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यहां भाजपा को मात देने कांग्रेस बहाती रही पसीना

यहां भाजपा को मात देने कांग्रेस बहाती रही पसीना
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कई लोकसभा सीटें ऐसी जहां, अब तक नसीब नहीं हुई कांग्रेस को जीत

भोपाल/सुमित शर्मा। लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में 25 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा करने वाली कांग्रेस को अब तक कई सीटों पर जीत का स्वाद भी नहीं मिला है। मध्यप्रदेश की कई लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर वर्ष 1991 के बाद से निरंतर भाजपा का ही कब्जा रहा है। अब भाजपा के कब्जे वाली इन सीटों पर जीतने के लिए कांग्रेस कई तरह के दांव-पेच आजमा रही है। कुछ सीटें ऐसी हैं, जिन पर भाजपा के अलावा कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज कराई है। इसी तरह गुना संसदीय सीट ऐसी हैं, जहां पर अब तक सिंधिया राजघराने का ही कब्जा रहा है। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही जीत दर्ज कराई है।

मुरैना


वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के बारेलाल जाटव ने भाजपा के छविराम अर्गल को 16745 वोटों से पराजित किया था। इसके बाद से कांग्रेस यहां पर जीत दर्ज नहीं करा सकी है। बाद में वर्ष 1996, वर्ष 1998, वर्ष 1999 और वर्ष 2004 में यहां से भाजपा के अशोक अर्गल ने जीत दर्ज की। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर यहां से जीते थे और वर्ष 2014 के आम चुनाव में यहां से अनूप मिश्रा ने कांग्रेस के डॉ. गोविंद सिंह को हराया था।

भिंड


वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक 7 लोकसभा चुनाव हुए हैं, लेकिन भिंड सीट पर हमेशा से भाजपा का कब्जा रहा है। यहां से कांंग्रेस का एक भी उम्मीदवार अब तक जीत दर्ज नहीं करा सका है। 1991 में योगानंद सरस्वती और वर्ष 1996, 1998, 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में यहां से डॉ. रामलखन सिंह ने जीत दर्ज की। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां से अशोक अर्गल ने चुनाव जीता और वर्ष 2014 में भागीरथ प्रसाद यहां से सांसद चुने गए।

ग्वालियर


ग्वालियर संसदीय सीट पर भाजपा-कांग्रेस दोनों ही अब तक जीतते रहे हैं। वर्ष 1991, वर्ष 1996 और वर्ष 1998 के चुनाव में माधवराव सिंधिया ने जीत दर्ज कराई। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में जयभान सिंह पवैया जीते। इसके बाद 2004 में कांग्रेस ने भाजपा से यह सीट छीन ली। यहां से कांग्रेस के रामसेवक सिंह बाबूजी जीते, लेकिन 2007 में हुए लोकसभा के उपचुनाव में फिर से सीट भाजपा के कब्जे में आ गई। यहां से यशोधराराजे सिंधिया ने जीत दर्ज कराई। इसके बाद वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भी यशोधराराजे सिंधिया ही विजयी रही। वर्ष 2014 में ग्वालियर से नरेंद्र सिंह तोमर ने चुनाव जीता।

गुना


गुना संसदीय सीट पर हमेशा से सिंधिया राजघराने का कब्जा रहा है। वर्ष 1991, वर्ष 1996 और वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में यहां से विजयाराजे सिंधिया ने जीत दर्ज कराई। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में माधवराव सिंधिया ने भाजपा से यह सीट छीन ली। इसके बाद से यहां पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ही जीतते आए हैं। अब भाजपा इस सीट पर जीत दर्ज कराने की तैयारी में है।

सागर


सागर लोकसभा सीट पर भी कांग्रेस जीतने के लिए लालायित है। यहां पर वर्ष 1991 के आम चुनाव में कांग्रेस के आनंद अहिरवार ने भाजपा के रामप्रसाद अहिरवार को करीब 9348 वोटों से पराजित किया था, लेकिन इसके बाद से अब तक यहां पर कांग्रेस जीत नहीं पाई है। इसके बाद वर्ष 1996, वर्ष 1998, वर्ष 1999 और वर्ष 2004 में यहां से वीरेंद्र कुमार ने जीत दर्ज कराई। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से भूपेंद्र सिंह को मैदान में उतारा। भूपेंद्र सिंह ने कांग्रेस के असलम शेर खां को करीब एक लाख 31 हजार से अधिक मतों से पराजित किया। इसके बाद वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भी यहां से भाजपा के लक्ष्मीनारायण यादव ने चुनाव जीता।

