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यात्रा-वृत्तांत : दिल्ली में खोया, मॉरीशस में मिला

यात्रा-वृत्तांत : दिल्ली में खोया, मॉरीशस में मिला
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यू.जी.सी के सौजन्य से अनेक बार अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में पेपर प्रस्तुति के लिए जाना हुआ है, मारीशस भी। इस बार विश्व हिंदी सम्मेलन में मारीशस जाना हुआ। मारीशस खूबसूरत देश है, पर मेरे लिए इसलिए ज्यादा खूबसूरत है और वहां जाने का मन करता है क्योंकि मेरा प्रिय शिष्य डॉ कृष्ण कुमार झा वहां है। कृष्ण अपने घर ठहराना चाह रहा था, पर उसका घर समुद्र से थोड़ा दूर था और मैं समुद्र के किनारे ही ठहरना चाहती थी। इसलिए कृष्ण ने मॉरीशस के सबसे खूबसूरत बीच में से एक फ्लिक.एन.फ्लेक के पास एक विला किराये पर ले लिया। सुबह-शाम समुद्र की खूबसूरती का आनंद उठाते।

फ्लिक एन फ्लेक मॉरिशस के सर्वाधिक खूबसूरत तटों में माना जाता है यहाँ पर डॉ. झा ने एक पूरा विला हमारे लिए बुक करा दिया था। चूँकि कांन्फ्रेंस का उद्घाटन एक दिन बाद था तो हम लोगों ने एक पूरा दिन घूमने का कार्यक्रम बनाया। डॉ. झा की पत्नी प्रभा झा ने टैक्सी बुक करने में हमारी काफी मदद की। कार चालक उमेश भारतीय मूल का ही निकला। हम लोग उमेश के दिशा निर्देशन में निकल पड़े मॉरीशस की सड़कों पर। मॉरीशस में कहीं भी किसी भी सड़क पर निकलो थोड़ी देर में लहलहाते गन्ने की फसल से सामना न हो, ऐसा संभव नहीं है। गन्ना मॉरीशस की मुख्य फसल है जोकि वहां के 70 प्रतिशत जोती हुई भूमि पर बोई जाती है। सबसे पहले हम गंगा तालाब गए जिसका हिन्दुओं के लिए अत्यंत महत्व है। हाल ही में देवी दुर्गा जी और महादेव की विशालकाय मूर्तियों की स्थापना से इसका आकर्षण और बढ़ गया है। कहते हैं कि शिवरात्रि के दिन लाखों लोगों की भीड़ यहाँ कांवड़ लेकर आती है।

मॉरीशस चारों ओर से समुद्र से घिरा हुआ द्वीपों का देश है। बड़ी बड़ी मूंगे की चट्टानों ने मानो मॉरीशस के चारों ओर समुद्र के भीतर दीवार सी खड़ी कर रखी है जिसके चलते मॉरीशस के समुद्र तट बहुत दूर तक उथले हैं, खतरनाक नहीं हैं। कोरल चट्टानें बड़ी बड़ी लहरों को बाहर ही तोड़ देती हैं। इसलिए मॉरीशस के समुद्र तट सामान्य पर्यटकों के लिए सुरक्षित माने जाते हैं। मॉरीशस में देखने लायक जगहों में गंगा तालाब, चाय-कॉफ़ी के बागान, नेशनल पार्क एसप्त वर्णीय मिटटी का स्थान शामिल है। मॉरीशस बोटैनिकल गार्डन राजधानी पोर्ट लुईस के पास स्थित है। लगभग 37 हेक्टेयर में फैले इस गार्डन का खास आकर्षण का केन्द्र है विशाल वाटर.लिली, और 85 प्रकार के पाम वृक्ष। दक्षिण-पश्चिमी मॉरीशस में स्थित ब्लैक रिवर नेशनल पार्क भी सैलानियों को लुभाता है पर सबसे अद्भुत रहा दृशामरेल पार्क।

शमरेल पार्क में सात रंगों की जमीन अपने आप में पूरी दुनिया का इकलौता अजूबा है जहाँ लाल, भूरा, बैंगनी, हरा, नीला, जामुनी और पीला रंग वहां की धरती पर दिखाई देता है। दरअसल इन विभिन्न रंगों का कारण ज्वालामुखी रहा जिसके ताप के कारण धरती अलग अलग रंग लेती चली गई।

