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माओवादियों का घातक षड्यंत्र

माओवादियों का घातक षड्यंत्र
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दिव्य उत्कर्ष (लेखक आईसीएफएआई यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक हैं)

माओवादियों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश की बात देश को गंभीर चिंता में डालने वाली बात है। पहले भी पहले भी मोदी की हत्या की कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन अभी तक ऐसी कोशिशों में इस्लामी आतंकवादियों का ही नाम आता रहा है। गुजरात में मुठभेड़ में मारी गई इसरत जहां और उसके साथियों के लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े होने के सबूत मिल चुके हैं और यह भी स्पष्ट हो चुका है कि वे नरेंद्र मोदी की हत्या करने के इरादे से ही गुजरात पहुंचे थे।

उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और कहा गया था कि गुजरात दंगों का बदला लने के लिए लश्कर-ए-तैयबा ने उनकी हत्या की साजिश रची थी। परंतु अब बात आगे बढ़कर माओवादियों तक पहुंच गई है। भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार माओवादी रोना विल्सन के घर से जो पत्र बरामद हुआ है, उसके मुताबिक माओवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी राजीव गांधी की तरह ही निशाना बनाने का योजना बना रहे थे।
यह एक तथ्य है कि जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है, तब से ही माओवादियों का असर कम हो रहा है और सुरक्षाबलों की सुनियोजित कार्रवाई की वजह से उनका प्रभाव क्षेत्र भी घटा है। सच्चाई यह है कि कभी बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में भी सक्रिय रहे नक्सली अब झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश के बहुत छोटे से इलाके में सिमट कर रह गए हैं। सरकार का तो यह भी दावा है की चार साल पहले तक 135 जिलों में प्रभावी रहे नक्सली अब 90 जिलों तक सिमट गए हैं। इन 90 जिलों में भी सिर्फ 10 जिले ही ऐसे हैं, जहां नक्सलियों का आतंक काफी अधिक है। शेष स्थानों पर नक्सली छिटपुट हिंसा भले ही कर लें, लेकिन उनका कोई बहुत अधिक प्रभाव नहीं है।
परोक्ष रूप से इस बात का जिक्र रोना विल्सन के घर से बरामद पत्र में भी किया गया है। इसमें कहा गया है के मोदी के नेतृत्व में फासीवादी ताकतें आगे बढ़ती जा रही हैं। .... अगर यह सब जारी रहा तो पार्टी को बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। पत्र में कहा गया है कि कामरेड प्रकाश व कुछ अन्य वरिष्ठ कामरेडों ने मोदी राज खत्म करने के लिए कदम उठाने का प्रस्ताव रखा है। हम राजीव गांधी की तर्ज पर कुछ करने की सोच रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो यह आत्मघाती हमले जैसा लगेगा। संभव है कि हमें सफलता नहीं मिले, लेकिन पोलित ब्यूरो व केंद्रीय समिति को प्रस्ताव पर विचार करना चाहिए।
इस पत्र में कही गई बातों को स्पष्ट रूप से एक बड़ी चेतावनी समझा जाना चाहिए। एक ओर तो देश में माओवादी नक्सलियों का प्रभाव घटता जा रहा है। पिछले दो वर्षों में कई बड़े नक्सली नेता या तो मारे गए हैं या फिर गिरफ्तार हो गये हैं। दूसरी ओर वे प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचकर देश को दहलाने का षड्यंत्र कर रहे हैं। विडंबना तो यह है कि अभी इस पत्र की सत्यता की जांच ही चल रही है, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां इस पत्र को लेकर हाय-तौबा मचाने में जुट गई हैं। जांच के पहले ही कांग्रेस और सीपीएम ने इस पत्र को मोदी सरकार का एजेंडा घोषित कर दिया है।
