राम मंदिर के साक्ष्य तलाशने वाले प्रख्यात पुरातत्वविद् पद्मश्री केके मोहम्मद से "स्वदेश" की खास बातचीत
प्रदीप भटनागर
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माहौल सकारात्मक बन जाता, तो मंदिर विवाद 4 दशक पहले सुलझ जाता
भोपाल/प्रदीप भटनागर। अयोध्या जमीन विवाद में सर्वोच्च न्यायालय के अहम फैसले में अगर किसी की भूमिका सबसे अहम रही तो वह हैं, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी (एएसआई) की तरफ से मंदिर के साक्ष्य तलाशने वाले केके मोहम्मद की रिपोर्ट को सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य दस्तावेज माना और सदियों पुराने विवाद का खात्मा किया। चंबल घाटी में बटेश्वर मंदिर का पुरातत्विक सर्वेक्षण के मसले में भोपाल आए केके मोहम्मद से "स्वदेश" ने खास चर्चा की। जिन्होंने राम मंदिर के मसले में अपनी यात्रा और उससे जुड़े कई अनसुने पहलुओं पर खुलकर चर्चा की। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश -
वामपंथी इतिहासकार विवाद सुलझाने में रोड़ा बने
पुरातत्विक जांच पड़ताल के लिहाज से देखा जाए, तो मैं अयोध्या मसले से लगभग चार दशक पहले 1967 में जुड़ गया था। इस दौरान मुझे प्रोफेसर बी.बी. लाल के अधीनस्थ काम करने का मौका मिला, जो अयोध्या में मंदिर मस्जिद को लेकर जांच कर रहे थे। आप यकीन नहीं करेंगे कि उसी वक्त भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को मस्जिद के नीचे राम मंदिर के साक्ष्य मिल गए थे। लेकिन उस समय वामपंथी इतिहासकारों का वैचारिक तौर पर खासा दबदबा था और वह लगातार हमारे काम में अड़ंगा लगा रहे थे, यही नहीं बल्कि हमारी जांच रिपोर्ट का मजाक भी बनाया जाता था। उस वक्त प्रोफेसर बी.बी. लाल ने खुलकर इस बात को रखने की कोशिश भी की, लेकिन वह सफल नहीं हो सके अगर उस वक्त माहौल थोड़ा सकारात्मक बन जाता, तो मंदिर विवाद 4 दशक पहले भी सुलझ सकता था।
मुस्लिम होने के कारण काफी परेशानी हुई
अयोध्या विवाद पूरी तरह साम्प्रदायिक रंग में रंगा हुआ था, जिसमें एक पक्ष हिंदू थे तो दूसरे मुस्लिम। चूंकि मुस्लिम होने के बावजूद मैं साक्ष्यों के मुताबिक अयोध्या में राम मंदिर की पैरवी कर रहा था। ऐसे में मेरे समुदाय का बड़ा हिस्सा मेरे खिलाफ खड़ा हो गया। मेरे एक एक बयान पर काफी बवाल हुआ। आप शायद ही यकीन करें, कि इस मामले में मुझे समाज के साथ परिवार का भी विरोध झेलना पड़ा। कभी-कभी तो मुझे यह भी लगता, कि यह सारी परेशानियां मेरे मुस्लिम होने के कारण हैं अगर मैं हिंदू होता, तो शायद मुझे इतनी चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता। लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद मैं अड़ा रहा, यही कारण है कि आज ये परिवर्तन आपके सामने है।
इतने बेहतर फैसले की उम्मीद नहीं थी।
इस पूरे मामले में हमारी टीम की रिपोर्ट एक बार सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गई थी। इसकी सत्यता परखने के लिए फिर से की गई जांच टीम का हमें हिस्सा नहीं बनाया गया। जो टीम फिर से जांच कर रही थी, उसमें चार मुस्लिम सदस्य शामिल किए गए थे और उसे जानने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला सुनाया, वह मेरे लिए उम्मीद से कहीं बेहतर था। मुझे इस बात की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी, कि सिर्फ पुरातत्विक तौर पर साबित होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय इतना अच्छा और बड़ा फैसला सुना सकता है। जो बात हम और हमारी टीम पिछले चार दशकों से लगातार कहती आ रही थी और जिसके लिए हमनें कई परेशानियां झेलीं, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद हमारी तमाम कोशिशों को बेहतरीन परिणाम मिल गया।
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