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अयोध्या मामले पर 29 अक्टूबर से शुरू होगी सुनवाई

अयोध्या मामले पर 29 अक्टूबर से शुरू होगी सुनवाई
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नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 29 अक्टूबर से सुनवाई शुरू होगी। दो जज भूमि विवाद का मामला बड़ी बेंच को सौंपे जाने के पक्ष में नहीं।

सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा था कि 1526 से जब 1992 में ढांचा गिराया गया तो वहां मस्जिद थी । क्या वहां मंदिर था? हिंदुओं को वहां पूजा का अधिकार दिया गया। धवन ने कहा कि संविधान की धारा 15 और 25 का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि पूरे संविधान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की बात कही गई है।

13 जुलाई को सुनवाई के दौरान यूपी शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड ने मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा न मानने वाले इस्माइल फारुकी फैसले को पुनर्विचार के लिए संविधान बेंच को भेजने का विरोध किया था । शिया वक़्फ़ बोर्ड के वकील ने कहा था कि अयोध्या की मस्जिद सुन्नी वक़्फ़ नहीं है बल्कि शिया वक़्फ़ संपत्ति है। मस्जिद का निर्माण मीर बकी ने कराया था, जो कि शिया था।

शिया वक्फ बोर्ड की ओर से वकील एसएन सिंह ने कहा था कि हाईकोर्ट के आदेश से मुसलमानों को मिला एक तिहाई हिस्सा यूपी शिया सेन्ट्रल वक़्फ़ बोर्ड का है और वे शांति और भाईचारे को ध्यान मे रखते हुए अपना एक तिहाई हिस्सा मंदिर के लिए हिन्दुओं को देते हैं ।

राजीव धवन ने इस्माइल फारुखी केस के अंश को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग की थी । उन्होंने कहा कि मस्ज़िद भले ही गिरा दी गयी है, लेकिन इबादत का अधिकार बरकरार है। धवन ने कहा था कि जैसे बामियान बुद्ध की मूर्ति को तालिबान ने गिराया, वैसे ही बाबरी मस्ज़िद को हिंदू तालिबान ने गिराया । धवन ने कहा था कि जिन्होंने मस्जिद गिराई, उन्हें इस पर अधिकार दावा करने से रोक देना चाहिए।

राजीव धवन ने कहा था कि यूपी सरकार या केंद्र किसी पक्ष के समर्थन में दलील नहीं रख सकते। दोनों अपने वैधानिक दायित्व से बंधे हैं। धवन ने कहा था कि शिया वक्फ बोर्ड का ये कहना कि वो मुस्लिमों का हिस्सा राम मंदिर के लिए देना चाहते हैं, ये एक बेतुकी बात है। उन्होंने कहा था कि उन्हें अपनी दलील रखने के लिए एक घंटे का वक्त और चाहिए।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि वह पाएगा कि फारूकी केस में मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं मानने के कोई विस्तृत कारण नहीं दिए गए हैं तो मामला बड़ी बेंच को रेफर किया जा सकता है ।

राजीव धवन ने इस्लाम मे मस्ज़िद की अहमियत पर दलीलें रखते हुए कहा था कि मस्ज़िद में शुक्रवार को नमाज के लिए इकट्ठा होना इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा वैसे ही है, जैसे ईसाई रविवार को चर्च में प्रार्थना के लिए जमा होते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की पीठ के समक्ष मुस्लिम पक्ष विरोध कर रहा है कि फारूकी केस में यह गलत कहा गया है कि मस्जिद इस्लाम का हिस्सा नहीं हैं और नमाज़ कहीं भी, यहां तक कि खुले मैदान में भी पढ़ी जा सकती है.। सुनवाई के दौरान जस्टिस अशोक भूषण ने कहा था कि यह ठीक है कि मस्जिद इस्लाम का हिस्सा है लेकिन क्या नमाज़ मस्जिद में ही पढ़ना इस्लाम का हिस्सा है।

सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से एएसजी तुषार मेहता ने कहा था कि अपीलें आठ साल से लंबित हैं और फारूकी केस 1994 का है लेकिन मुस्लिम पक्ष ने कभी आपत्ति नहीं की। जब मामले की अंतिम सुनवाई शुरू हुई तो देरी करने के लिए अचानक फारूकी केस उठा लिया। यूपी सरकार ने इस मुद्दे को खारिज करने की मांग की थी ।

सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष ने कहा था कि मस्जिद अल्लाह का घर नहीं होता। ब्रिटिश टाइम के फैसलों से लेकर इसमाइल फारूकी तक तमाम केसों में यह बताया जा चुका है कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट (फारूकी केस) को हर बार उसके लिए कारण देने की जरूरत नहीं है । हदीस में भी कहा गया है कि सामूहिक नमाज़ कहीं भी खुले में पढ़ी जा सकती है, इसके लिए मस्जिद आवश्यक नहीं है ।

Updated : 29 Sep 2018 1:32 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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