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सात दशक पुराना मन्दिर है यह शिव मन्दिर

मुगल काल से श्रद्धा के केन्द्र को 1939 में थानाध्यक्ष ने दिया शिव मन्दिर का रूप

सात दशक पुराना मन्दिर है यह शिव मन्दिर
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कानपुर देहात। उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जनपद में सात दशक पुराना मन्दिर है। यहां दूर-दूर से हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं। मुगल काल से चले आ रहे आस्था के इस केंद्र शिव मंदिर को बनाने की शुरुआत एक थानाध्यक्ष ने 1939 में की थी।

कानपुर देहात के रसूलाबाद कस्बे में थाना परिसर के पास स्थित धर्मगढ़ बाबा शिव मंदिर पूरे जिले का एक मात्र आस्था का केंद्र बन चुका है। यहां प्रतिवर्ष सावन के महीने में शिव भक्तों के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की हजारों की तादात में भीड़ उमड़ती है। वहीं इस शिव भोलेनाथ के पावन दरबार में प्रत्येक महीने में धार्मिक अनुष्ठान भी होते रहते हैं। सोमवार को भी ऐसा ही नजारा देखने को मिला। बताते चलें इस प्रसिद्ध पावन शिव मंदिर के महत्व इतिहास के बारे मे कई विशेष बातें हैं।

'जाने क्या हैं धर्मगढ़ बाबा का इतिहास'

पूर्वजों की माने तो मुगल शासन में यहां एक बहुत बड़ा किला हुआ करता था और इस किला के बगल में एक तालाब है, जिसमें संगमरमर के सुंदर पत्थर लगे थे। जहां पूरा क्षत्रियों का साम्राज्य हुआ करता था। जब मुगलों ने देखा तो मन्दिर ध्वस्त कर दिया और पत्थर उखड़वा लिए समय बदला राज तन्त्र में राजा दरियाव चन्द्र हुए और उन्होंने अपना यहां राज दरबार बनाया। वह यहीं से सारा प्रजातंत्र काम काज देखते थे, लेकिन फिर समय ने करवट ली और अंग्रेजों ने पुनः किला ध्वस्त कर राजा दरियाव चन्द्र को उस शिव मंदिर के सामने खड़े वट वृक्ष में फांसी दे दी गई। राज तन्त्र की व्यवस्था खत्म हो रही थी, जिससे राजा दरियाव चन्द्र का राजदरबार फिर एक बार खेड़ा टीले में बदल गया तथा मन्दिर भी टूट गया। किले के ध्वस्त होने से यह टीले नुमा हो गया, जिसमें कुछ समय बाद बहुत जंगल सा हो गया। इस वजह से हिंसक जंगली जानवर भी यहां रहने लगे थे। काफी समय बाद यहां पर पुलिस थाना परिसर का विस्तार हुआ।

इसमें यहां पर सबसे पहले सन 1939 में ज्वाला प्रसाद थानाध्यक्ष की तैनाती हुयी। उनको यहां एक स्वप्न आया कि इस जगह को खोदो और एक मंदिर का निर्माण करो। उन्होंने वैसा ही किया, जिसमें एक शिवलिंग निकला। जिससे उन्होंने एक छोटा सा मन्दिर बनवाया। बाद में फिर यहां पर सन 1943 में द्वितीय थानाध्यक्ष के तौर पर इसरार हुसैन की तैनाती हुई। तैनाती होने के कुछ ही दिनों बाद इसरार हुसैन को स्वप्न आया कि इसे दोबारा बड़ा विशाल मन्दिर बनाओ। इसरार हुसैन ने कस्बे के सम्भ्रान्त लोगों को बुलाकर बात बताई, तो सभी लोगों ने धर्म कर्म को देख शिव मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया। इसके बाद सन 1945 में नागेंद्र सिंह ने जनता के सहयोग से मन्दिर को भव्य स्वरूप दिया। इसके बाद सन 1992 में आर. एस. मौर्य ने नवीनीकरण कराया। सन 2007 में वेद प्रकाश ने पूर्ण निर्माण कराया। मन्दिर निर्माण में समस्त क्षेत्र की जनता ने सहयोग रहा था।

'शिव भोलेनाथ ने दिखाई शक्ति'

धीरे-धीरे लोग मन्दिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी। इसी बीच कस्बे के ही एक भक्त को स्वप्न आया कि जब से भगवान परशुराम ने जल चढ़ाया व कांवर चढ़ाई तब से किसी ने कुछ नहीं चढ़ाया। इसलिए गंगा जल लाकर हमारे ऊपर जलभर कर श्रावण मास में जल चढ़ाओ सारी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। उसने वैसा ही किया फिर तो देखते ही देखते धर्मगढ़ बाबा शिव भोलेनाथ ने अपना और चमत्कार दिखाना शुरु कर दिया।

'मन्दिर परिसर क्या-क्या होते हैं अनुष्ठान'

चैत्र के महीने में यहां माता दुर्गा के कार्यक्रम में सभी भक्त ज्वारे चढ़ाते हैं। अनुष्ठान भी होते रहते हैं। वहीं सावन में रुद्राभिषेक सहित विविध आयोजन होते हैं। आखिरी सोमवार को हजारों की संख्या में कावड़िये गंगा जल लाकर चढ़ाते हैं। इसके अलावा आश्विन मास में विशाल शत चण्डी महायज्ञ कर दस दिन तक कृष्ण लीला व राम लीला का उत्कृष्ट सुविख्यात कलाकारों द्वारा प्रदर्शन होता है। इस पावन दरबार में कई मठों के शंकराचार्य भी आ चुके हैं, जिससे यह स्थान एक सिद्धपीठ भी बन चुका है।

Updated : 20 Aug 2018 4:03 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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