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अविश्वास प्रस्ताव पर दिखा विपक्ष का खोखलापन

वास्तव में सदन में विपक्ष का जिस प्रकार का व्यवहार रहा, उसे काफी निराशाजनक कहा जा सकता है।

अविश्वास प्रस्ताव पर दिखा विपक्ष का खोखलापन
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- डॉ. कविता सारस्वत

15 साल बाद किसी सरकार के खिलाफ आये अविश्वास प्रस्ताव का नतीजा सबको पहले से ही पता था। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ और अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में पड़े सैफ 126 वोटों से ही स्पष्ट हो गया कि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव के लिए अपनी ओर से कोई भी ठोस तैयारी नहीं की थी। नंबर गेम में एनडीए सरकार आगे रहेगी, यह सबको पता था। लेकिन, अविश्वास प्रस्ताव पर हुई वोटिंग में वह कांग्रेस समेत अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने वाली विपक्षी पार्टियों को 199 वोटों से पछाड़ देगी, इसका अनुमान शायद किसी को नहीं था।

यह अविश्वास प्रस्ताव भले ही तेलुगूदेशम पार्टी की ओर से लाया गया था, लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही माना जा रहा था। कांग्रेस की तरफ से जिन वक्ताओं ने भी अपनी बातें रखी, उसमें खोखलापन के अलावा और कुछ भी नहीं था। राहुल गांधी से कांग्रेस को काफी उम्मीदें थीं। माना जा रहा था कि राहुल गांधी दमदार तरीके से अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार के खिलाफ अपनी बात कहेंगे। इसमें कोई शक नहीं है कि जब राहुल गांधी ने कहना शुरू किया, तो उनके बोलने की शैली, भाव-भंगिमा, मुखमुद्रा, ऊंची आवाज आदि उनके आक्रामक होने का परिचय दे रही थी, लेकिन उनकी बातों में ऐसी कोई भी ठोस बात नहीं थी, जो केंद्र सरकार को परेशानी में डालने वाली हो। संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर दिया गया उनका भाषण पूरी तरह से चुनावी रैली में दिया गया भाषण ही लग रहा था। इसमें न तो सबूतों का उल्लेख था और न ही कोई आंकड़े बताये गये।

अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा में कही गयी बातों ने सबसे ज्यादा इसी बात का इशारा किया कि संसद में होने वाले बहस के स्तर में काफी गिरावट आयी है। राहुल गांधी ने केंद्र सरकार को घेरने के लिए फ्रांस से हुए राफेल डील का मुद्दा भी उठाया। अपनी बात पर वजन डालने के लिए उन्होंने यह भी कह दिया कि फ्रांस के राष्ट्रपति से हुई उनकी बातचीत में राष्ट्रपति ने डील को लेकर किसी भी तरह की गोपनीयता बरती जाने वाली संधि की बात से इनकार किया है। उनकी इस बात को वजनदार माना जा सकता था, लेकिन उनका भाषण खत्म होने के तुरंत बाद ही रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत और फ्रांस के बीच गोपनीयता को लेकर हुई संधि के कागज सदन में रख दिये और यह भी स्पष्ट कर दिया कि यह संधि एनडीए की सरकार ने नहीं, बल्कि यूपीए की सरकार ने ही की थी। तब भारत की ओर से इस संधि पर यूपीए-1 में रक्षामंत्री रहे एके एंटनी ने हस्ताक्षर किये थे।

और तो और सदन में चल रहे अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा के दौरान ही फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने भी एक बयान जारी करके राहुल गांधी के बयान का खंडन कर दिया। जिससे स्पष्ट हो गया कि राहुल गांधी अपने भाषण को वजनदार बनाने के लिए सदन में झूठ बोल रहे थे। एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष से सदन में झूठ बोलने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। लोकतंत्र में विपक्ष की अपनी एक मर्यादा होती है और वह तथ्यों के आधार पर सरकार को घेरता भी है। विपक्ष को तथ्यों और आंकड़ों का सहारा लेकर सरकार को घेरने की कोशिश भी करनी चाहिए। ऐसा होने से ही लोकतंत्र में सरकार सही तरीके से काम करती है। लेकिन, झूठी बात के आधार पर अगर सरकार को घेरने की कोशिश की जाये, तो उससे विपक्ष की मर्यादा और विश्वसनीयता पर ही आंच आती है। अब जबकि स्पष्ट हो चुका है कि राहुल गांधी राफेल डील को लेकर सदन में झूठ बोल रहे थे, तो निश्चित रुप से इसका असर उनकी विश्वसनीयता पर भी पड़ेगा और पार्टी अध्यक्ष होने के नाते समूची कांग्रेस पर भी पड़ेगा।

