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कौन भेजता भारत में अरबों डॉलर!

कौन भेजता भारत में अरबों डॉलर!
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चालू वर्ष के दौरान विदेश में बसे प्रवासी भारतीयों ने दिल खोलकर भारतवर्ष के विभिन्न कोनों में रकम भेजी। इन्होंने 80 बिलियन डॉलर अपने देश में भेजा। वर्ल्ड बैंक की एक ताजा रिपोर्ट से यह जानकारी मिली है। पिछले साल यह रकम 69 बिलियन डॉलर ही थी। मतलब दुनिया के कोने-कोने में बसे प्रवासी भारतीय अपनी मातृभूमि पर दोनों हाथों से धन की वर्षा कर रहे हैं। आप कह सकते हैं कि देश से बाहर अपनी जिंदगी को संवारने गए ये लाखों भारतीय अब देश की किस्मत को भी बदलने में लग गये हैं।

सबसे अधिक गौर करने लायक तथ्य ये है कि इनसे ज्यादा रकम किसी भी अन्य देश के प्रवासियों ने अपने देश में नहीं भेजी। हालांकि पड़ोसी चीन के प्रवासियों की संख्या हमारे प्रवासी नागरिकों से कहीं अधिक हैं, पर हमने बाहर से प्राप्त रकम के मामले में उसे पछाड़ दिया। चीन को 2017 में 64 बिलियन डॉलर रकम ही प्राप्त हुए थे। भारत को 69 बिलियन डॉलर मिले। यह अंतर अच्छा-खासा रहा। पिछले वर्ष भारत और चीन के बाद तीसरे स्थान पर फिलिपींस रहा। उसे इसी रास्ते से 31 बिलियन डॉलर मिले। मतलब साफ है कि भारत और चीन की तुलना में तीसरे स्थान पर रहा मुल्क भी काफी पीछे रह गया, जबकि फिलिपींस की आयाएं और नर्सें तो विश्व के हर कोने में ही मिल जायेंगी। इसलिए शेष देशों को बाहर से मिली रकम की तो चर्चा करना गैर-जरूरी है।

अब बड़ा सवाल यह उठता है कि किन देशों में बसे भारतीयों ने इतना पैसा स्वदेश भेजा? क्या अमेरिका में बसे आईटी पेशेवरों या मोटी कमाई करने वाले डॉक्टरों ने? क्या भारत को यूरोप में बसे भारतीय मालामाल कर रहे हैं? दूसरे और तीसरे सवालों के जवाब नकारात्मक में ही रहे। दरअसल भारत को मोटी रकम मिल रही है मुख्य रूप से खाड़ी के देशों में बसे लाखों सामान्य कामगार भारतीयों से। अगर बात हम खाड़ी के देशों की करें तो इसमें शामिल हैं बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात। इन सभी देशों में मेहनत-मशक्कत करने वाले भारतीय छोटी-मोटी नौकरियां करने से लेकर अब बड़े कारोबारी भी बन गए हैं। इनमें आपको उत्तर प्रदेश और बिहार के दूर-दराज क्षेत्रों से संबंध रखने वाले बड़ी संख्या में बढ़ई, प्लम्बर और इलेक्ट्रीशियन से लेकर केरल की मलयाली नर्सें और नौजवान मिल जाएंगे। आप कभी भी दुबई या बहरीन एयरपोर्ट में कुछ देर के लिए खड़े हो जाइए। आपको लगेगा ही नहीं कि आप भारत के किसी कोने में खड़े नहीं हैं। पर तस्वीर का दूसरा पक्ष तो आपको निराश कर देता है।

दरअसल खाड़ी देशों और कुछ अफ्रीकी देशों में नौकरी करने के लिए गए भारतीयों को उधर पोषणयुक्त आहार की कमी, खराब मौसम, रहने के लिए पर्याप्त जगह का अभाव वगैरह के कारण खासी तकलीफों में जीवन-यापन करना पड़ता है। फिर भी ये ही भारतीय अपने परिवार को जमकर रकम भेज रहे हैं। परन्तु, यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि इन प्रवासी भारतीयों को उस तरह से क्रेडिट नहीं मिल पाता है, जितना अमेरिका और यूरोप में रहने वाले सफेदपोश भारतीयों को मिल जाता है। कुछ समय पहले खाड़ी देशों में रह रहे मलयालियों ने केरल में बाढ़ से तबाह अपने राज्य के लिए दिल खोलकर धन तो भेजा ही था, अन्य तरह से भी सहयोग दिया था।

