करों में हिस्सेदारी पर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है केजरीवाल सरकार, जानें क्या है मामला
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नई दिल्ली। केंद्रीय करों में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है। इसके लिए वह कानूनी विशेषज्ञों से सलाह ले रही है और शीघ्र ही सर्वोच्च अदालत में रिट याचिका दायर करने का सहारा लिया जा सकता है। इससे साफ है कि दिल्ली सरकार का केंद्र सरकार के साथ विवाद एक बार फिर से शुरू होने वाला है।
सूत्रों ने बताया कि सरकार ने देश के वरिष्ठतम अधिवक्ताओं और संविधानविदों से सलाह लेकर मामले को अंतिम रूप दे दिया गया है। यह मामला हाईकोर्ट की बजाए सीधे सुप्रीम कोर्ट में ही दायर किया जाएगा। दिल्ली आयकर में केंद्र सरकार को हर वर्ष 1.75 लाख करोड़ रुपये एकत्र करके देती है जिसमें से उसे 325 करोड़ रुपये मिलते हैं। इतनी कम राशि उसे पूर्ण राज्य न होने के कारण मिलती है जबकि सामान्य राज्यों को इन करों में हिस्सेदारी 42 फीसदी तक है। दिल्ली को दी जाने वाली इस राशि वर्ष 2000 से या 10 वें वित्त आयोग के समय से कोई बदलाव नहीं हुआ है और 18 सालों से राज्य का यही रकम जारी की जा रही है।
वित्त आयोग के चेयरमैन को पत्र भेजा : अदालत का रास्ता लेने से पहले दिल्ली सरकार 14वें वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह को पत्र भी लिखा था। केंद्र सरकार कहती है कि दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार के कर्मचारियों को पेंशन केंद्र सरकार देती है ऐसे में उसका करों में हिस्सेदारी बढ़ाने का कोई कारण नहीं है, लेकिन राज्य सरकार ने कहा है कि दिल्ली के स्थानीय निकायों का वित्तपोषण दिल्ली सरकार करती है और 14वें वित्त आयोग ने भी यह कहा है कि दिल्ली को 488 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष मिलने चाहिए।
करों के संग्रह में पूर्ण राज्य : दिल्ली सरकार के एक वकील ने कहा कि आश्चर्य की बात है कि दिल्ली को जीएसटी कर संग्रह में पूर्ण राज्य माना जाता है लेकिन करों में हिस्सेदारी देने के मामले में उसे पूर्ण राज्य नहीं माना जाता। दिल्ली सरकार कानूनी विशेषज्ञों से इस विषय पर सलाह ले रही। केंद्र से एक बार फिर से विवाद शुरू होने के दिख रहे आसार।
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