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स्वच्छता के नाम पर फूंके 40 करोड़

स्वच्छता के नाम पर फूंके 40 करोड़
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कचरे में भी गोलमाल कर रही नगर निगम, शहर में जगह-जगह लगे हैं गंदगी के ढेर, शिकायत करने पर भी नहीं उठता है कचरा

ग्वालियर/न.सं. स्वच्छता की रैंकिंग में पिछडऩे के बाद ग्वालियर नगर निगम की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है। शहर में स्वच्छता के नाम पर बड़ा घोटाला समाने आया है। स्वच्छता में शहर को पहले पायदान पर लाने के लिए नगर निगम ने साल भर में लगभग 40 करोड़ रुपए फूंक दिए। फिर भी शहर पर गंदगी का दाग लग गया। ग्वालियर शहर रैंकिंग में 28 से 59वें स्थान पर लुढक़ जाने के कारणों की जब पड़ताल की गई तो कचरे में भी गोलमाल की बू आती दिखी। विपक्ष भी इस मामले की शिकायत कमलनाथ सरकार से कर रहा है।

सूत्रों की मानें तो नगर निगम के कचरा वाहनों पर प्रतिदिन करीब 609 टन कचरा परिवहन किए जाने के हिसाब से खर्चा किया जा रहा है, जबकि शहर से प्रतिदिन करीब 499 टन कचरा ही निकल रहा है। करीब 109 टन कचरे के परिवहन के नाम पर प्रतिदिन गोलमाल हो रहा है। इसके बावजूद हर तरफ कचरा फैला हुआ है और शहर की किरकिरी हो रही है। आश्चर्यजनक बात यह है कि नगर निगम के पास इसका कोई हिसाब नहीं है।

स्वच्छता सर्वेक्षण में पिछड़ने के बाद नगर निगम नए सिरे से सफाई व्यवस्था को लेकर दावे तो कर रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि शहर से प्रतिदिन निकलने वाला कचरा भी नहीं उठ पा रहा है। शहर के जनकगंज स्थित बक्शी की गोठ में कचरे का ढेर लगा हुआ है। इससे आसपास के लोग परेशान हैं।

मुख्य क्षेत्रों में छह-सात घण्टे तक ही नजर आती है सफाई

नगर निगम का अमला शहर के मुख्य क्षेत्रों, सड़कों तथा बाजारों तक सफाई के लिए सीमित हो गया है। ऐसे क्षेत्रों में भी केवल छह-सात घण्टे ही सफाई दिखती है। बाजारों में दुकानदार रात में दुकान बंद कर कचरे को सड़क पर ही फेंक जाते हैं। सुबह नौ-दस बजे तक सफाई होती है और कचरे के ढेर लगा दिए जाते हैं। यह कचरा दोपहर 12 बजे तक उठता है। शाम छह-सात बजे तक सडक़ों पर फिर कचरा नजर आने लगता है। ज्यादातर कॉलोनियों में भी यही स्थिति होती है। शहर के 66 में से 21 वार्डों में ही डोर टू डोर कचरा कलेक्शन के वाहन सीटी बजाते देखे जा सकते हैं। वे भी सभी गलियों से होकर नहीं गुजरते हैं, इसलिए दोपहर तक गंदगी बनी रहती है। जहां सफाई कर्मी पहुंचते हैं, वहां दोपहर तक कचरे के ढेर नहीं उठाए जा रहे हैं।

ऐसे बहा नगर निगम का पैसा

एक करोड़ रुपए नवाचार पर खर्च।

दो करोड़ रुपए लोगों को जागरुक करने व प्रचार-प्रसार आदि पर खर्च।

एक करोड़ रुपए जूते, दस्ताने, स्वच्छता दूत महिलाओं को साडिय़ां बांटने पर खर्च।

12 करोड़ रुपए सर्वे के बीच तीन माह के लिए चार हजार कर्मियों के वेतन पर खर्च।

चार करोड़ रुपए डीजल, पेट्रोल और वाहन पर खर्च।

चार करोड़ रुपए से अधिक शौचालय, सुलभ और सामुदायिक शौचालय आदि पर खर्च।

352 ग्राम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति कचरे का औसत उत्पादन।

14.20 लाख शहर की आबादी सफाई के हिसाब से अधिकारियों ने मात्रा तय की।

499.84 टन कचरा प्रतिदिन शहर से निकलना चाहिए।

609 टन कचरा प्रतिदिन परिवहन के हिसाब से खर्च कर रहा है नगर निगम।

जीपीएस सिस्टम के लिए लाखों रुपए खर्च

कचरा परिवहन करने वाले वाहनों में जीपीएस सिस्टम लगाने के लिए भी नगर निगम ने लाखों रुपए खर्च किए, लेकिन वाहन चालकों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। कचरा कलेक्शन करने वाले कई वाहन चालक चक्कर लगाए बिना डीजल बेच देते हैं। ऐसी भी शिकायतें समाने आई हैं। बावजूद इसके नगर निगम अधिकारियों ने स्वच्छता के नाम पर करोड़ों रुपए बहाए हैं।

इनका कहना है

हमने शासन से मांग की है कि स्वच्छता के नाम पर जो खर्च हुआ है, उसका सोशल ऑडिट किया जाए, साथ ही दोषियों पर कार्रवाई की जाए। नगर निगम अधिकारियोंं ने सफाई में नम्बर एक पर आने के लिए कचरा परिवहन, डीजल, सफाई आदि पर साल भर में करीब 40 करोड़ खर्च कर डाले, लेकिन ठोस योजना, कर्मचारियों पर नियंत्रण और कार्रवाई न होने से नाकामी हाथ लगी। शहर में स्वास्थ्य अधिकारी स्तर पर अधिकारी नियुक्त हैं। इसके बावजूद कचरा नहीं उठ रहा है। इसमें अधिकारी वाहन चालकों से मिले हुए हैं। कचरा प्रबंधन के नाम पर करोड़ों का घोटाला हो रहा है।

-कृष्णराव दीक्षित

नेता प्रतिपक्ष, नगर निगम

Updated : 18 March 2019 7:12 PM GMT
author-thhumb

Naveen Savita

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