तीसरी पुण्यतिथि आज : मां के कहने पर एमएन बुच ने मध्यप्रदेश को बनाया था अपनी कर्मभूमि
तीसरी पुण्यतिथि
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राजधानी के हरे-भरे और खुले-खुले स्वरूप के शिल्पकार एमएन बुच यानी महेेश नीलकंठ बुच की आज पुण्यतिथि है।
भोपाल। राजधानी के हरे-भरे और खुले-खुले स्वरूप के शिल्पकार एमएन बुच यानी महेेश नीलकंठ बुच की आज पुण्यतिथि है। राजधानी में उनकी गैरमौजूदगी का यह तीसरा साल है। समावेशी विकास के खोखले दावों, बेतरतीब प्लानिंग और पर्यावरण की उपेक्षाभरे इस माहौल में उस बुलंद आवाज की कमी हमें सबसे ज्यादा खल रही है, जो एमएन बुच के रूप में अक्सर सरकार और सत्ताधीशों को ललकारा करती थी।
मां ने दी थी ये शिक्षा
यदि वे आज होते तो स्मार्ट सिटी, बड़े तालाब की बेकद्री, एक दशक से अटके भोपाल के मास्टर प्लान जैसे मुद्दों पर काफी मुखर होते।
1934 में साहीवाल (पाकिस्तान) में जन्मे बुच साहब मूलत: भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे। आईसीएस पिता के घर जन्मे और देश-विदेश के आभिजात्य स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पढ़े बुच ने देश के भूगोल को बदलते और इतिहास को बनते प्रत्यक्ष देखा था। वे देश के आभिजात्य प्रशासनिक ढांचे का हिस्सा जरूर बने, लेकिन सेवा के लिए उन्होंने मध्यप्रदेश जैसा अविकसित प्रदेश चुना और यहीं बसना पसंद किया।
उनका परिवार गुजरात में बसा था, लेकिन 1957 में प्रशासनिक सेवा में चयन के वक्त उनकी मां ने कहा कि काम के लिए वो स्थान चुनना जो सबसे पिछड़ा हो और उसे बेहतर बनाकर दिखाना। यही कारण था कि उन्होंने मप्र कैडर चुना। बदलते वक्त के साथ यह सिद्ध हुआ कि बुच साहब और मप्र एक दूसरे के लिए बने हैं। बुच साहब राजकोट से दिल्ली और फिर केम्ब्रिज से मसूरी होते हुए आईएएस अधिकारी के रूप में पहले पहल मुरैना आए। सेवाकाल के अंत में भोपाल आए तो यहीं के हो गए। भोपाली होना इस शहर में एक सम्मानजनक हैसियत है, वे किसी भी भोपाली से ज्यादा खांटी भोपाली थे।
- बुच साहब के योगदान को याद करते हैं उनके पूर्व सहयोगी
वे एक इनोवेटिव, प्रैक्टिकल और पीपुल्स पर्सन थे। उनसे बिना झिझक के कोई भी अधीनस्थ या आम आदमी खुलकर बात कर सकता था। ब्यूरोक्रेसी का उनका मॉडल इसी कारण प्रभावी था। ट्रिपल आईटीएम आज जिस स्वरूप में हैं, वह बुच साहब की सोच का नतीजा है। - प्रो. एसजी देशमुख, डायरेक्टर, ट्रिपल आईटीएम ग्वालियर
- उनका अपना विजन था
नगर नियोजन को लेकर उनका विजन था कि गरीब और अमीर सभी के लिए समान स्थान हो। लेकिन आज जिस तर्ज पर स्मार्ट सिटीज बनाई जा रही हैं, इनमें गरीबों के लिए कोई स्थान नहीं हैं। वे मानते थे कि शहरों का समावेशी विकास तभी हो सकता है, जब योजनाएं सचिवालयों के बजाए जनता से संवाद कर बनाई जाएं। - सुभाष बोरकर, संपादक सिटीजन्स फर्स्ट टेलीविजन, नई दिल्ली
- आज उनकी सबसे ज्यादा जरूरत
आज देश को सबसे ज्यादा जरूरत बुच साहब जैसे लोगों की है जो उच्च स्तर के सिद्धांतवाद को मानने के साथ उसे अमल कराने में सक्षम हों। वे महान दूरदर्शी सोच के व्यक्ति थे जिन्होंने कई महानगरों और शैक्षणिक व शोध संस्थानों को आकार दिया। - विनोद सिंह, डायरेक्टर, आईआईएसईआर, भोपाल
Vikas Yadav
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