दुर्भाग्य का विषय ये है कि खाड़ी के देशों में बसे हुए हमारे लाखों कुशल-अकुशल श्रमिकों को वतन से हजारों मील दूर कठोर परिस्तिथियों में काम करना पड़ता है। इनमें से बहुतों को संयुक्त अरब अमीरत या बाकी खाड़ी के देशों में न्यूनतम मजदूरी और दूसरी सुविधाएं तक भी नहीं मिलतीं। ये ही स्थिति वहां रहने वाले कारोबारियों की भी है। दिल्ली के एक सफल कारोबारी ने लगभग पांच साल पहले दुबई के पास एक वाटर पार्क स्थापित किया था। उसे वहां के समस्त नियमों-कानूनों का पालत करते हुए ही स्थापित किया गया। वहां की सरकार ने दिल्ली के कारोबारी को अपना वाटर पार्क स्थापित करने का निमंत्रण भी दिया था। जब वहां पर सब कुछ सही से चलने लगा, तो कारोबारी के बुरे दिन भी चालू हो गए। उसे वहां की स्थानीय पुलिस ने उसके सीईओ के साथ गिरफ्तार कर लिया। उन पर फर्जी आरोप लगाए गए। वे आरोप कभी सिद्ध भी नहीं हुए। अंत में भारतीय दूतावास के सघन प्रयासों से ही वह कारोबारी और उनका सीईओ जेल की सलाखों से निकला। उन दोनों को कई महीनों तक जेल के भीतर भी पैरों में लोहे की सलाखें डालकर रखा गया था। जरा सोच लीजिए कि क्या भारत में कभी भी किसी विदेशी निवेशक के साथ इस तरह का अमानवीय व्यवहार हो सकता है? भारत अपने यहां निवेश करने वालों को सिर-माथे पर बिठाता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यूएई की यात्रा कर चुके हैं। उनकी यात्रा के बाद वहां हमारे श्रमिकों की सेवा शर्तें कुछ सुधरी जरूर हैं। लेकिन, अभी भी बहुत कुछ बाकी है। सरकार को सतत प्रयास करते रहना होगा, ताकि खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीय सम्मान के साथ नौकरी कर सकें। ये अधिकतर अपने परिवारों से दूर ही रहते हैं। मतलब यह कि इनके परिवार अपने गांवों-शहरों में ही रहते हैं। इनके घरों को तो इनकी पत्नियां और माता-पिता ही देखते हैं।

यह भी याद रख लेना चाहिए कि खाड़ी में काम करने वाले लाखों भारतीय उन कनाडा और यूरोप में बसे प्रवासी भारतीयों जैसे नहीं हैं, जो भारत में किसी लड़की से शादी करके भाग जाते हैं। उसके बाद उनका पता तक नहीं चलता। खाड़ी वाले प्रवासी भारतीय तो साल-दो साल में भारत आते-जाते भी रहते हैं और अपने गांव-घर से जुड़े रहते हैं। इनमें से ज्यादातर रिटायरमेंट के बाद अपने गांव वापस आकर ही बसना चाहते हैं। निश्चित रूप से सरकार इन भारतीयों से मिलने वाली रकम का गरीबी उन्मूलन और बाकी विकास योजनाओं के लिए भी इस्तेमाल करती है। इनसे प्राप्त हो रही रकम से देश के विदेशी मुद्रा का भंडार भी हमेशा लबालब भरा ही रहता है। सरकार को इनके हितों को प्राथमिकता के आधार पर हल करने की चेष्टा करना चाहिए। इन पर लंबे समय तक सरकारों की नजरें नहीं गईं। सरकार का दायित्व है कि वे संसार में फैले लगभग ढाई करोड़ भारतीय प्रवासियों के मसलों को गंभीरतापूर्वक देखे और हल करे। ये सभी हमारे देश के वास्तविक ब्रांड एंबेसेडर हैं। देश की इनसे सिर्फ पैसा लेने भर की अपेक्षा नहीं होनी चाहिए। देखने में आता है कि प्रवासी भारतीय सम्मेलन के दौरान मंत्री और सरकारी अफसर प्रवासी भारतीयों से भारत में निवेश करने का ही आग्रह करते रहते हैं। ये 'ज्ञानचंद' इस तथ्य की सिरे से अनदेखी करते रहते हैं कि बहुत से देशों में बसे प्रवासी भारतीयों की माली हालत कोई बहुत ठोस नहीं है। मॉरीशस, फीजी, सूरीनाम, युगांडा, केन्या, तंजानिया वगैरह में बसे भारतीय आर्थिक रूप से कमजोर ही हैं।

बहरहाल, यह तो सुखद है कि भारत से बाहर गए या बाहर बसे भारतीय तबीयत से स्वदेश को डॉलर की सप्लाई कर रहे हैं। यह इस बात का संकेत और संदेश है कि इन्हें भारत में अपने किए निवेश के बेहतर रिटर्न का भरोसा है। (हि.स.)

(लेखक राज्यसभा सदस्य व बहुभाषी न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार के अध्यक्ष हैं)

Updated : 17 Dec 2018 12:02 PM GMT
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आर. के. सिन्हा

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