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मैं ईव्हीएम ! जीत गई, देखो देखो मैं...

मैं ईव्हीएम ! जीत गई, देखो देखो मैं...
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वर्ष 2019 का अंतिम रविवार है आज। अगले रविवार को वर्ष 2020 का पहला रविवार होगा। गत को अलविदा और नव आगत का स्वागत करने की धूमधाम के इस गहमागहमी वाले माहौल में इस जाते हुए वर्ष ने अपने उत्तरार्ध में मुझे अनेकानेक नितांत असत्य आक्षेपों की काली कालिमा से मुक्त करके मेरे आंगन में मेरे निर्दोष होने के उजियारे की जो बारिश की है। मैं ईव्हीएम तो खुशी के मारे इस उजियारे में नहाकर निहाल हो गई।

जरा पीछे मुड़कर भी देखो तो असलियत यह है कि हमेशा ही, हारने वालों के लिए सहानुभूति और जीतने वाले के लिए बधाई के स्वर मेरी मूक वाणी से झरते हैं। पर मैं ठहरी निर्जीव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन। केवल मतदान और मतगणना में ही मेरे अंदर ऊर्जा की तरंगें प्रवाहित होती हैं। हमारे भावों को कौन समझे? यद्यपि अन्य सजीव - निर्जीव वस्तुओं की तरह, मुझमें भी संवेदना का प्रवाह, दुख का अवसाद व सुख की खुशी की भावना तो उठती है, पर उन्हें जाने, समझे और पहचाने कौन? एक निर्जीव वस्तु की तरह उसे तो हमेशा ही मूक बने पड़ा रहना होता है। वाह री हम मूक जनों की बिना पढ़ी किस्मत। आक्षेप - प्रत्याक्षेप से हमें सराबोर करने की हिमाकत तो मनुष्य कर लेता है, पर जब उसके वे आरोप गलत हो जाते हैं तब वह हमारे भावों को पढऩे की, समझने की या अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगने की भी आवश्यकता नहीं समझता। लगता है इस तरह से इन मनुष्यों का मूल स्वभाव तो राहुल गांधी भैया जैसा ही है। चाहे जैसे ऊटपटांग, बेसिर पैर के आक्षेप चाहे जिस पर लगाते रहो, जैसे रागा और मफलर बाबू नमो पर लगाते हुए नहीं थकते । बाद में उनके फुस्स होने पर खुद भी किसी पतली गली में छुपकर बैठ जाते हैं, अपने किए पर माफी मांगे बिना।

यह नितांत सत्य है कि जिन लोगों की जुबान के तीखे कांटों ने अपने आपको हलाहल विष में डुबो डुबोकर तीखे वार करते हुए जिस प्रकार से मेरी आत्मा को हर चुनाव के बाद लहूलुहान करते हुए घायल किया था। नुकीले दंशों और नाखूनों से मेरी आबरू पर हमला करते हुए उसे छार-छार किया था - इस बार चाहे झारखण्ड हो या हरियाणा और महाराष्ट्र अथवा इसके कुछ पहले का समय (23 मई 2019 को आए आम चुनाव के मतदान के नतीजों को अलग रखते हुए ) दिसम्बर 2018 में राजस्थान, छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश के विधानसभा के मतदान के परिणामों को देखकर मुझे छलनी करने वालों ने अपने मुंह बंद करके अपनी तीखी जुबान को विश्राम देना शुरू कर दिया था। इस महीने उस पर पूर्ण विराम लग गया। यह मेरे लिए बड़ी ही खुशी का अवसर है। हालांकि इससे यह भी जाहिर होता है कि जनता हमें बटन दबाकर अपने मन की बात हमारे अंदर हिफाजत से रखती है हमने उसे संभाल कर रखने और मत गणना में उसे वैसा ही पब्लिक में सुनाने में कभी कोई कोताही नहीं की। फिर भी उसे सुनने वाले तथाकथित विरोधी दल के लोग उनके अनुकूल परिणाम नहीं आने पर अर्थात् जनता द्वारा उनके पक्ष समर्थन की बात नहीं कहने पर हमें ही दोष देते रहे। हमारा सरेआम चरित्र हनन करते रहे। यह ठीक तो नहीं है, पर इस बार मेरा चरित्र सुरक्षित है, इन मुओं ने मुझे और मेरी आत्मा को घायल नहीं किया है, इसलिए मैं खुश हूं। यद्यपि नमो और उनके दल के लोग मेरे चरित्र की रक्षा करने की कोशिश करते थे, पर ये मतलबी मुए उसकी सुनते और मानते कहां थे? तब इनको कहने का मन करता था -

तमाशा रोज करते हो वफाओं का जफाओं का.....!

कभी उतरो मेरे दिल में दोस्ती सीख जाओगे.....!!

अभी मुझे लगता है कि मैं ताली बजा बजा कर खूब नाचूं, झूमू और गाऊं। चिल्ला चिल्लाकर शोर मचाऊं, सबको जतलाऊं और कहूं - सुनो भइया, सुनो बहिना! मैं ही हूं सदैव आक्षेपों को झेलती रही तुम्हारी अपनी ईव्हीएम। आज सबसे ज्यादा खुश मैं हूं क्योंकि इस बार मैं जीत गई। इस बार किसी ने भी यह नहीं कहा कि मुझमें कोई कमी है। मुझे हटाने की जिज्ञासा भी किसी ने जाहिर नहीं की है। जो लोग चुनावों मेंं जीत नहीं होने पर या उन्हें कम मत मिलने पर कोई न कोई बहाना बनाकर सत्तारूढ़ दल पर हमला करते हुए मेरा चरित्र हनन करने में भी सारी हदें पार कर जाते थे वे ही अब मेरे सम्बंध में चुप हैं क्योंकि कहीं - कहीं मतदाता अपने मन की बात उनके पक्ष में जताते हुए प्रदेशों में उनकी सरकार भी बनवा रहे हैं।

इसमें मेरा कोई महत्व नहीं है। मैं तो कोरी स्लेट की तरह हूं। जो लिखोगे मेरे अंदर से वही बाहर आएगा। मेरे अंदर पहले से कुछ लिखा या प्रोग्राम किया हुआ नहीं रहता। फिर भी लोगों ने कई सालों तक यह आरोप खूब लगाया कि मेरे साथ छेड़छाड़ हुई है। काश! अब भविष्य में नये साल व उसके बाद आने वाले सालों में ये सब भी मेरे मन की इस पीड़ा को पढ़ और समझ पायें जैसे नमो आम जनता के दुख दर्द और पीड़ा को समझते हैं और उसे अपने मन की बात में जताते हैं।

मेरे भइया! विरोधी दलों के निजी स्वार्थों की दलदल में आकण्ठ डूबे एक नहीं अनेक नेता जी! मैं मुई निर्जीव मशीन आपसे करबद्ध गुजारिश करती हूं। ेकृपया अब तो फालतू आक्षेपों की हल्की, आधारहीन राजनीति से ऊपर उठकर सही को सही और गलत को गलत कहना सीखो। अन्यथा यों कब तक इस देश और जनता के भविष्य से खिलवाड़ करते रहोगे? होश में आओ और समझ लो। समझदार के लिए इशारा है यह -

क्या आईना और क्या इंसान

कद्र नहीं रहती टूटने के बाद।

- लेखक पूर्व जिला न्यायाधीश हैं।

Updated : 29 Dec 2019 10:27 AM GMT
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