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पत्रकारिता को कलंकित करते ये समाचार माध्यम

पत्रकारिता को कलंकित करते ये समाचार माध्यम
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दिल्ली में विगत दिनों घटित हुए अमानवीय घटनाक्रम पर बीबीसी न्यूज हिंदी की रिपोर्टिंग एकतरफा पत्रकारिता पर एक कलंक साबित हुई। ऐसा पहली बार नहीं है, बीबीसी व कुछ भारतीय चैनल भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। पत्रकारिता में मेरे अनुभव के अनुसार 90 प्रतिशत पाठक किसी भी खबर की सिर्फ हेडिंग ही पढ़ते हैं व हैडिंग पढ़कर ही उस खबर के प्रति अपनी धारणा बना लेते हैं। कुछ पाठक खबर का सिर्फ इंट्रो पढ़ लेते हैं। बहुत ही कम पाठक किसी खबर को विस्तार से पढ़ते हैं।

पाठकों की इस रीडिंग हैबिट का बीबीसी न्यूज हिंदी ने भरपूर फायदा उठाया पाठकों को भ्रमित करने के लिए। जस्टिस एस मुरलीधर के तबादले से संबंधित खबर में बीबीसी ने हैडिंग में लिखा, दिल्ली हिंसा पर केंद्र सरकार व दिल्ली पुलिस की कड़ी फटकार लगाने वाले जस्टिस एस मुरलीधर का तबादला कर दिया गया। साधारण समझ रखने वाला आम पाठक इस खबर को पढ़कर यह निष्कर्ष निकालेगा कि यह तबादला केंद्र सरकार ने किया।

एक कदम आगे बढा़ते हुए बीबीसी न्यूज़ ने इस खबर की सब हैडिंग में लिखा, दिल्ली में बीते तीन दिनों से जारी हिंसा पर केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को आड़े हाथों लेने वाले जस्टिस एस मुरलीधर का तबादला दिल्ली हाईकोर्ट से पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में कर दिया गया है। इस तरह की रिपोर्टिंग पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।

दिल्ली में जारी हिंसा के लिए केंद्र सरकार को सूली पर चढ़ाने का बीबीसी न्यूज पूरा प्रयत्न कर रहा है। इस तबादले की वास्तविकता यह है कि सुप्रीम कॉलिजियम ने 12 फरवरी को ही जस्टिस एस मुरलीधर के तबादले सम्बन्धित अपना सुझाव दिया था। जिसके बाद बुधवार को इससे सम्बन्धित नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया। इस तबादले का उनके बयान से कोई लेना देना नहीं है।

नोटिफिकेशन में साफतौर पर कहा गया है कि यह फैंसला राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद व सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बोबडे के साथ विचार विमर्श के बाद लिया गया। इस वास्तविकता को इस पोर्टल ने ख़बर के अंत में लिख दिया जिसे आमतौर पर पाठक पढ़ते नहीं हैं।

इसके पूर्व भी इन चैनलों ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का जबरदस्त विरोध किया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की यह छवि बनाने की कोशिश करते रहे कि भारत में लोकतंत्र की हत्या की जा रही है। भारत में अब तानाशाही चल रही है जबकि अनुच्छेद 370 का हटाया जाना पूरी तरह से संवैधानिक था।

राम मंदिर पर फैसला देश की सर्वोच्च अदालत का था ना कि सरकार का पर इन समाचार माध्यमों ने देश का माहौल खराब करने का व देश की छवि बिगाडऩे का भरसक प्रयास किया।

देश की आधिकांश बड़ी गैर सरकारी संस्थाएं यानी कि एनजीओ वामपंथियों द्वारा संचालित थीं। जिनपर भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने नकेल कस दी। अब इन वामपंथी ताकतों ने अपने राष्ट्रविरोधी हथकंडे सोशल एक्टिविस्ट यानी कि सामाजिक कार्यकर्ता बनकर व पत्रकारिता के माध्यम से चलने शुरू कर दिए। एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल पर चल रही बहस में वामपंथी सामाजिक कार्यकर्ता स्वरा भास्कर ने कहा कि एनआरसी में कई भयानक प्रावधान हैं जबकि एनआरसी का ड्राफ्ट तक तैयार नहीं है। इस तरह इन समाचार माध्यमों व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा देश की जनता को उकसाया व भड़काया जा रहा है। वो सभी संगठित प्रयास किये जा रहे हैं जिससे देश में साम्प्रदायिक हिंसा हो, देश का माहौल खराब हो तथा भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि खराब हो।

राष्ट्र को अस्थिर व देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे इस राष्ट्रविरोधी पोर्टल व चैनल को देश में तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

(लेखिका : अपर्णा पाटिल कवयित्री, स्तंभकार व सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

Updated : 1 March 2020 8:16 AM GMT
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