लक्ष्मीबाई से प्रेरणा लेकर अपने अंदर के सैनिक को जगाएं
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की युद्ध नीति की दृष्टि से 23 मार्च 1858 से 18 जून १८५८ तक का समय विश्लेषण करने लायक है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दी वीरांगना को पुष्पांजलि
ग्वालियर | झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की युद्ध नीति की दृष्टि से 23 मार्च 1858 से 18 जून १८५८ तक का समय विश्लेषण करने लायक है। यह वो समय था, जब तमाम विपरीत परिस्थितियों में लक्ष्मीबाई ने अदम्य शौर्य, अदम्य साहस, अदम्य आत्मविश्वास और बहादुरी के साथ एक सैनिक का परिचय देते हुए अबला से सबला के भरपूर उदाहरण प्रस्तुत किए और अंग्रेजों से दू टूक शब्दों में कहा कि मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी। यदि हम उनके इन तमाम उदाहरणों से कुछ सीखें और अपने अंदर के सैनिक को जगाएं तो यह धरती धन्य हो जाएगी।
यह बात सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने मुख्य वक्ता की आसंदी से सोमवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्वावधान में वीरांगना लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर लक्ष्मीबाई कॉलोनी स्थित सामुदायिक भवन में आयोजित वीरांगना प्रणाम कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक प्रो. राजेन्द्र बांदिल ने की। सेवानिवृत्त ले. जनरल श्री सिंह ने कहा कि उस महा आत्मा और महा शक्ति को नमन करते हुए मेरे लिए यह गौरव का क्षण है। 160 साल पहले आज ही के दिन इसी धरती पर रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों की सेना से लोहा लेते हुए अपना बलिदान देकर यह उदाहरण पेश किया कि एक नागरिक अपने अंदर के सैनिक को जगाकर किस प्रकार बड़ी से बड़ी चुनौतियों से लड़ सकता है और किस तरह अपने राष्ट्र को गुलामी से बाहर निकाल सकता है। उनका बलिदान हर नागरिक को यह प्रेरणा देता है कि अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और अपने संगठन के प्रति हमारा क्या दायित्व है?
श्री सिंह ने कहा कि हम अपनी अंतरात्मा से यहां फूलबाग में अंग्रेजों की सेना और रानी लक्ष्मीबाई के बीच हुए अंतिम युद्ध के दृश्य को देखें तो अंदर से एक जोश उठेगा और यह सवाल भी उठेगा कि अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और अपने संगठन के लिए मैंने क्या किया? मैं क्या कर रहा हूं? मुझे क्या करना चाहिए? तमाम मुसीबतों के बीच उन्होंने स्वयं को युद्ध के लिए कैसे प्रशिक्षित किया होगा? इसका गहराई से विश्लेषण करके हमें उनसे सीखने की जरूरत है। यही उस महा आत्मा को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इससे पहले घोष वादन और ध्वज प्रणाम के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। अंत में संघ प्रार्थना के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम का संचालन रवि अग्रवाल ने किया। अंत में अतिथियों सहित उपस्थित सभी स्वयंसेवकों एवं गणमान्य नागरिकों ने समाधि स्थल पर पहुंचकर वीरांगना लक्ष्मीबाई को पुष्पांजलि अर्पित की।
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