... तो 10 से 20 प्रतिशत तक बढ़ सकता है तिघरा में पानी !
1916 में सिंधिया राजवंश ने तिघरा जलाशय का निर्माण पेयजल व सिंचाई के लिए कराया था।
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डॉ. जेसी गर्ग ने दिए सुझाव
ग्वालियर/सचिन श्रीवास्तव। करीब 100 वर्षों से ग्वालियर की प्यास बुझाने वाला तिघरा जलाशय आज खुद प्यासा है। सांक नदी पर बने इस जलाशय में इस सीजन में बारिश ठीक-ठाक होने से जहां लोगों को राहत मिली है लेकिन फिर भी हाल यह है कि दो दिन में एक बार ही पानी की सप्लाई शहरभर में हो पा रही है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जिस ग्वालियर का जन्म एक चमत्कार वाली जल संरचना से हुआ हो, वहां आज पानी की कमी है और मुख्य स्रोत तिघरा को भी भगवान के भरोसे रहना पड़ रहा है।
1916 में सिंधिया राजवंश ने तिघरा जलाशय का निर्माण पेयजल व सिंचाई के लिए कराया था। इस जलाशय से अभी तक भरपूर पानी मिलता रहा है, लेकिन जिस वर्ष बारिश कम होती है उस वर्ष शहर में पानी को लेकर त्राहि-त्राहि मच जाती है। शहर में बढ़ती जनसंख्या के चलते तिघरा जलाशय का 738 फुट जल स्तर भी कम पडऩे लगा है। ऐसा
नहीं कि सरकार व नगर निगम हाथ पर हाथ रख कर बैठे हुए है। जहां सरकार व नगर निगम ने पेहसारी से लेकर ककैटो बांध से ग्वालियर पानी लाने की योजना बनाई, लेकिन इन स्रोतों से आने वाले कुछ वर्षों तक पानी नहीं पहुंच पाएगा। इसके अलावा अधिकारियों ने तय तो कर लिया है कि चंबल नदी से ग्वालियर पानी लाया जाए, क्योंकि इस नदी में पूरे साल पानी रहता है। इसमें धन की समस्या आड़े आ सकती है, क्योंकि 25 वर्ष पहले ग्वालियर तक चंबल से पानी लाने की कीमत थी लगभग 240 करोड़ रुपए, जो अब बढ़कर लगभग 500 करोड़ रुपए पहुंच चुकी है। कुल मिलाकर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि यह चिंता सिर्फ सरकारी अमले की ही नही बल्कि प्रत्येक शहरवासी की है। इन सभी परेशानियों को देखते हुए शहर के प्रतिष्ठ चिकित्सक डॉ. जेसी गर्ग ने चिंता करते हुए दैनिक स्वदेश को अपने कुछ सुझाव दिए हैं। जो तिघरा जलाशय के जल स्तर बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते है। श्री गर्ग ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में शहर व तिघरा जलाशय के कैचमेंट क्षेत्र में बारिश सामान्य से भी कम होने पर शहर में पानी की समस्या ने विकराल रूप ले लिया था। उनका कहना है कि यदि आने वाले समय में बारिश कम होती है तब क्या होगा। क्या तब 738 फुट जल स्तर वाला तिघरा जलाशय शहर की पानी की पूर्ती कर पाएगा। क्योंकि समय के साथ-साथ जनसंख्या में वृद्धि तो हुई है लेकिन तिघरा जलाशय के क्षेत्रफल में कोई परिवर्तन देखने को नहीं मिला है।
-श्री गर्ग ने अपने सुझाव में कहा कि यदि अप्रैल, मई और जून माह में, जब तिघरा जलाशय का स्तर नीचे आ जाता है तब उसमें से गाद और मिट्टी को खुदाई के द्वारा हटाए जाने से जलाशय की क्षमता को 10 से 20 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही उसमें से निकलने वाली उपजाऊ गाद को किसानों को बेचकर सरकार अपना राजस्व भी बढ़ा सकती है।
-जलाशय से गाद और मिट्टी हटाने पर गहराई में वृद्धि होगी जिससे बहुमूल्य पानी का वाष्पीकरण में कमी आएगी। जिसके परिणामस्वरूप पानी की बचत अधिक होगी।
-जलाशय से गाद और मिट्टी हटाने पर बांध में पानी तुलनात्मक रूप से साफ होगा और इस पानी को मशीनों द्वारा साफ किया जाता है उस पर भार कम होगा जिससे धन और ऊर्जा दोनों की अधिक बचत की जा सकती है।
-चूंकि परियोजना लागत प्रभावी होगी तब चंबल, और क्षेत्र के अन्य आसपास की नदियों जैसे पानी के अन्य स्रोतों पर बोझ कम हो जाएगा।
-पिछले कुछ वर्षों में भोपाल में भी यही अभ्यास किया गया है, और हम सभी उसके सुखद परिणाम जानते हैं।
अंत में श्री गर्ग ने जनता व प्रसाशन से अपील करते हुए कहा कि इस महत्वपूर्ण मामले को देखने, पानी बचाने और पर्यावरण बचाने के लिए हम सभी को मिलकर कदम उठाना चाहिए।
Swadesh Digital
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