वर्षा ऋतु के माह को आषाढ़ क्यों कहा जाता है?
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हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास को वर्ष का चौथा मास कहा जाता है और ज्येष्ठ माह में पडऩे वाली भयंकर गर्मी से राहत मिलने के आसार आषाढ़ माह में ही नजऱ आने शुरु हो जाते हैं। ये ऋतु परिवर्तन का समय है। इस दौरान बहुत तरह के रोग पनपते हैं। मानव, पशु-पक्षी और वनस्पति इसकी चपेट में आ जाते हैं। रोगों से निजात प्राप्त करने के लिए हमें नवदुर्गा की उपासना करनी चाहिए। इस महीने में खड़ाऊं, छाता, नमक और आंवले के दान का बहुत महत्व है। संभव न हो तो आषाढ़ी पूर्णिमा को दान पुण्य जरुर करना चाहिए।
वर्षा ऋतु के माह को आषाढ़ माह इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मास ज्येष्ठ व सावन मास के बीच आता है। हिंदू पंचांग में सभी महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। मास की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के नाम पर रखा गया है। आषाढ़ महीने का नाम भी पूर्वाषाढ़ और उत्तराषाढ़ नक्षत्रों पर आधारित है। आषाढ़ माह की पूर्णिमा को चंद्रमा इन्हीं नक्षत्रों में रहता है, जिस कारण इस महीने का नाम आषाढ़ पड़ा है। संयोगवश अगर पूर्णिमा के दिन उत्तराषाढ़ा नक्षत्र हो तो ये बहुत ही पुण्यदायी माना जाता है।
इसी माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। शुक्ल पक्ष की द्वितीया को विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ जी की रथ यात्रा भी निकाली जाती है। देवशयनी एकादशी पर देव चार महीने के लिए सो जाते हैं और शादी व शुभ कामों पर विराम लग जाता है। इस चार महीने के समय को चातुर्मास कहा जाता है। कार्तिक शुक्ल एकादशी को देव जागते हैं, जिसे देवउठनी एकादशी कहते हैं।
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