मॉरीशस के दो स्थान विश्व धरोहर में स्थान रखते है, वे हैं। अप्रवासी घाट और ले.मौर्न पहाड़। अप्रवासी घाट जहाँ पहली बार गिरमिटिया मजदूरों का बेड़ा उतरा था। ले.मौर्न पहाड़ गवाह है गुलामों की पीड़ा का जहाँ उन पर दागी जाने वाली गोलियों के निशान आज भी मौजूद हंै।

पोर्ट लुइस में स्थित सिटाडेल फोर्ट एडीलेड ब्रिटिश और फ्रेंच संघर्ष का गवाह है, जिसे बंदरगाह की रक्षा हेतु बनवाया गया था। किले से पोर्ट लुईस का विहंगम दृश्य दिखाई पड़ता है। यानी कुल मिलाकर हमने मॉरीशस को प्रतिनिधित्व रूप में देख लिया था। इतनी सारी यात्रा हमारे सारथी उमेश ने एक साथ करा दी थी। विश्व सम्मेलन में हमारे साथ में लिम्का बुक ऑफ़ रिकाडर््स के सुरेश कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ नीलम लौ और अंजुरी पत्रिका के सम्पादक बीके शर्मा शिरकत करने आये थे।

सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में भारत की माननीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ मारीशस के प्रधानमंत्री और तमाम मंत्री, नौकरशाह मौजूद थे। उद्घाटन सत्र के बाद खाना खाने का समय हुआ। मेरी आँखें अचानक एक चेहरे पर जाकर रुक गयीं, चेहरा जाना पहचाना सा लगा। अरे रे...ये तो ली है विश्वास नहीं हुआ! एक स्वाभाविक सी बात है कि जो चीज जहाँ खोयी होती है, वह वहीं मिलती है पर यह सिद्धांत चलनशील प्राणियों पर लागू नहीं होता है। जहाँ खोया होता है वहाँ तो वह नहीं ही मिलता है अगर मिलता हैं तो वहाँ, जहाँ उम्मीद नहीं होती है । बस ऐसा ही हुआ । बीस साल के बाद शायद उससे भी ज्यादा समय हो गया जब ली को पिछली बार देखा था। मैं चुपचाप उसके पास जाकर खड़ी हो गयी वह सिर झुकाए खाने में व्यस्त था। उसके साथ इटली, जापान, चीन के विद्वान भी बैठे खा रहे थे। वे सब मुझे ली के पास खड़ा देख कर मुस्कुराने लगे पर ली तो खाने में ही व्यस्त था। अब आस-पास के लोग हंसने लगे उन सब लोगों की हंसी सुनकर ली ने सिर उठाकर उन्हें देखा, फिर मेरी ओर नजऱ गयी...मुंह की ओर जाता उसका हाथ रुक गया ... नजऱें मुझ पर टिक गयी फिर जोर से अपनी कोरियाई भाषा में कुछ चिल्लाया ... शायद उसका मतलब था ...ओह माय गोड ! आसपास के तमाम लोग चौंक गए । ली एकदम खड़ा हो गया और चहकते हुए कहा- अरे तुम ....मैं बिना जवाब दिए मुस्कुराती रही...हाँ ये ली ही था। दक्षिण कोरिया के हंग्कुक शहर से दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हिंदू कॉलेज में हिंदी पढऩे आया था। अब वह हांग्कुक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है ।

एक के बाद एक आती स्मृतियों के वेग को परे झटक कर ली से मैंने पूछा कि भारत कब आना होगा तो उसने कहा कि 3-4 महीने में ही जल्दी ही गुरूजी और माताजी से मिलना है।

मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी! ऐसा लगा कि अब उसका ग्लानि भाव समाप्त हो गया है और वह जल्दी ही अपने हिंदुस्तान अपनी दिल्ली और अपने घर में वापिस आएगा! अपनी मॉरीशस यात्रा तो कृष्ण और ली से मिलने के कारण सार्थक हो गयी थी! जहाँ तक हिंदी के सम्मान की बात है अपन के तो सपने भी हिंदी में और अपने भी हिंदी में!


-डॉ स्मिता मिश्र, खालसा कॉलेज, दिल्ली में प्रोफेसर हैं




Updated : 19 Jan 2019 3:13 PM GMT
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