टीकमगढ़


टीकमगढ़ लोकसभा सीट वर्ष 2009 के आम चुनाव में अस्सित्व में आई। यहां से भाजपा ने वीरेंद्र कुमार को चुनाव मैदान में उतारा। उन्होंने कांग्रेस के वीरेंद्र अहिरवार को 41 हजार से अधिक मतों से हराया। इसके बाद वे वर्ष 2014 में भी विजयी हुई। इस बार कांग्रेस ने यहां से कमलेश वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा था।

दमोह


वर्ष 1991 से लेकर वर्ष 2014 तक दमोह से भाजपा ने ही जीत दर्ज कराई है। वर्ष 1991, वर्ष 1996, वर्ष 1998 और वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में यहां से रामकृष्ण कुसमरिया सांसद चुने गए। 2004 में चंद्रभान सिंह ने चुनाव जीता। उन्होंने कांग्रेस के तिलक सिंह लोधी को करीब 95 हजार मतों से पराजित किया। इसके बाद वर्ष 2009 के आम चुनाव में भाजपा के शिवराज सिंह लोधी और वर्ष 2014 में प्रहलाद पटेल सांसद बने। भाजपा ने इस बार भी प्रहलाद पटेल को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है।

खजुराहो


खजुराहो सीट पर भी अधिकतर समय भाजपा का ही कब्जा रहा है। यहां से वर्ष 1999 में एक बार ही कांग्रेस के सत्यव्रत चतुर्वेदी ने जीत दर्ज कराई है। उन्होंने भाजपा के अखंड प्रताप सिंह को करीब 81 हजार से अधिक मतों से पराजित किया था। इसके अलावा यहां से भाजपा ही जीतती रही है।

सतना


सतना सीट पर भाजपा, कांग्रेस के अलावा बसपा ने भी जीत दर्ज कराई है। हालांकि यहां पर अधिकतर समय भाजपा का ही कब्जा रहा है। वर्ष 1991 के आम चुनाव में यहां से कांग्रेस के अर्जुन सिंह ने चुनाव जीता था। इसके बाद वर्ष 1996 में बसपा के सुखलाल कुशवाह ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली। उसके बाद वर्ष 1998 में भाजपा के रामानंद सिंह ने यह सीट बसपा से छीनकर भाजपा की छोली में डाली दी। अब तक यहां से भाजपा के सांसद ही जीतते रहे हैं। इस बार भी भाजपा ने गणेश सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित किया है।

रीवा


रीवा संसदीय सीट पर भी चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय रहा है। यहां पर भाजपा, कांग्रेस के अलावा बसपा के उम्मीदवार भी जीतते रहे हैं। वर्ष 1991 के आम चुनाव में रीवा संसदीय सीट से बसपा के भीमसिंह पटेल ने चुनाव जीता था। वर्ष 1996 के चुनाव में भी बसपा के बुद्धसेन पटेल जीते। वर्ष 1998 में भाजपा के चिंतामणि त्रिपाठी ने बसपा से यह सीट छीन ली। इसके बाद वर्ष 1999 में कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी यहां से सांसद चुने गए। हालांकि वर्ष 2004 के आम चुनाव में फिर से भाजपा के उम्मीदवार चंद्रमणि त्रिपाठी ने यह सीट भाजपा की झोली में डाल दी। वर्ष 2009 में फिर यहां से बसपा उम्मीदवार देवराजसिंह पटेल जीते, लेकिन वर्ष वर्ष 2014 के आम चुनाव में रीवा सीट भाजपा के पास आ गई। यहां से जर्नादन मिश्रा ने कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी को मात दी। निरंतर...

Updated : 4 April 2019 11:39 AM GMT
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Naveen Savita

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