साधनों का उचित उपयोग करें: शर्मा
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-निज प्रतिनिधि-
गुना। कानून से नहीं, कर्तव्य बोध से पर्यावरण का सहज संरक्षण संभव है। कानून पालन का भाव कर्तव्य बोध से जागृत होता है। प्रत्येक नागरिक को प्रकृति प्रदत्त साधनों का अल्प एवं उचित उपयोग करना चाहिए। उक्त विचार पूर्व प्राचार्य डॉ सुरेश शर्मा ने 'पर्यावरण चेतना एवं साहित्य' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के समापन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि शासकीय कस्तूरबा कन्या महाविद्यालय में व्यक्त किए।
औषधीय पौधों का महत्व बताया
पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ नरेन्द्र शर्मा ने औषधीय पौधों का महत्व बताया। प्राध्यापक डॉ परमानंद मिश्र ने संस्कृत साहित्य में पर्यावरण चेतना को स्पष्ट किया।प्राचार्य डॉ जवाहरलाल द्विवेदी ने द्वितीय सत्र में पोलीथिन प्रदूषण निवारण हेतु प्रत्येक व्यक्ति के कृतसंकल्पित होने का भाव रखा एवं वृक्षों पर एक गीत प्रस्तुत किया। डॉ दुष्यंत शर्मा ने विद्यालयों एवं विद्यार्थियों में पर्यावरण चेतना जागृत करने की आवश्यकता पर बल दिया। तृतीय सत्र में डॉ भांगे चन्द्रकांत बंसीधर ने परम्पराओं में निहित पर्यावरण चेतना पर प्रकाश डाला।
साहित्यकार समय के साथ जागरुक बने : चतुर्वेदी
डॉ पदमा शर्मा ने कहानी साहित्य में पर्यावरण चेतना के विषय में व्याख्यान दिया तो डॉ कुसुम बजाज, डॉ माया परस्ते, मनोज भिरोरिया आदि ने पर्यावरण संरक्षण हेतु नवीन साहित्य सृजन एवं स्वयं के प्रयास पर बल दिया। संचालन डॉ शिवकुमार शर्मा एवं डॉ. ऊषा जैन ने किया। सम्पूर्ण सत्रों को एक सृजन में पिरोते हुए समन्वयक एवं संयोजन डॉ सतीश चतुर्वेदी ने कहा- जब एक साहित्यकार स्वयं मिट जाता है तो समाज उन्नत हो जाता है और जब एक साहित्य स्वयं को बना लेता तो समाज मिट जाता है। अत: साहित्यकार का समय के साथ जागरूक रहना बहुत जरूरी है। प्रसिद्ध समीक्षक डॉ पुनीत विसारिया एवं पर्यावरण विद्वान डॉ ऋषि कुमार सक्सेना ने विविध शोध पत्रों पर समीक्षात्मक टिप्पाणी प्रस्तुत की। इससे पहले डॉ विनीता विजयवर्गीय ने अतिथियों का स्वागत किया।
Naveen Savita
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