़फोड़ और आगजनी की। हिंसक भीड़ ने नेशनल हाइवे 34 को जाम कर 10 बसों में आग लगा दी थी। एक लोको शेड में खड़ी 5 खाली ट्रेनों को जला दिया गया।

ममता बनर्जी इन हिंसक घटनाओं को रोकने की बजाय उसमें अपनी उत्तेजक बयानबाजियों का घी डाल रही हैं। वे बंगाल की सड़कों पर विरोध मार्च कर रही हैं। नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ सरकारी खर्च पर विज्ञापन छपवा रही हैं। इससे समझा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में उपद्रवियों को कौन शह दे रहा है? उनका कहना है कि सिर्फ कुछ ट्रेनें जलाई गईं और बंगाल के अधिकतर जिलों में ट्रेनें रोक दी गईं। वे कहना क्या चाहती हैं कि सभी ट्रेनों को विरोधियों के हवाले कर देना चाहिए था जिससे कि वे उसमें अपनी सुविधा के हिसाब से आग लगा सकें? पूरे देश की परेशानी बढ़ा सकें। कायदतन तो संबंधित लोगों से सरकारी संपत्ति के नुकसान की क्षतिपूर्ति कराई जानी चाहिए।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रों ने जमकर हंगामा और पथराव किया। बचाव में भीड़ को खदेड़ने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। इस संघर्ष में 20 पुलिसकर्मी और तीस छात्र घायल हो गए। लखनऊ की इंट्रीगल यूनिवर्सिटी के छात्र भी सड़क पर आ गए थे, लेकिन पुलिस ने समय रहते मामले को संभाल लिया। पटना में कारगिल चौक के पास जिस तरह उपद्रवियों ने पुलिस चौकी, निजी और सरकारी वाहनों को आग के हवाले किया, यह रास्ता देश को विकास की राह पर तो नहीं ले जाता। अगर ऐसे लोगों पर पुलिस बल प्रयोग करती है तो उसे गलत कैसे ठहराया जा सकता है। पुलिस भी अपनी है और छात्र भी हमारे अपने हैं। अपनों से अपनों को लड़ाने वाले अपने को राष्ट्रभक्त कहेंगे भी तो किस मुख से?

सत्तारूढ़ दल कोई भी कानून बनाए, उस पर सभी की सहमति तो नहीं होती। संसद में व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही यह कानून बना है। संसद में अगर विपक्ष एकजुट होता तो यह कानून बनता ही नहीं। राज्यसभा में तो मोदी सरकार को बहुमत ही नहीं, फिर भी यह बिल पास हो गया। जाहिर है कि विपक्ष बिखरा हुआ है। अपनी खिसियाहट की आग में आम जन को झोंकना कहां तक उचित है? जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के छात्रों पर दिल्ली पुलिस की कार्रवाई के विरोध में देशभर के कई विश्वविद्यालयों के छात्र नाराज हैं। विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के कई छात्रों ने तो परीक्षा का भी बहिष्कार कर दिया है। हैदराबाद के मौलाना आजाद उर्दू विश्वविद्यालय तक जामिया हिंसा की आंच पहुंची। छात्रों ने आधी रात को प्रदर्शन किया और परीक्षाएं टालने की मांग की। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और कोलकाता की जादवपुर विश्वविद्यालय में भी ऐसा ही नजारा दिखा। मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के छात्रों ने भी इस घटना का विरोध किया और सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। नतीजतन, सरकार को विश्वविद्यालयों को एक खास अवधि तक बंद करने और वहां परीक्षा स्थगित करने का निर्णय लेना पड़ा है। इंटरनेट पर रोक लगानी पड़ रही है। लेकिन यह समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। इसके लिए और आगे बढ़कर सोचना होगा। उपद्रव और अराजकता के असल गुनहगार छात्र नहीं हैं। कुछ लोग पर्दे के पीछे से उन्हें बरगला रहे हैं। उन पर अंकुश लगाना होगा। देश को हुए नुकसान की भरपाई उनसे करनी होगी। जब तक ऐसा नहीं होगा, देश जलता ही रहेगा।

Updated : 18 Dec 2019 10:24 AM GMT
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