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सोशल मीडिया का चुनावी दबदबा

सोशल मीडिया का चुनावी दबदबा
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भाजपा-कांग्रेस ने तैनात की अपनी-अपनी टीमें

भोपाल/विशेष संवाददाता आम लोगों की मानसिकता को प्रभावित करने में सोशल मीडिया अब बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा है। इसलिए आम चुनाव की घोषणा के बाद अब सोशल मीडिया पर कुछ नियंत्रण लगाये जाने की बात उठने लगी है। इंटरनेट का सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिस पर नियंत्रण करने की बात करना तो आसान है, लेकिन कर पाना बहुत ही मुश्किल है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अधिकतर सोशल मीडिया कंपनियां भारत से बाहर की हैं और उन पर अंकुश लगाने की सबसे बड़ी चुनौती अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन प्रतीत होगा। हालांकि, मुख्य चुनाव आयुक्त ने आचार संहिता के तहत सोशल मीडिया पर कड़ी नजर रखने की बात जरुर कही है जिससे यह उम्मीद जागती है कि कुछ होगा इसके विपरीत चुनाव आयोग की तरफ से अभी कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं हुआ है।

लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया खासा रंग दिखाएगा। मध्यप्रदेश में 40 प्रतिशत मतदाता वाटसएप, ट्वीटर और फेसबुक पर सक्रिय हैं जिनकी चुनावों में अहम भूमिका होगी। चुनावी गणित में इस तबके पर निगाह जमाए राजनीतिक दलों ने भी सोशल मीडिया को प्रचार-प्रसार का सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म बनाते हुए अपना-अपना चुनावी अभियान छेड़ दिया है। पिछले पांच माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में सोशल मीडिया अपनी अहमियत दिखा चुका है। मौजूदा हाईटेक दौर में मतदाताओं को लुभाने के लिए सोशल मीडिया एक मजबूत धरातल के रूप में उभरा है। प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य बताता है कि सोशल मीडिया संसदीय चुनावों में अहम भूमिका निभा सकता है, क्योंकि साल 2018 के विधानसभा चुनाव के समय दर्ज कुल पांच करोड़ 14 लाख दो हजार 20 मतदाताओं में से लगभग 90 लाख मतदाता स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करते हैं। सोशल मीडिया पर सक्रिय मतदाताओं को रिझाने के लिए राजनीतिक दलों ने आइटी सेल गठित कर विशेषज्ञों की ड्यूटी लगाई है। सत्तारूढ़ भाजपा से लेकर विपक्षी कांग्रेस सहित लगभग सभी दलों के नेता और समर्थक सोशल मीडिया के जरिये मतदाताओं तक अपनी राजनीतिक विचारधारा पहुंचा रहे है। राजनीतिक दलों की कमजोरियां उजागर करने और आलोचना के लिए भी सोशल मीडिया कारगर हथियार साबित हो रहा है।

एक सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि सभी मोबाइल उपयोगकर्ताओं के बीच हर तीसरा व्यक्ति मोबाइल पर इंटरनेट का उपयोग करता है। युवा इसका बहुत बड़ा हिस्सा हैं। लगभग 40 लाख मतदाता 18-29 वर्ष की आयु वर्ग के अंतर्गत आते हैं, जबकि 20-39 आयु वर्ग में लगभग दो करोड़ 69 लाख मतदाता शामिल हैं। इस आयु वर्ग में कुल 70 प्रतिशत मतदाता इंटरनेट का उपयोग करते हैं।

सोशल मीडिया बन सकता गेम चेंजर

लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया गेम चेंजर की भूमिका निभा सकता है। मध्यप्रदेश में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह से लेकर प्रदेश की राजनीति में सक्रिया लगभग हर छोटा-अड़ा नेता सोशसलमीडिया पर सक्रिय है, जबकि भाजपा का प्रदेश मीडिया सेल कांग्रेस के सोशसलमीडिया सेल की तुलना में ज्यादा हाईटैक ऐसा नही कि कोंग्रस सोशसलमीडिया पर सक्रिय नही है। बल्कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ के अलावा चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी पिछले कुछ समय में सोशसलमीडिया पर अपनी सक्रियता बढ़ाई है।

हैकरों की यह चेतावनी

हैकरों की यह चेतावनी चर्चा में है, कि वे चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश करेंगे भारत को इस खबर को हलके में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि अमेरिका में हुए पिछले राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने में भी रूस की भूमिका को लेकर खबरें आ ही नहीं चुकी हैं, बल्कि एक तरह से प्रमाणित भी हुई हैं। जरूरी है कि सोशल मीडिया पर नियंत्रण के लिए चुनाव आयोग एक दिशा-निर्देश जारी करे कि चुनाव में पार्टियों को क्या-क्या कदम उठाने चाहिए। आचार संहिता के तहत पार्टियों के नेटवर्क पर या उनके सोशल मीडिया पेजों पर कैसी प्रचार सामग्री डाली जा रही है? इसकी निगरानी हो।

राजनीतिक दलों ने बनाए सोशल मीडिया सेल

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की अहमियत को समझते हुए भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य दलों ने सोशल मीडिया सेल का गठन किया है। सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार के लिए बाकायदा पदाधिकारियों को नियुक्त किया गया है।

क्या है समस्या?

समस्या यह है कि चुनाव आयोग ने इस संबंध में जो बातें कही हैं, उससे कोई बड़ा क्रांतिकारी परिणाम नही निकलेगा। आयोग ने कहा है कि राजनीतिक पार्टियों को सोशल मीडिया पर अपने विज्ञापन की पहले जानकारी देनी होगी, फिर स्वीकृति मिलने पर ही वे उसको अपने पेज पर पोस्ट करेंगे. यह कदम तो ठीक है, लेकिन पार्टियां बहुत चालाक हैं और वे बिना पार्टी का नाम लिये ही कोई प्रॉक्सी एकाउंट खोल लेंगी और अपना प्रचार सामग्री पोस्ट कर देंगी। ऐसे में समूचे सोशल मीडिया के तंत्र के स्तर पर ही कोई तकनीकी रणनीति बनानी पड़ेगी, ताकि कोई भी व्यक्ति चुनाव को प्रभावित न कर सके और स्वच्छ चुनाव हो।

क्या है लोगों का अभिमत

आम धारणा है कि भारत में जो कुछ करना हो कर लो, कानूनन सजा तो होनी नही है। इस जगह कानून की कमी जरुर दिखती है, इसलिए सरकार को चाहिए कि चुनौती से भरे इस मुद्दे को लेकर सख्त कानून लाए। सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट करने के लिए तो कोई शुल्क नही लगता, लेकिन उस पर विज्ञापन देने के लिए पैसे खर्च होते हैं, जिसे चुनावी खर्च में जोडत्रने की बात कही गई है। यह एक अच्छा कदम हो सकता है, लेकिन सवाल फिर वही है कि यह संभव कैसे है।

Updated : 27 March 2019 3:58 PM GMT
author-thhumb

Naveen Savita

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