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सबरीमाला मंदिर : देवस्थानम बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांगा समय

सबरीमाला मंदिर : देवस्थानम बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांगा समय
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नई दिल्ली। केरल के देवस्थानम बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाने संबंधी फैसले को लागू करने के लिए समय की मांग की है। बोर्ड ने कहा है कि उसके पास जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद नहीं है। बोर्ड ने कहा है कि लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और हिंसा कर रहे हैं। आदेश को लागू करने के लिए समय की मांग की है।

पिछले 13 नवम्बर को कोर्ट ने सभी पिटीशन पर खुली अदालत में सुनवाई करने का आदेश दिया था। लेकिन कोर्ट ने पिछले 28 सितम्बर के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।इसके पहले भी 14 नवम्बर को वकील मैथ्यु नेदुम्पारा ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच से कहा कि 28 सितम्बर के फैसले पर रोक लगाई जाए तब चीफ जस्टिस ने कहा कि आप 22 जनवरी 2019 तक इंतजार कीजिए। हम उसी दिन रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट के आदेश का पालन नहीं होने और उस आदेश के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर 49 रिव्यू पिटीशन दाखिल किए गए हैं।नेशनल अयप्पा डिवोटी एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि जो महिलाएं आयु पर प्रतिबंध लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आईं थीं वे अयप्पा भक्त नहीं हैं। ये फैसला लाखों अयप्पा भक्तों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करते हैं और इस फैसले को वापिस लिया जाना चाहिए।

नैयर सर्विस सोसायटी की ओर से केवी मोहन द्वारा दायर रिव्यू पिटीशन में कहा गया है कि संविधान पीठ का 28 सितम्बर का फैसला सही नहीं है। याचिका में कहा गया है कि न तो कोर्ट और न ही विधायिका एक धर्म या अभ्यास या पंरपरा या विश्वास को सुधार सकती है। याचिका में कहा गया है कि यंग लॉयर्स एसोसिएशन केवल एक तीसरा पक्ष है।कंशियस ऑफ वुमन की याचिका में कहा गया है कि सबरीमाला देवता के भक्त कोई अलग नहीं हैं। याचिका में कहा गया है कि किसी भी धार्मिक विश्वास या प्रथाओं को चुनौती देने के लिए ये फैसला "दरवाजा खोलता" है।

पिछले 28 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं के साथ काफी समय से भेदभाव होता रहा है। महिला पुरुष से कमतर नहीं है। एक तरफ हम महिलाओं को देवी स्वरूप मानते हैं दूसरी तरफ हम उनसे भेदभाव करते हैं। कोर्ट ने कहा था कि बायोलॉजिकल और फिजियोलॉजिकल वजहों से महिलाओं के धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता को खत्म नहीं किया जा सकता है। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा समेत चार जजों ने कहा था कि ये संविधान की धारा 25 के तहत मिले अधिकारों के विरुद्ध है।

जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने बाकी चार जजों के फैसले से अलग फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा था कि धार्मिक आस्था के मामले में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा था कि पूजा में कोर्ट का दखल ठीक नहीं है। मंदिर ही यह तय करे कि पूजा का तरीका क्या होगा। मंदिर के अधिकार का सम्मान होना चाहिए। उन्होंने कहा था कि धार्मिक प्रथाओं को समानता के अधिकार के आधार पर पूरी तरह से परखा नहीं जा सकता है। यह पूजा करनेवालों पर निर्भर करता है न कि कोर्ट यह तय करे कि किसी के धर्म की प्रक्रिया क्या होगी। जस्टिस मल्होत्रा ने कहा था कि इस फैसले का असर दूसरे मंदिरों पर भी पड़ेगा।

Updated : 24 Nov 2018 6:50 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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