कांग्रेस का इरादा सरकार की मजबूत घेराबंदी करने का था, लेकिन राहुल गांधी के बचकाने व्यवहार ने विपक्ष की पूरी गंभीरता को तार-तार कर दिया। कहा जा सकता है कि राहुल गांधी ने अपने भाषण में कई मुद्दे उठाये और सत्ता पक्ष की ओर से दिये गये जवाब में एक-आध मुद्दा छूट भी गया। इसके बावजूद यह भी तय है कि जवाब तो किसी तथ्यपरक आरोप या आलोचना का ही दिया जा सकता है, लेकिन जिस आरोप का कोई आधार ही न हो उसका जवाब देने का कोई अर्थ नहीं है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में राहुल गांधी के अधिकांश आरोपों का क्रमवार तरीके से सटीक जवाब दिया और चुटीले अंदाज में कई मसलों पर उनकी अज्ञानता का उन्हें अहसास भी कराया।

वास्तव में सदन में विपक्ष का जिस प्रकार का व्यवहार रहा, उसे काफी निराशाजनक कहा जा सकता है। अविश्वास प्रस्ताव के बहाने विपक्ष ने केंद्र सरकार को घेरने का ऐलान किया था, लेकिन वह ढंग से वह सरकार की घेराबंदी करना तो दूर ढंग से आलोचना भी नहीं कर सका। ये अविश्वास प्रस्ताव तेलुगूदेशम पार्टी ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के मुद्दे को लेकर दिया था, लेकिन टीडीपी इस मसले को भी ढंग से नहीं उठा सकी। और तो और वो इस बात से भी इनकार नहीं कर सकी कि प्रधानमंत्री ने राज्य को अन्य तरीकों से अधिक मदद करने की पेशकश की थी, लेकिन वह अन्य तरीकों से मदद लेने की बजाय विशेष राज्य का दर्जा ही पाना चाहती थी, ताकि उसका राजनीतिक लाभ उठाया जा सके।

साफ कहें तो विपक्ष सरकार को घेरने के लिए उठाए जाने वाले मुद्दों का भी ढंग से चयन नहीं कर सका। हद तो यह है की सरकार की घेराबंदी करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष को 2016 के नोटबंदी जैसे मसले को भी उठाने के लिए बाध्य होना पड़ा। इतने पुराने मसले को उठाने का मतलब साफ है की विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कोई भी ठोस तैयारी नहीं की थी और न ही इसके लिए पर्याप्त होमवर्क किया गया था। कहा जा सकता है कि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर एक तरह से संसद का समय ही बर्बाद किया है। विपक्ष को पहले से ही मालूम था कि नंबर गेम में सरकार से नहीं जीता जा सकता। ऐसे में उसकी कोशिश पूरी तरह से ऐसे मुद्दों को उठाने की होनी चाहिए थी, जिसके आधार पर सरकार की तगड़ी खिंचाई हो सके और उसका फायदा आने वाले विधानसभा चुनाव तथा उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में उठाया जा सके।

निश्चित रूप से अपनी सतही तैयारी की वजह से विपक्ष ऐसा कर पाने में भी पूरी तरह से नाकाम रहा। हां, इतना जरूर कहा जा सकता है कि अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के बहाने विपक्षी दलों ने अपने मन की भड़ास निकाल ली और सरकार को जितना खरी-खोटी सुनाने की उनकी इच्छा थी, वह सुना ली। लेकिन विपक्षी पार्टियों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि सरकार को झूठे तथ्यों के आधार पर खरी-खोटी सुनाने का कोई मतलब नहीं है। अब संसद में होने वाली सारी कार्यवाही का सीधा प्रसारण होता है। देश की जनता इस प्रसारण को देखती है, सुनती है और समझती है। ऐसे में विपक्ष का खोखलापन अंततः उसकी ही कमजोरी को दर्शाता है, जबकि सरकार की ओर से दिया गया जवाब आगे चलकर एनडीए के लिए चुनावी फायदे का सबब बन सकता है।

Updated : 23 July 2018 4:34 PM GMT
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Swadesh Digital

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