यह एक जाना हुआ तथ्य है कि देश में बुद्धिजीवियों में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जो नक्सलियों के प्रति सहानुभूति की भावना रखता है। यही कारण है कि जब छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों पर भारी हमला होता है, तो जेएनयू कैंपस में बुद्धिजीवियों का एक वर्ग जश्न मनाता है। ये लोग नक्सलियों का खुलकर बौद्धिक समर्थन करते हैं। दुख की बात तो ये है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की वजह से कांग्रेस भी पिछले चार वर्षों से ऐसे गुटों का खुलकर समर्थन कर रही है। शिक्षण संस्थानों में हाफ माओइस्ट लोगों का प्रभाव बनाने की कोशिश चल रही है। पिछले चार वर्षों के दौरान इन लोगों का बीजेपी विरोधी दलों ने खुलकर नैतिक समर्थन किया है। ये लोग नक्सलियों का समर्थन करते हैं।
भारत में माओवादी नक्सलियों की गतिविधियां मानवता विरोधी रही हैं। नक्सली आंदोलन में अपराधी तत्वों का जमावड़ा हो चुका है। ऐसे समय में प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश का खुलासा होना चिंता की बात है। नक्सली देश के कई बड़े नेताओं को अपना निशाना बना चुके हैं। कुछ साल पहले ही नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के सुकमा में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के काफिले पर हमला कर कांग्रेस के कई बड़े नेताओं की हत्या कर दी थी। ऐसे में अगर कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश के खुलासे को राजनीतिक शिगूफा कह रही है, तो इसे उसका मतिभ्रम ही कहना चाहिए। वहीं यदि नक्सली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रोड शो के दौरान निशाना बनाने की कोशिश करने की बात कह रहे हैं तो इसकी गंभीरता का एहसास किया जा सकता है।
नक्सली मानवता के दुश्मन हैं। अभी तक नक्सली हिंसा में भारी संख्या में सुरक्षाबलों के जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। मानवता के दुश्मन इन नक्सलियों का उसी तरह संहार किया जाना चाहिए, जिस तरह श्रीलंका में लिट्टे का सफाया किया गया। ये लोग न केवल देश के दुश्मन हैं, बल्कि मानवता के भी अपराधी हैं। अभी प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का खुलासा होने से नक्सली चर्चा में जरूर आ गये हैं, लेकिन धरातल पर देखा जाये तो अभी भी छत्तीसगढ़ के कई गांवों में नक्सलियों की मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं खड़कता। इस बात की कई बार रिपोर्ट आ चुकी है कि नक्सली गांव से जबरन युवाओं का अपहरण कर उन्हें जबरन अपने ग्रुप में शामिल कर लेते हैं। महिला नक्सलियों के यौन शोषण की भी कई खबरें आ चुकी हैं। कहने का मतलब ये कि नक्सलियों का माओवाद के सिद्धांत से कोई नाता नहीं रह गया है, ये सिर्फ और सिर्फ अपराधियों का एक जमावड़ा है, जो राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लगा हुआ है। इनका समूल सफाया करके ही नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास का काम किया जा सकता है।
जहां तक बात नरेंद्र मोदी की है, तो मोदी उन नेताओं में से हैं जिन्होंने राष्ट्रकार्य के लिए अपने परिवार तक को छोड़ दिया। ऐसे लोग मौत से नहीं डरते, लेकिन देश के प्रधानमंत्री की रक्षा करना देश के हर नागरिक का कर्तव्य है। मोदी विरोधियों को भी यह समझ लेना चाहिए की नक्सली या आतंकवादी अगर आज मोदी को निशाना बनाना चाहते हैं, तो ऐसा नहीं है कि वे मोदी को निशाना बनाकर चुप बैठ जायेंगे। वे मौका मिलने पर हर उस व्यक्ति को निशाना बनायेंगे, जो उनके आड़े आयेगा। कांग्रेस समेत सभी मोदी विरोधियों को समझ लेना चाहिए कि नक्सलवादी किसी व्यक्ति या किसी खास पार्टी के विरोधी नहीं हैं, वे लोकतंत्र के विरोधी हैं, वे संविधान के विरोधी हैं, वे देश के विरोधी हैं और ऐसे खतरनाक तत्वों का अगर कोई राजनीतिक दल समर्थन करता है तो उसे भी राष्ट्रविरोधी ही समझा जाना चाहिए। नक्सलियों का सिर्फ एक ही इलाज है- उनका सफाया और यही होना चाहिए।

Updated : 16 Jun 2018 2:15 PM GMT
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