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पर्यावरण : जमीनी हकीकत

वर्ष 2030 तक भारत के 40 फीसदी हिस्से में पेयजल उपलब्ध नहीं होगा।

पर्यावरण : जमीनी हकीकत
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- प्रमोदपचौरी

देश की जानी मानी पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने कहा है कि वर्ष 2020 तक दिल्ली, बेंगलूरु, चेन्नई और हैदराबाद में भूजल समाप्त हो जाएगा। और वर्ष 2030 तक भारत के 40 फीसदी हिस्से में पेयजल उपलब्ध नहीं होगा। विचारणीय है कि बरसात के दिनों देश के कुछ हिस्से जलमग्न हो जाते हैं, भयावह बाढ़ से तबाही आ जाती है। फिर कुछ हिस्से जहां पानी की किल्लत ही किल्लत है। हाल ही में शिमला में पानी की किल्लत पैदा हो गई थी। इसका कोई तत्काल समाधान निकला क्या? शायद नहीं। बाढ़ की तबाही और फिर जल की किल्लत में संतुलन बिठाने के लिए सर्व प्रथम अटल बिहार वाजपेयी सरकार ने नदी जोड़ो परियोजना को मंजूरी दी थी। लेकिन उनकी सरकार के जाने के बाद यह योजना फिर ठंडे बस्ते में चली गई।

श्रीमती नारायण ने एक दैनिक पत्र के हवाले से कहा कि नीति आयोग के वर्ष 2018 के कंपोजिट वाटर इंडेक्स ने जो रिपोर्ट दी है, उसके मायने बड़े गंभीर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 60 करोड़ लोगों यानी करीब आधी आबादी को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ता है। वहीं कुल उपलब्ध जल में से 70 फीसदी जल अशुद्ध है। तब हम पानी की उपलब्धता को कैसे बढ़ाएं? यह आम आदमी की आवश्यकता का सवाल है। क्या हमें एक-एक बूंद को संभालकर नहीं रखना होगा, मगर कैसे?

पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर हम पानी की उपलब्धता के साथ-साथ जल प्रबंधन को वरीयतादें तो कुछ हद तक अंकुश लगेगा। मसलन पानी के उपयोग को घटाने का खाका तैयार करना होगा। फसल पैदा करने के तरीके में बदलाव करना होगा। हम उन क्षेत्रों में चावल, गेंहूं, गन्ने, जैसे पानी की अत्यधिक खपत वाली फसलों की बुआई बंद करें जहां पानी कम है। सरकार को इसके लिए नए सिरे से नीतियां बनानी होंगी। उसे किसानों को फसलें बदल-बदल कर बोने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। ऐसे खानपान को बढ़ावा देना होगा जो कम पानी की खपत वाली फसलों पर आधारित हो। कृषि के लिए भूजल का अत्यधिक उपयोग करने से पानी का स्रोत समाप्त हो जाएगा। जल भंडारण आज की जरूरत है। पानी को बाहर से लाने में संसाधनों की आवश्यकता होत है। शहरों में पीने के पानी के लिए सरकारें योजना तो बनाती हैं पर प्रबंधन पर जोर नहीं दिया जाता। इसके लिए यह जरूरी है कि अपशिष्ट जल को शोधित करने के बारे में सोचा जाए।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि शहर पर्यावरण में स्वच्छ पानी नहीं छोड़ते हैं। शहरों में इस्तेमाल होने वाला 80 फीसदी पानी अपशिष्ट जल के रूप में छोड़ा जाता है। सवाल यह है कि इसमें से कितने जल को साफ किया जात है और फिर से इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कराया जाता है। हम पानी बहा देते हैं, नल खुला छोडकर भूल जाते हैं और बरबाद करते हैं। शहरों में उपलब्ध जल दूषित है।

Updated : 3 July 2018 5:45 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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