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ग्वालियर : कृषि महाविद्यालय में पद्मश्री दीपा मलिक ने 'संकल्प की शक्ति' पर दिया व्याख्यान

ग्वालियर : कृषि महाविद्यालय में पद्मश्री दीपा मलिक ने संकल्प की शक्ति  पर दिया व्याख्यान
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ग्वालियर, न.सं.। पद्मश्री एवं राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड से सम्मानित डॉ. दीपा मलिक ने कहा कि दुख सभी के जीवन में आते हैं लेकिन कठिन परिस्थितियों से हारने के बजाए उनका समाधान ढूंढना चाहिए। युवा पीढ़ी के लिए सफलता का मूल मंत्र है कि बदलाव को अपनाएं। सीखना बंद तो जीतना बंद, इसलिए सीखने की प्रवृत्ति को जीवनभर बनाए रखें। ईश्वर पर भरोसा है तो किस्मत में जो लिखा है वह मिलेगा, यदि खुद पर भरोसा है तो तुम जो चाहोगे वह हासिल होगा। उन्होंने जीवन में विजयश्री पाने के लिए सफलता के ये मूल मंत्र राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय एवं कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया टेडर्स, यूथ विंग द्वारा कृषि महाविद्यालय में 'संकल्प की शक्ति विषय पर आयोजित व्याख्यान में दिए।

उन्होंने कहा कि मैं साढ़े बीस साल से मैं यह अपंग शरीर लेकर जी रही हूं। मैं खाती हूं तो दाने गिनकर और पीती हूं तो बंूदे गिनकर। कुछ भी ज्यादा हो जाता है तो मुझे अस्पताल जाना पड़ता है। नकारात्मक लोगों ने मुझे जीने नहीं दिया, हर जगह ताने मिले, लेकिन मैंने संघर्ष नहीं छोड़ा और न ही पीछे मुड़कर देखा, जो भी मेरे सामने आया वह किया। अपंगता रूपी अभिशाप को मिटाया और आज जो भी हूं कड़ी मेहनत व इच्छाशक्ति के दम पर। इसलिए मैं आप लोगों से खासकर युवाओं से कहना चाहती हूं कि इस जीवन में कोई एक जीवन को संवारे, जो दूसरों के लिए प्रेरणादायी बनें, तभी आपका जीवन सार्थक होगा। उन्होंने कहा कि आज मैं जिस मुकाम पर हूं उसमें ग्वालियर का बड़ा योगदान है। मैं पहली बार मोटरसाइकिल दौड़ के लिए ग्वालियर आई थी और मुझे देखकर फौजियों ने कहा कि ये अपंग लड़की क्या करेगी। लेकिन दौड़ में सब पीछे रह गए। ग्वालियर आते-आते कैप्टन विक्रम सिंह मलिक ने दौड़ में पछाड़ दिया और मुझे उनसे प्यार हो गया। ग्वालियर में मुझे पति मिला। जब मैं अपंगता की स्थिति में आई तो व्हील चेयर पर कुछ करने के लिए निकली थी। जिसका पहला पड़ाव ग्वालियर था। तब मैं स्वीमिंग सीखने के लिए फौजी गाड़ी में कर्नल की मेम साहब के रूप में यहां आई थी। यहां गुरू के रूप में डॉ. डबास सर मिले, जिन्होंने मुझे मेम साहब से खिलाड़ी बनाया। तीसरी आईटीएम यूनिवर्सिटी ने मुझे डॉक्टे्रट की उपाधि देकर मेरी पिता का सपना पूरा किया। मैं ग्वालियर की मैं हमेशा ऋणी रहूंगी। इस अवसर पर उन्होंने छात्रों द्वारा पोछे गए सवालों के जवाब भी दिये।

अचल ने पूछा की आपका जीवन बहुत संघर्ष भरा रहा, इससे कैसे लड़ी और सबके लिए मिशाल बनीं?

इस सवाल का जवाब देते हुए मालिक ने कहा की मुझे पांच साल में ट्यूमर का पता चला, जांच-पड़ताल हुई। नौ साल तक मैं चल नहीं सकी। लोग ताने देते थे कि ये क्या करेगी, कहते थे भगवान इसे उठा ले। बड़ी बिटिया देविका जब सवा साल की थी, तभी दुर्घटना में शरीर का एक अंक अपंग हो गया। अपंगता क्या होती है इसका ऐहसास मुझे बचपन में नहीं लगा। लेकिन जब बेटी के साथ ऐसा हुआ तो तब ऐहसास हुआ। सबसे ज्यादा दुख तब हुआ, जब लोग ताने देने लगे कि मां की बीमारी बेटी को लग गई। मुझे बहुत दुख था, ऊपर से दुनिया के ताने सुनने पड़ते थे। जब दूसरी बिटिया अंबिका हुई अब यह सिलसिला थम जाएगा। जब जिंदगी ऊपर अच्छी लगने लगी तो फिर से मुझे दिक्कते शुरू होने लगीं। पति को 1999 में कारगिल युद्ध में भेज दिया। बीमारी के चलते मैं बिस्तर पर पहुंच गई। चिकित्सकों ने कहा दीपा तुम्हे ट्यूमर हैं, यदि यह फट गया तो तुम मर जाओगी और अपंग हो जाओगी। मैंने बिना पति के दिल्ली में ऑपरेशन करवाया। हिम्मत नहीं हारी और आज साढ़े बीस साल से इस शरीर में जी रही हूं। लेकिन मैं कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और न ही जिंदगी से हारी।

इसके बाद आशीष वैश्य ने पूछा की उद्योग जगत में युवा आते हैं लेकिन कुछ समय में हतोत्साहित क्यों हो जाते हैं ?

इस सवाल का जवाब देते हुए मालिक ने कहा की मोटीवेशन खाने की तरह है, इसलिए जब आप हताश हों तो किताबें, कहानियां पढ़े। छोटी-छोटी बातों से सीखें। मैं जब अस्पताल में थी तो एक महिला कर्मचारी ने मेरी हालात देखकर कहा कि तुम कभी पैरों पर नहीं चल सकतीं, इसलिए अच्छे से जीना है तो सिर पर बर्फ एवं मुंह में चीनी रख लो, जिंदगी प्यारी हो जाएगी।

Updated : 1 Feb 2020 8:25 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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