एक सहज, सरल संगीतज्ञ का अवसान
विकास बिपट
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ग्वालियर घराने के कलाकार स्व. श्री बसंत आफले
तानसेन और संगीत की नगरी ग्वालियर से शास्त्रीय और संगीतज्ञ पं. आफले जी का अवसान ग्वालियर संगीत जगत के लिए एक गहरा आघात है। यंू अचानक से उनका समाज से चला जाना सभी को अचंभित कर गया। एक साधारण सी कद काठी के अत्यंत सरल, सहज व्यक्ति, निश्छल मन के उत्तम कलाकार एवं श्रेष्ठ गुरू थे श्री बसंत आफले। उन्हें माधव नाम से भी जाना जाता था। वह प्रख्यात संगीतज्ञ पं. बाला साहेब पूंछवाले जी के शिष्य थे। उन्हें कभी-कभी बाला साहेब हास्य व्यंग्य में माधवराब कहकर भी पुकारते थे। भारतीय शास्तीय संगीत के प्रायोगिक एवं सैद्धांतिक दोनों ही पक्ष पर उनका समान अधिकार था उन्होंने पं. बाला साहेब पूंछवाले जी की अनेकों बंदिशों को लिपिबद्ध किया। उन्हें पं. बाला साहेब कि सैकड़ों बंदिशें कंठस्थ याद थीं। कभी-कभी गाते हुए बाला साहेब भूल भी जाते थे तो श्री आफले जी याद दिलाते थे ऐसे अनेक प्रसंग हैं।
ग्वालियर घराने कि समृद्ध शास्त्रीय संगीत की परंपरा एवं बंदिशों का खजाना उन पर था।
उनके समकालीन सभी संगीत कलाकार एवं गुणीजन उनके संगीत के प्रति लगाव एवं ज्ञान का आदर करते थे।
श्री बसंत आफले एवं उत्तम गायक थे। उन्होंने संगीत के अनेकों सभाओं में अपनी विद्धतापूर्ण गायकी से रसिको को प्रभावित किया। वे एक श्रेष्ठ संगीत गुरु भी रहे व वर्षों तक शासकीय माधव संगीत महाविद्यालय में गायन के आचार्य रहते हुए उन्होंने अनेक सुयोग्य शिष्य तैयार किये किंतु जैसा कि भारत रत्न पं. भीमसेन जोशी ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि संगीत में नाम और दाम कमाने के लिए अच्छी तालीम, कठोर परिश्रम तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण अच्छे भाग्य का होना भी आवश्यक है। ठीक उसी तर्ज पर अथवा उन्हीं की बात को आधार मानकर यह कहा जाा सकता है कि श्री बसंत आफले जी ने अच्छी तालीम प्राप्त की, परिश्रम भी किया किंतु भाग्य का साथ कितना एक कलाकार के जीवन में मायने रखता है यह चिंतनीय है। चिंतन का विषय है।
जीवन के उत्तरार्ध में शासकीय सेवा से निवृत होने के बाद उन्होंने अपना जीवन भारतीय वेद, पुराणों का अध्ययन कर वैदिक कार्य में लगा दिया था। मकर संक्रांति उपरांत सूर्य के उत्तरार्ध होने पर ही वह ब्रह्मलीन हुए। शास्त्रों में मकर संक्रांति के बाद उत्तरायण में जाना शुभ माना जाता है ऐसी पुरातन मान्यता है। ईश्वर उन्हें सद्गति प्रदान करे। उन्हें शत-शत नमन।
(लेखक राजा मानसिंह तोमर संगीत विश्वविद्यालय में तबले के शिक्षक हैं।)
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