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संयुक्त राष्ट्र : चीन-पाक की कोशिश हुई नाकाम, अनुच्छेद 370 से इनका कोई लेना-देना नहीं

न्यू यॉर्क। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की जम्मू-कश्मीर पर मसले की मीटिंग के तुरंत बाद भारत ने पूरी दुनिया के सामने अपना रुख एक बार फिर साफ कर दिया है। भारत ने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाना भारत का आंतरिक मामला है और इससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय का कोई सरोकार नहीं है। यूएन में भारत के प्रतिनिधि अकबरुद्दीन ने मीडिया के सामने आकर भारत का मजबूती से पक्ष रखा। ताजे घटनाक्रम से बेफिक्र भारत ने कहा कि वह कश्मीर पर हुए तमाम अंतराष्ट्रीय समझौतों का सही तरीके से पालन कर रहा है।

अकबरुद्दीन ने कहा कि आज सुबह केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव ने सामान्य हालात के लिए कई उपायों की घोषणा की। आज अनौपचारिक चर्चा में सदस्य देशों ने इसकी सराहना की। कश्मीर में एहतियात के तौर पर कुछ उपाय किए गए थे, ताकि आतंकवादी गड़बड़ी ना कर सकतें। धीरे-धीरे सभी प्रतिबंध हटाएंगे। यह आतंरिक मामला है और इसका अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हम उन सभी समझौते पर कायम रहेंगे जो इन मुद्दों पर हमने किए हैं।

भारत के प्रतिनिधि ने प्रेस से बात करते हुए कहा कि एक देश जेहाद का इस्तेमाल कर रहा है और हिंसा भड़काई जा रही है। हिंसा किसी किसी मुद्दे का समाधान नहीं है। भारत पाकिस्तान या दुनिया के किसी भी मुद्दे का हल बातचीत ही है। भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 में समझौता हुआ और हम उस पर कायम हैं। हम उम्मीद करते हैं पाकिस्तान भी इस पर कायम रहेगा। भारत और पाकिस्तान के बीच कब बातचीत होगी? इस सवाल के जवाब में अकबरुद्दी ने कहा कि आतंकवाद रोकने पर ही बातचीत होगी।

बाद में एक भारतीय न्यूज चैनल से बातचीत में अबरूद्दीन ने कहा कि जैसे क्रिकेटर कभी नहीं कहते हैं कि ड्रेसिंग रूम में क्या हुआ है? वैसे ही डिप्लोमैट नहीं बताते हैं कि बंद दरवाजे में क्या बातचीत हुई। लेकिन दो देशों की जो कोशिश थी वह नाकाम हुई।

हालांकि, हर तरफ से मात खा चुका पाकिस्तान इस बात से ही उत्साहित है कि इस मुद्दे पर चर्चा तो हुई। पाकिस्तान को सिर्फ चीन का साथ मिला, जिसने दोनों देशों को एकतरफा कार्रवाई से बचने की अपील की। हॉन्ग-कॉन्ग में हजारों प्रदर्शकारियों पर दमनकारी कार्रवाई करने को लेकर दुनिया भर के देशों से आलोचना झेल रहे चीन ने कश्मीर में मानवाधिकारों को लेकर चिंता जाहिर की।

रूस ने कहा, 'हम दोस्त हैं और भारत-पाकिस्तान दोनों हमारे अच्छे पार्टनर्स हैं। हमारा कोई छुपा हुआ अजेंडा नहीं है। इसलिए उनके बीच सुलह और अच्छे रिश्ते के लिए इस्लामाबाद और नई दिल्ली के साथ खुले दिल से बात करते रहेंगे।'

इस चर्चा को लेकर पाकिस्तान बेहद उत्साहित और आशान्वित था तो भारत ने इसे बहुत तवज्जो नहीं दी। भारत की बेफिक्री का कारण यह है कि हाल के वर्षों में इस तरह की अनौपचारिक चर्चा का चलन बढ़ गया है जिनमें सुरक्षा परिषद के सदस्य बंद कमरे में बातचीत करते हैं और इनकी कोई जानकारी बाहर नहीं आती है। भारत के बेफिक्री के अन्य प्रमुख कारण रूस का चीन-पाकिस्तान के विरोध में मजबूती के साथ खड़ा होना और अमेरिका के साथ-साथ खुद संयुक्त राष्ट्र की इस मामले के प्रति खास दिलचस्पी का नहीं होना है।

यूएन हमेशा कश्मीर के मसले को नजरअंदाज करता रहा है। इस पर आखिरी अनौपचारिक मीटिंग 1971 में और आखिरी औपचारिक या फुल मीटिंग 1965 में हुई थी। इस तरह की बैठक में सिर्फ विचारों का आदान-प्रदान होता है। बातचीत का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है और ना ही कोई औपचारिक फैसला होता है।

हालांकि, पाकिस्तान यूएन सिक्यॉरिटी काउंसिल द्वारा इस मुद्दे को चर्चा के लिए सूचीबद्ध करने के बाद से ही बेहद उत्साहित था। पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने तो इसे पाकिस्तान की ऐतिहासिक उपलब्धि तक बता दिया। उनका कहना था कि यूएनएससी कश्मीर मुद्दे पर 40 साल बाद चर्चा करने को राजी हुआ है जो पाकिस्तान की ऐतिहासिक राजनयिक उपलब्धि है। जबकि सचाई यह है कि सिक्यॉरिटी काउंसिल के प्रेजिडेंट जोना रॉनेका मीटिंग में पाकिस्तानी प्रतिनिधि की मौजूदगी तक की इजाजत नहीं दी।

पाकिस्तान की गुहार पर चीन ने सिक्यॉरिटी काउंसिल के मौजूदा अध्यक्ष पोलैंड से पाकिस्तानी प्रतिनिधि की मौजूदगी में काउंसिल की औपचारिक मीटिंग की मांग की थी, लेकिन वह सदस्य देशों की सहमति नहीं जुटा पाया। इसलिए, चीन की पहल पर अब बंद कमरे में एक अनौपचारिक मीटिंग भर हुई।

Updated : 17 Aug 2019 12:57 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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