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मौत का खेल दिखा करते हैं वो मनोरंजन

मौत का खेल दिखा करते हैं वो मनोरंजन
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ग्वालियर। मौत एक ऐसा शब्द हैं जिसे सुनते ही हर इंसान के डर के कारण रोंगटे खडे हो जाते हैं। उसी मौत से सम्बंधित मेले में लगने वाले मौत के कुंए का खेल ऐसा हैं जो सालो से होता आ रहा हैं। अचरजता हैरत से भरे इस खेल के दर्शक भी मौत के इस खेल को उसी उत्सुकता और हैरानी के साथ इसे देखने आते है। मौत का यह खेल हमेशा से सभी का ध्यान अपनी और खींचता आया हैं यहीं कारण हैं की समय के साथ इसके दर्शको की संख्या में बढोतरी होती चली गई हैं। जान को जोखिम में डालकर इस खेल में करतब दिखने वाले कलाकार जब लकड़ी से बने तख्तो पर तेज कार और बाइक चलाते हैं तब इस खेल के दर्शक बीना ताली बजाने से खुद को नहीं रोक पाते।

मेले में प्रत्येक वर्ष की तरह ही इस साल भी लकड़ी के पट्टो से बना हुआ एक गोल घेरा तैयार किया गया हैं। जिसमें नौजवान कलाकार अपनी बाइक और कार दौड़ा रहे हैं। देखने में सामान्य से लगने वाले इस खेल में हर पल रहता हैं मौत का खतरा। मौत का ऐसा ही खेल दिखाने वाले एक कलाकार फरमान फ़ैज़ी ने बताया की वह इस मेले में लगातार चौथी बार आया हैं। वह पिछ्ले सात सालो से मेलो में यह स्टंट कर रहा हैं।

उसने बताया की दर्शको के लिए बने स्टेण्ड के पूरा भर जाने के बाद मौत के कुएं में स्टंट मेनो की एंट्री होती है। जोकि हेलमेट लगाकर बाइक को स्टार्ट कर धीरे धीरे जमीन पर चलती हुई बाइक को कुएं की दीवारों पर ले जाते हैं। एक बार जब बाइक कुँए में ऊपर की और पहुँच जाती हैं उसके बाद वह स्टंट मेन कई बार हाथ छोड़ देता हैं और उसी समय कारें भी नीचे से स्टार्ट होकर ऊपर चली जाती हैं। उनकी टीम में कुल आठ ड्राइवर 4 बाईक चलाते हैं और बाकि 4 कार चलाते हैं। मौत के इस खेल के प्रतिदिन 8 से 10 शो होते हैं। प्रत्येक शो में दो लोग कार और दो लोग बाइक चलते हैं।

एक दिन के मिलते हैं 500 रूपए

जान को हथेली पर रखकर मौत का खेल दिखाकर लोगो का मनोरंजन करने वाले इन कलाकारों को प्रतिदिन 500 रूपए मिलते हैं। फरमान ने बताया की वह और उसके ज़्यदातर साथी मूल रूप से लखनऊ के रहने वाले हैं। उसने बताया की वह और उसके साथी मूल रूप से लखनऊ के रहने वाले जो साल में करीब एक महीने ही मुश्किल से घर जा पाते हैं। कई बार काम ज्यादा होने या मेले ख़तम न होने की वजह से वह घर नहीं जा पाते ऐसी स्थिति में ज्यादातर घर वाले ही उनसे मिलने आते रहते हैं। वह और उसके साथी साल में करीब दस से ग्यारह महीने मेलो में ही मौत का खेल दिखाते रहते हैं। मेलो में दिखाए जाने वाले मौत के इस हैरत अंगेज खेल से करीब पांच से छह लाख रूपए की प्रति मेले से आय होती हैं।

मौत के इस हैरान कर देने वाले खेल के पीछे हैं विज्ञान और नियमित अभ्यास

मौत के कुँए का जो खेल लोगो को सोचने पर मजबूर कर देता हैं की आखिर कैसे कोई बाइक या कार खड़ी दीवारों पर इतनी आसानी से चल पा रहीं हैं, इसके पीछे ड्रायवरो को दिया गया प्रशिक्षण और विज्ञान का सिद्धांत काम करता हैं।

जिस प्रकार गिलास या किसी बाउल में हम कोई सिक्का या छोटी बाल को दाल कर घुमाने पर कुछ देर बाद वह उसकी दीवारों पर घूमने लगता हैं ठीक उसी प्रकार मौत के कुँए में बाइक और कार दीवारों पर घूमने लगती हैं। इसके पीछे वास्तविकता में बहुत से बल काम करते हैं। इसमें पहला बल तो पृथ्वी अपने गुरुत्वाकर्षण का बल लगाती हैं जोकि अपने बल से गाड़ी को नीचे खींचती हैं। इसी के विपरीत विरोध में घर्षण बल लगता है, जिसकी वजह से गाडी आगे की और बढ़ती हैं। इन दो बलो के साथ साथ दो अन्य बल भी काम करते हैं। जिसमे पहला बल बाइक व कार द्वारा कुँए की दिवार पर लगाया जाता हैं एवं इसके विरोध में दिवार कुँए के केंद्र की और बल लगाती हैं।

यदि इस खेल के बीच कोई भी बल काम हो जाए अथवा स्पीड एकदम से किसी कारण से कम हो जाये गाड़ी के रुकने पर हादसे की सम्भावना बनी रहती हैं।

Updated : 3 Feb 2020 8:31 AM GMT
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Prashant Parihar

पत्रकार प्रशांत सिंह राष्ट्रीय - राज्य की खबरों की छोटी-बड़ी हलचलों पर लगातार निगाह रखने का प्रभार संभालने के साथ ही ट्रेंडिंग विषयों को भी बखूभी कवर करते हैं। राजनीतिक हलचलों पर पैनी निगाह रखने वाले प्रशांत विभिन्न विषयों पर रिपोर्टें भी तैयार करते हैं। वैसे तो बॉलीवुड से जुड़े विषयों पर उनकी विशेष रुचि है लेकिन राजनीतिक और अपराध से जुड़ी खबरों को कवर करना उन्हें पसंद है।  


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