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असहिष्णुता एवं मॉब लिंचिंग का सच

असहिष्णुता एवं मॉब लिंचिंग का सच
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- वीरेन्द्र सिंह परिहार

मोदी सरकार के पहले दौर से लेकर दूसरे दौर की शुरुआत से भी असहिष्णुता और मॉब लिंचिंग की बात बड़े जोर-शोर से चल रही है। किसी मुसलमान पर जब कहीं कोई हमला होता है, चाहे वह उसके गलत कृत्यों के चलते हो या स्थानीय कारणों से हो, उसे मॉब लिंचिंग के नाम से जोर-शोर से प्रचारित किया जाता है। तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि जब किसी हिन्दू की हत्या तक हो जाती है तो उसकी कुछ ऐसे उपेक्षा कर दी जाती है। जैसे यह सब कुछ सहज स्वाभाविक हो रहा है। इस तरह का नजरिया विगत कई वर्षों से देखने को मिल रहा है। इस देश के तथाकथित धर्म निरपेक्षतावादियों और 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' मानसिकता वाले लोगों को इससे कहीं भी हिचक महसूस नहीं होती और वह पूरी बेशर्मी के साथ इस मुद्दे पर आये दिन शोर मचाते रहते हैं। इसी को लेकर पिछले दिनों 49 सेलिब्रिटीज की तथाकथित गैंग ने जिनमें अनुराग कश्यप, अर्पणा सेन और अदूर गोपाल कृष्णन आदि ने प्रधानमंत्री मोदी को एक चिट्ठी लिखकर हेट क्राइम और लिंचिंग के बढ़ते मामलों को लेकर चिंता व्यक्त की थी। इसके प्रतिउत्तर में 60 विशिष्ठ हस्तियों द्वारा जिनमें कंगना रनौत, प्रसून जोशी एवं मधुर भण्डारकर जैसे लोग थे, ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर बताया कि कुछ लोग ऐसी घटनाओं पर सलेक्टिव और झूठे प्रचार में व्यस्त हैं।

इतना ही नहीं रक्षा क्षेत्र की 112 हस्तियों ने प्रधानमंत्री को खुला पत्र लिखकर उन 49 सेलिब्रिटीज के द्वारा प्रस्तुत विषय पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के सेल्फ स्टाईल्ड संरक्षक बने हुए हैं। इस चिट्ठी में यह भी बताया गया कि जिन 49 लोगों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर लिंचिंग का हौव्वा खड़ा करने की कोशिश की उसमें 9 लोगों के विरूद्ध राजद्रोह का प्रकरण चल रहा है। ऐसे लोग अलगाववादी प्रवृत्तियों का समर्थन कर मोदी सरकार की प्रभावी कार्य पद्धति पर ग्रहण लगाना चाहते हैं। साथ ही साथ पूरे विश्व के समक्ष देश की छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे लोग मुसलमानों के साथ हुई छिटपुट घटनाओं को ऐसा प्रचारित कर रहे हैं कि जैसे यह सब एक योजना के तहत किया जा रहा हो। वह पिछले कई दशकों में हुई ऐसी घटनाओं को अनदेखा करने का प्रयास करते हैं जिनको लेकर पूरी दुनिया शर्मसार है। वह भूल जाते हैं कि 3 अगस्त 1998 को जम्मू-कश्मीर के अन्तर्गत चम्बा में 35 हिन्दुओं की इस्लामिक आतंकियों द्वारा नृशंस हत्या कर दी गई। 24 सितम्बर 2002 को गांधी नगर स्थित अक्षरधाम मंदिर में लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किये गये हमले में 30 लोग मारे गये और 80 लोग बुरी तरह घायल हो गये थे।

