भारतीय संस्कृति में गिरावट चिंतनीय : मृदुला सिन्हा
हिंदी को सम्मान दिलाने वाले अटलजी और सुषमा को राष्ट्र कभी नहीं भुला पाएगा
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मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए भारत वचनबद्ध: इंद्रेश कुमार
नई दिल्ली। किसी भी देश की भाषा उसके देशवासियों को आपस में जोड़ने का एक सशक्त माध्यम होती है। वाद-विवाद हो अथवा संवाद, भाषा के द्वारा आपसी मनोभाव और संवेदनाएं व्यक्त कर एक-दूसरे के करीब आने में भाषा सेतु का काम करती है। भारत में शुरू से ही हिन्दी को लेकर महात्मा गांधी बेहद संवेदनशील थे। और उनका मानना था कि हिन्दी में वह ताकत है, जो पूरे देश को जोड़ सकती है। हिन्दी को समझने से पहले यह जरूरी हो जाता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समझें क्योंकि हिन्दी और महात्मा गांधी में अन्योनियाश्रित संबंध है। ये विचार गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने विश्व हिन्दी परिषद की ओर से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
श्रीमती सिन्हा ने भारतीय संस्कृति में आ रही गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बच्चे और महिलाएं सामाजिक परिवेश से बाहर निकल रहे हैं। जब कभी भी धर्म, भाषा और संस्कृति पर संकट मंडराने लगता है तो ऐसे समय में किसी श्रेष्ठ व्यक्ति का अवतरित होना इस देव धरा की परंपरा रही है।
इस मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने कहा कि हिन्दी की अहमियत को समझने के लिए गांधी और हिन्दी के दर्शन को समझना आवश्यक है। गांधी जी ने कभी भी विभाजन को नहीं स्वीकारा। वे अंत तक यही कहते रहे कि विभाजन होगा तो उनकी लाश पर से जाकर होगा। लेकिन कुछ लोगों के निजी स्वार्थ के चलते अंततः विभाजन हो गया। इंद्रेश कुमार ने कहा कि देश का नैरेटिव बदला है। विभाजन हुआ था तो अब समय आ गया है उस विभाजन को दूर करने का। हम उस पड़ाव पर आ गए हैं जहां से विश्व को नेतृत्व प्रदान कर सकें।
उन्होंने कहा कि हम मानवीय मूल्यों की रक्षा के प्रति हमेशा से वचनबद्ध रहे हैं और उसी वचनबद्धता का पालन कर रहे हैं। अगर कोई उड़ी या 12 फरवरी जैसे घाव देगा तो हम बालाकोट जैसा सबक सिखाने से तनिक भी पीछे नहीं हटेंगे। हमने मानवीय मूल्यों का पालन करते हुए वहां आक्रमण किया। उस जगह को निशाना बनाया जहां मानव को राक्षस या शैतान बनाया जाता है।
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री के हिन्दी के प्रति प्रेम और आस्था को जनमानस के समक्ष रखते हुए कहा कि 2014 के बाद हिन्दी का स्वरूप बदला है। सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के प्रति अनुराग जागा है। प्रधानमंत्री विदेश जाते हैं तो वे अपना पक्ष हिन्दी में रखते हैं। इससे हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिलने लगी है।
भारी उद्योग मंत्री अर्जुराम मेघवाल ने कहा कि 1957 के बाद हिन्दी का प्रभाव बढ़ाने वाले अटल विहारी वाजपेयी थे। उन्होंने लंबे कालखंड तक हिन्दी को अलग पहचान दी। पहली बार यूएनओ में उन्होंने हिन्दी में एतिहासिक भाषण देकर हिन्दी का मान बढ़ाया।
इससे पहले जदयू के महासचिव के सी त्यागी ने हिन्दी की गरिमा और राष्ट्र के उत्थान में हिन्दी की भूमिका पर विस्तार से अपना पक्ष रखते हुए। अटल जी और सुषमा स्वराज को याद किया। उन्होंने कहा कि अटल जी और उनके बाद सुषमा स्वराज ने हिन्दी के लिए वैश्विक मंच पर जोरदार प्रयास किए। आध्ुानिक कालखंड में हिन्दी के ये दोनों प्रखर वक्ता अच्छी हिन्दीके लिए याद किए जाते रहेंगे। अंग्रेजी हटाओं आंदोलन में हिन्दी की बहुत बड़ी भूमिका थी। उस समय लोगों को यहसास हो गया था कि हिन्दी ही वह भाषा है जो राष्ट्रवाद का अलख जगा सकती है।
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