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गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन अधिनियम विधेयक लोकसभा में पास, गृहमंत्री ने दिया हर जवाब

गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन अधिनियम विधेयक लोकसभा में पास, गृहमंत्री ने दिया हर जवाब
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नई दिल्ली। विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण संशोधन विधेयक 2019 (यूएपीए बिल) लोकसभा में पास हो गया है। इससे पहले, इस बिल पर सदन में हुई जोरदार बहस का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आतंकवाद पर करारा प्रहार करने के लिए कड़े और बेहद कड़े कानून की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज कांग्रेस कानून में संशोधन का विरोध कर रही है जबकि 1967 में इंदिरा गांधी की सरकार ही यह कानून लेकर आई थी। शाह ने अर्बन नक्सलिजम पर वार करते हुए कहा कि जो इसे बढ़ावा दे रहे हैं, उन पर कठोर कार्रवाई होगी। हमारी सरकार की उनके प्रति बिल्कुल भी सहानुभूति नहीं है।

शाह ने कहा कि यूएपीए में किसी व्यक्ति विशेष को कब आतंकवादी घोषित किया जाएगा, इसका प्रावधान है। इसके तहत, कोई व्यक्ति आंतकवादी गतिविधियों को अंजाम देता है या उसमें भाग लेता है तो उसे आतंकवादी घोषित किया जाएगा। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, 'आंतकवाद के पोषण में मदद करता है, धन मुहैया कराता है, आतंकवाद के साहित्य का प्रचार-प्रसार करता है या आतंकवाद की थिअरी युवाओं के जहन में उतारने की कोशिश करता है, उसे आतंकवादी घोषित करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए?'

गृह मंत्री ने कहा कि यह कहना कि आतंकवादियों पर कठोर कार्रवाई से नहीं, बल्कि उनसे बातचीत कर आतंकवाद पर काबू पाया जा सकता है, इस विचार से वह कतई सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि किसी के पास बंदूक होती है, इसलिए वह आतंकवादी नहीं बन जाता है बल्कि वह इसलिए आतंकवादी बनता है क्योंकि उसके दिमाग में आतंकवादी सोच रहती है। अमित शाह ने कहा कि कानून में आंतकी गतिविधि में लिप्त संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित करने करने का प्रावधान तो है, लेकिन आंतकी वारदात को अंजाम देने वाले या इसकी साजिश रचने वाले लोगों को आतंकवादी घोषित किए जाने का अधिकार नहीं था। शाह ने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि एनआईए ने यासीन भटकल की संस्था इंडियन मुजाहिदीन को आतंकवादी संस्था घोषित किया था, लेकिन उसे आतंकवादी घोषित नहीं किया। इसका फायदा लेते हुए उसने 12 घटनाओं को अंजाम दिया।

यूएपीए में संशोधन के जरिए देश के संघीय ढांचे पर प्रहार करने के विपक्ष के आरोप पर शाह ने कहा कि सबसे पहला अमेंडमेंट 2004 के अंत में आया जब यूपीए सरकार थी। दूसरा संशोधन 2008 में आया। तीसरा अमेंडमेंट 2013 में आया। तब भी कांग्रेस, यूपीए की सरकार थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। गृह मंत्री ने एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले के सवाल पर जवाब देते हुए कहा कि देश में सामाजिक कार्यकर्ताओं की बड़ी आबादी सम्मानित जीवन जी रही है, लेकिन जो लोग वैचारिक आंदोलन का चोला पहनकर अर्बन नक्सलिजम को बढ़ावा दे रहे हैं, उन पर कठोर कार्रवाई होगी। हमारी सरकार की उनके प्रति बिल्कुल भी सहानुभूति नहीं है। शाह ने कहा, 'वैचारिक आंदोलन का चोला पहनकर वामपंथी उग्रवाद को हवा देने वालों को हमारी सरकार तनिक भी बर्दाश्त नहीं करेगी।'

यूएपीए ऐक्ट के सेक्शन 25 पर कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी की आपत्तियों का जवाब देते हुए शाह ने कहा कि मौजूदा सरकार ने यह सेक्शन नहीं जोड़ा है, बल्कि यह पहले से था। अभी इसमें सिर्फ संशोधन किया जा रहा है। साथ ही, उन्होंने कहा कि इस कानून के तहत गिरफ्तार आरोपी पर खुद की बेगुनाही साबित करने की जिम्मेदारी पहले भी नहीं थी और आगे भी नहीं होगी। इस सेक्शन से कोई छेड़छाड़ नहीं किया जा रहा है। यानी, बर्डन ऑफ प्रूफ आज भी एनआईए पर है। शाह ने कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी के सवालों का जिक्र करते हुए कहा कि तिवारी ने आईटी ऐक्ट के सेक्शन 66एफ का क्लॉज बी बताया लेकिन, सेक्शन 66एफ और 66एफ के क्लॉज ए के बारे में कुछ नहीं कहा। इस सेक्शन के तहत कहा गया है कि पुलिस के पास आंतकी गतिविधि में लिप्त होने का संदेह होने पर किसी का लैपटॉप, कंप्यूटर चेक करने का अधिकार है।

गृह मंत्री ने कहा कि हम जब विपक्ष में थे तब भी आतंकवाद के खिलाफ कड़े कानून की मांग करते थे और आज जब सत्ता में हैं तो भी हमारा विचार यही है। आप कह सकते हैं कि आपने अपनी सरकार के दौरान एनआईए ऐक्ट लाकर और इसमें दो बार सुधार लाकर गलत किया, यह आपकी मर्जी है। हालांकि, हम अब भी मानते हैं कि आपने एनआईए ऐक्ट लाकर बिल्कुल सही किया। इससे पहले, लोकसभा में विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण संशोधन (यूएपीए) विधेयक 2019 पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक हुई। विपक्षी सांसदों ने बिल को खतरनाक तथा जनविरोधी, संविधान विरोधी करार दिया। ओवैसी ने तो बिल को मुस्लिम और दलित विरोधी तक बता डाला। बाद में सवालों के जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष पर तीखे पलटवार करते हुए कहा कि बिल अपराधियों और आतंकवादियों पर नकेल कसेगा। बिल पर सरकार को बीजू जनता दल का समर्थन मिला। बीजेपी ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सरकार के कदमों की तारीफ की।

लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने बिल को खतरनाक तथा जनविरोधी करार देते इसे वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा कि सदन में किसी भी विधेयक का विरोध करने पर विपक्ष के सदस्यों को राष्ट्रविरोधी करार दे दिया जाता है। हमें विपक्ष में रहने की वजह से यह जोखिम क्यों है? उनकी इस बात का बीजेपी के कई सदस्यों ने विरोध किया। बीजेडी के पिनाकी मिश्रा ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के किसी भी विषय पर उनकी पार्टी हमेशा सरकार के साथ खड़ी है। उन्होंने आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय पर केंद्र सरकार के कदमों की सराहना करते हुए कहा कि मोदी सरकार अच्छा काम कर रही है। उसे लोकसभा चुनाव में बड़ा बहुमत मिला है और 303 सीटें मिली हैं, इसका मतलब जनता समझती है कि सरकार उन्हें सुरक्षा दे रही है। उन्होंने विधेयक पर विपक्ष के कुछ सदस्यों की आपत्तियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि केवल आशंका के नाम पर आशंका जताई जा सकती है, लेकिन अच्छे सुझाव भी दिए जाने चाहिए। मिश्रा ने सरकार से मांग की कि एनआईए का राज्यों के साथ अच्छी तरह तालमेल हो, इसके लिए एक स्थायी तंत्र बनाया जाना चाहिए। उन्होंने विधेयक में कई अन्य सूचीबद्ध अपराधों को भी शामिल करने की मांग की ताकि आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई और मजबूत तरीके से हो सके।

चर्चा में भाग लेते हुए शिवसेना के विनायक राउत ने कहा कि यह छोटा सा संशोधन विधेयक है लेकिन इसके परिणाम बहुत बड़े होंगे। इससे एनआईए को इतनी ताकत मिलेगी कि यह आतंकियों और आतंकी संगठनों पर पाबंदी लगा सके और उनमें डर भर सके। उन्होंने कहा कि पहले की (कांग्रेस नीत यूपीए) सरकार आतंकवाद को रोकने में नाकाम रही। लेकिन मोदी सरकार में पहले की तुलना में आतंकी घटनाओं पर काबू पाया गया है। राउत ने यह भी कहा कि इस बार अमरनाथ यात्रा शांति से चल रही है। उन्होंने कहा कि विधेयक में आतंकवादी की संपत्ति जब्त करने का प्रावधान महत्वपूर्ण है। शिवसेना सांसद ने यह भी कहा कि लोग 'मानवाधिकार' शब्द का गलत इस्तेमाल करते हैं, अब वह भी नहीं हो पाएगा और नक्सलवादी गतिविधियों में संलिप्त बुद्धजीवी लोगों पर भी पाबंदी लगेगी। जेडीयू के सुनील कुमार पिंटू ने कहा कि मोदी सरकार ने आतंकवाद को केवल कश्मीर सीमा तक सीमित करने का काम किया। मुंबई आतंकी हमले और संसद पर हमले के बाद जरूरत हो गई थी कि एनआईए जैसी एजेंसी हो और उसे भी अमेरिका की एफबीआई जैसे अधिकार मिलें। उन्होंने कहा कि विपक्ष को भी इस विधेयक पर सरकार का समर्थन करना चाहिए।

बीएसपी के दानिश अली ने जेलों में शक के आधार पर बेगुनाह नौजवानों के लंबे समय तक कैद में रहने की बात कही। उन्होंने कहा कि क्या ऐसे लोगों के बरी हो जाने के बाद सरकार उन्हें कोई हर्जाना देगी। उन्होंने विधेयक को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि इसके दुरुयपोग को रोकने के लिए सरकार ने क्या प्रावधान किए हैं? एनसीपी की सुप्रिया सुले ने कहा कि यूपीए सरकार के समय जब नैटग्रिड बनाया जा रहा था तब बीजेपी शासित राज्य आतंकवाद के खिलाफ यूपीए सरकार के कदमों का क्यों विरोध कर रहे थे। वे इसे संघवाद की भावना के खिलाफ बता रहे थे कि सरकार कानून व्यवस्था पर राज्यों के अधिकार वापस लेना चाहती है। एनसीपी सदस्य ने कहा कि आतंकवाद का मुद्दा यूपीए बनाम एनडीए का नहीं है और इस पर पूरे सदन को एकमत होना चाहिए। हालांकि उन्होंने कहा कि अगर विधेयक के प्रावधानों के आधार पर किसी को केवल शक के बिना पर हिरासत में लिया जाता है तो उसका कारण बताने की क्या समयसीमा होगी। सुले ने भीमा कोरेगांव की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि इस सरकार में कुछ बेगुनाह सामाजिक कार्यकर्ताओं पर भी कार्रवाई की गई जो गलत है। कार्यकर्ता और आतंकवादी अलग होते हैं। सरकार को सामाजिक कार्यकर्ताओं की बात सुननी चाहिए अगर वे विरोध करते हैं तो भी उनकी बात सुनना लोकतंत्र की खूबसूरती है। उन्होंने कहा कि विधेयक को लागू करते समय सत्ता का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

Updated : 24 July 2019 11:17 AM GMT
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