7 मार्च 2006 को वाराणसी में हुए आतंकी हमले में 28 लोग मारे गये और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए। 7 अक्टूबर 2010 को हिन्दुओं के हजारों व्यापारिक प्रतिष्ठानों और घरों को पश्चिम बंगाल के देगंगा क्षेत्र में लूटा, जलाया और नष्ट किया गया। उपरोक्त वारदात में दर्जनों हिन्दू मारे गए और कई बुरी तरह से घायल हो गए। उल्लेखनीय बात यह भी है कि इस दौरान उन्मादी भीड़ का नेतृत्व तृणमूल कांग्रेस के सांसद हाजी नुरूल इस्लाम कर रहे थे। 3 मार्च 2016 को पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में उग्र मुस्लिम भीड़ ने कलियाचक थाने आग लगाकर कई अभिलेख जला डाले, कई वाहनों को आग हवाले कर दिया और कई लोगों को जिनमें पुलिस के लोग भी शामिल थे, हमला कर घायल कर दिया। 28 अक्टूबर 2018 को गोण्डा में एक मुस्लिम युवक ने 50 वर्षीय एक हिन्दू की हत्या इसलिए कर दी कि वह अपनी पुत्री के साथ हो रही छेड़छाड़ का विरोध कर रहा था। इसी तरह से कटरा बाजार में एक हिन्दू की हत्या 3 मुस्लिमों द्वारा इसलिए कर दी गई कि वह लड़की के साथ छेड़छाड़ की शिकायत करने उनके घर चला गया था। 5 फरवरी 2019 आरओ का पानी लेने पर आगरा के टीला नंदराम में मुस्लिमों द्वारा दलितों पर गोलियां चलाई गईं और उनके घरों में तोड़फोड़ की गई। अभी हाल ही में सम्पन्न हुई कांवड़ यात्राओं में कई बेगुनाह हिन्दुओं पर हमला हुआ ।

आगरा में एक हिन्दू ठेले वाले की इसलिए हत्या कर दी गई कि उसने कुछ मुस्लिमों से अपने सामान का पैसा मांगने की हिमाकर की थी। जयपुर में मात्र यह अफवाह होने पर कि हज यात्रियों की बसों पर पथराव किया गया, मुस्लिम आधी रात को जयपुर की सड़कों पर उतर आए। कई वाहनों में तोड़फोड़ की और वाहनों में बैठे हिन्दू यात्रियों के मारपीट की। हाल ही में राजस्थान में कुछ हिन्दुओं पर मुस्लिमों द्वारा इसलिए हमला कर दिया गया कि उन्होंने यह समझा कि वह अनुच्छेद 370 हटाने का जश्न मना रहे थे। ये कुछ उदाहरण हैं। विश्व हिन्दू परिषद द्वारा 100 ऐसी घटनाओं की सूची तैयार की गई है जिनमें एक समुदाय विशेष की भीड़ द्वारा निर्दोष हिन्दुओं की हत्याएं की गई हैं। पर इन छद्म धर्मनिरपेक्षता के तथाकथित अलंबरदारों के गैंग ने कभी मुंह नहीं खोला।

वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया का कहना है कि देश में कुछ लोग पुरातन और गौरवशाली हिन्दू परम्पराओं को बदनाम कर रहे हैं। 'जय श्रीराम' का नारा उन्हें आक्रामक और उन्मादी दिखता है। जबकि हकीकत में जहां 'जय श्रीराम' का नारा मुस्लिमों से जबरदस्ती लगवाने की बातें सामने आई हैं, जांच के दौरान सभी झूठी पाई गई हैं। असलियत में ये छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी देश की स्वतंत्रता के समय से ही तरह-तरह के प्रोपेगंडा कर देश की शासन व्यवस्था को प्रभावित करते रहे हैं। साथ ही हमारे सामाजिक मूल्यों और संस्कृति को क्षत-विक्षत करते रहे हैं। इन्हीं ताकतों ने लोकसभा चुनाव के दौरान ईवीएम को लेकर झूठा प्रचार करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। सौभाग्य की बात है कि देश की जनता इनके इरादों को अच्छी तरह समझ गई है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)


Updated : 20 Aug 2019 1:32 PM GMT
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