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अमेठी को स्मृति की सौगातें 2019 में राहुल के लिए कहीं चुनौती न बन जाएं ?

अमेठी को स्मृति की सौगातें 2019 में राहुल के लिए कहीं चुनौती न बन जाएं ?
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अमेठी। दशकों से अमेठी नेहरू-गांधी परिवार के किले जैसी है। बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स पर यहां काम भी हुए, वो गुज़रे दौर की बात हो या फिर यूपीए सरकार का एक दशक का कार्यकाल। तमाम जतन के बाद भी राहुल गांधी का 2014 का चुनावी रिपोर्ट कार्ड दो बार के मुकाबले गेस मार्क के मानिंद रहा।

इसके बाद से उनकी प्रतिद्वंदी बीजेपी नेत्री एवं केंद्र में मंत्री स्मृति ईरानी से बढ़ी। उनका बार-बार अमेठी आकर छोटी-छोटी सौगातें देना कहीं 2019 में राहुल गांधी के लिए चुनौती न बन जाए? केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी यूं तो अमेठी के सियासी दंगल की पराजित नेता हैं क्योंकि 2014 में उन्हें करारी शिकस्त मिली थी। इसके बावजूद न उन्होंने अमेठी आना छोड़ा न यहां के लिए सौगातों का लाना। वो जब अमेठी आईं तो हाथों में सौगातों की पोटली लेकर। शुक्रवार 4 जनवरी को नए साल के आगाज़ पर वो अमेठी आईं तो उनके हाथों में गौरीगंज स्थित संयुक्त अस्पताल के लिए 'सिटी स्कैन' मशीन की सौगात थी। ये सौगात अमेठीवासियों के लिए किसी 'हीरे' से कम नहीं थी। वो इसलिए कि अमेठी जैसे वीवीआईपी जिले में इस मशीन के न होने से जिलेवासियों को लखनऊ, रायबरेली जिलों में जाकर धक्के खाने पड़ते थे।

नए साल में इस सौगात से ठीक पहले पुराने साल के अंत में यानी ठीक बारह दिन पहले 23 दिसम्बर 2018 को भी स्मृति ईरानी अमेठी लोकसभा के सलोन तहसील के छतोह ब्लाक पर पहुंची थीं। यहां पर वो 100 कुम्हारों को इलेक्ट्रिक चाक और 50 मधुमक्खी पालकों को 500 मधुमक्खी बक्सों का वितरण करके गई थीं। वो यहां वादा कर गई थीं कि धान की भूसी और गाय के गोबर द्वारा कागज बनाने का भी काम भी छतोह ब्लाक में किया जाएगा। लिज्जत पापड़ बनाने के लिए भी महिलाओं को मौका दिलायेंगी। इससे ठीक 36 दिन पहले 19 नवम्बर को उन्होंने अमेठी में अलग-अलग विकास योजनाओं के लिए 80 करोड़ रुपये की कार्य योजना का शिलान्यास और उद्घाटन किया था जिसमें पिपरी का बांध भी शामिल था।

उधर, अमेठी से सांसद व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनके कार्यकर्ताओं की शिकायत है कि जब से केंद्र में बीजेपी की सरकार आई है, तब से कांग्रेस के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स को अमेठी से छीन लिया गया। गाहे- बगाहे इसमें स्मृति ईरानी का नाम भी खींचा जाता है। पेपर मिल, मेगा फूड पार्क, ट्रिपल आईटी सरीखे ड्रीम प्रोजेक्ट्स यूपीए सरकार के वो काम हैं जिसके लिए कांग्रेसियों का रोना सुबह-शाम का है। वाराणसी-लखनऊ रेल ट्रैक का दोहरीकरण यूपीए सरकार का ही काम है जो दस सालों में शुरू न होकर अब पूरा कराया जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस जितना दोषी बीजेपी को बता रही, उससे कम दोषी वो स्वयं भी नहीं है।

यहां सवाल ये है कि बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स पर दिन-रात आंसू बहाने वाले कांग्रेसियों को बुनियादी चीज़े क्यों नजर नहीं आईं? केंद्रीय मंत्री ने जिस सिटी स्कैन मशीन को अमेठी के लोगों को समर्पित किया उसे तो यूपीए के दस साल के कार्यकाल में ही लग जाना चाहिए था। अलग से बजट के प्रावधान की भी जरूरत नहीं थी, ये तो सांसद राहुल गांधी की निधि से लग सकती थी, जो वापस गई। पिपरी का बांध भी यूपीए सरकार में ही बन सकता था, केंद्र में सरकार होने पर कई बार इसकी मांग भी इलाकों के लोगों ने की लेकिन बात सुनी-अनसुनी कर दी गई। ये भी हो सकता है कि कांग्रेस अध्यक्ष और अमेठी सांसद राहुल गांधी के मैनेजर शायद नीचे स्तर की मूलभूत असुविधाओं के बारे में या तो जानकारी नहीं रखते या आलाकमान को जानकारी देना नहीं चाहते। अगर ऐसा है तो 2019 की डगर बड़ी कठिन है।

Updated : 27 Feb 2019 9:21 AM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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