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कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू के लिए विश्वसनीयता का संकट

कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू के लिए विश्वसनीयता का संकट
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कहते हैं कि एक झूठ छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। आगे चलकर एक-एक कर सभी झूठ की पोल खुल जाती है। कई बार बड़बोलेपन की वजह से भी लोग अपने ही जाल में फंसते चले जाते हैं। कुछ यही हाल पंजाब सरकार के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू का हो गया है। वह अपनी ही कही बात को लेकर इतनी बुरी तरह से फंस गए हैं कि अब उन्हें बार-बार सफाई देनी पड़ रही है और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तब जाकर गुहार लगानी पड़ रही है, ताकि उनकी विश्वसनीयता बच सके।

पूरा मामला पाकिस्तान से जुड़ा हुआ है। वहां हुए चुनाव के बाद नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने शपथ ग्रहण समारोह के मौके पर नवजोत सिंह सिद्धू को भी बुलावा भेजा था। इमरान ने सिद्धू के अलावा सुनील गावस्कर और कपिल देव को भी आमंत्रित किया था। कपिल और गावस्कर तो वहां नहीं गए, सिद्धू ने तुरंत केंद्र सरकार से वहां जाने की अनुमति मांगी और शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल हुए। यहां तक तो कुछ भी गलत नहीं था। विवाद तब शुरू हुआ जब सिद्धू पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा को देखते ही उनके गले लगा गए। पाकिस्तान की सेना भारत में जारी आतंकवाद के लिए जिम्मेदार मानी जाती है। पाकिस्तानी सेना कई बार घुसपैठ कर भारतीय सीमा में गश्त कर रहे भारतीय सैनिकों पर जानलेवा हमला कर चुकी है। पाकिस्तानी सेना प्रमुख बार-बार भारत को आंखें दिखाते रहते हैं। इसके बावजूद सिद्धू ने पूरी गर्मजोशी के साथ उनसे गले मिले।

यह बात अधिकांश भारतीयों को पसंद नहीं। खुद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी सिद्धू के इस बर्ताव की खुलकर आलोचना की। ऐसे में सिद्धू ने अपने बचाव में दावा किया की जनरल बाजवा ने उन्हें कहा था कि वे भारतीय सिखों के लिए करतारपुर साहिब जाने के लिए कॉरिडोर खुलवाने जा रहे हैं। यह बात उनके लिए इतनी भावनात्मक थी कि वह बाजवा से लिपट गए। लेकिन सिद्धू के ऐसा दावा करते ही पाकिस्तान सरकार ने भी तुरंत स्पष्टीकरण जारी किया कि एक घटना से इस बात का फैसला नहीं हो सकता है। इसकी एक लंबी प्रक्रिया है और दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद ही इस पर फैसला हो सकता है।

साफ है कि पाकिस्तान सरकार ने सिद्धू के झूठ की पोल खोल दी। लेकिन सिद्धू इसके बाद भी नहीं माने और बार-बार बयान देते रहे कि पाकिस्तान सरकार ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने का फैसला ले लिया है। अब भारत को आगे बढ़कर पहल करनी चाहिए। वे अपनी बात पर दबाव बनाने के लिए सुषमा स्वराज से भी मिलने पहुंच गए और उनसे भी करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने के लिए बातचीत की। मुलाकात के तुरंत बाद उन्होंने मीडिया से भी बातचीत की और कहा कि 'भारत सरकार का फर्ज बनता है कि वह नानक का नाम लेने वाले 10 करोड़ भक्तों के लिए पाकिस्तान से बात करे। मैंने सुषमा जी से बात की है तो उन्होंने कहा है कि मैं ड्राफ्ट बनवा रही हूं और चिट्ठी लिखूंगी।' सिद्धू का कहना था उन्हें भारत सरकार से पॉजिटिव प्रतिक्रिया की उम्मीद है।

सिद्धू के कहने का आशय यह था कि भारत सरकार को पाकिस्तान से आग्रह करना चाहिए कि वो करतारपुर साहिब कॉरिडोर भारतीय सिख भक्तों के लिए खोल दे। लेकिन सच्चाई तो यह है कि पाकिस्तान ने इस विषय में अभी तक भारत सरकार को ऐसी कोई भी जानकारी नहीं दी है कि वह करतारपुर साहिब कॉरिडोर को खोलने जा रहा है। ऐसे भी 1947 का प्रोटोकॉल पहले से ही है कि श्रद्धालुओं को तीर्थ के लिए आने-जाने दिया जाएगा। अभी तक पाकिस्तान खुद इस प्रोटोकॉल का बार-बार उल्लंघन करता रहा है। अगर इस प्रोटोकॉल का पालन हो तो करतारपुर साहिब कॉरिडोर के लिए अलग से कोई बात करने की जरूरत ही नहीं है।

केंद्र सरकार में मंत्री हरसिमरत कौर ने खुद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से बात करने के बाद मीडिया को इस बात की जानकारी दी। इसी बात से जाहिर है कि नवजोत सिंह सिद्धू अपने पहले झूठ को छुपाने के लिए एक के बाद एक झूठे दावे करते जा रहे हैं, क्योंकि करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने के लिए अलग से कोई बातचीत करने की जरूरत ही नहीं है। सिर्फ 1947 के प्रोटोकॉल में कही बातों को ही पाकिस्तान मान ले तो भारतीय सिख भक्तों को वहां जाने में कोई परेशानी नहीं होगी। अगर एक बार इस प्रोटोकॉल की बात न भी कही जाए तो भी करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने के लिए पाकिस्तान को भारत सरकार से बात करनी चाहिए, न कि भारत के किसी एक राज्य के मंत्री से, जो पाकिस्तान में वहां के नए प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में उस प्रधानमंत्री के दोस्त की हैसियत से गया हो। सिद्धू इमरान के दोस्त के रूप में पाकिस्तान गए थे, भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नहीं। ऐसे में यह बात समझ से परे है कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने उन्हें यह प्रस्ताव कैसे दे दिया।

ऐसे भी इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने का फैसला पाकिस्तान की सरकार को करना है, वहां के सेना प्रमुख को नहीं। जिस दिन पाकिस्तानी सेना प्रमुख से यह बात करने का दावा सिद्धू कर रहे हैं, उस दिन तो सरकार ने शपथ ही ली थी। शपथ लेने के पहले ही वहां की सरकार ऐसा कोई प्रस्ताव भला कैसे तैयार कर सकती है। जाहिर है कि सिद्धू सिर्फ अपनी गलती छिपाने के लिए करतारपुर साहिब कॉरिडोर की बात कर रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में जिस तरह से सिद्धू पाकिस्तानी सेना प्रमुख के गले लगे, वह देश के शहीदों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा ही है। क्योंकि सिद्धू ने उस व्यक्ति के साथ गले मिलने की हड़बड़ी दिखाई, जिसे सीमा पर भारतीय सैनिकों की हत्या के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

इसलिए मौजूदा हालात में जरूरी ये है कि सिद्धू अभी भी अपनी गलती को समझें और देश से जनरल बाजवा के गले लगने के लिए माफी मांगें। हालांकि सिद्धू की जैसी फितरत है, उसमें इस बात की उम्मीद कम ही है कि वे अपनी गलती स्वीकार करेंगे या देश से माफी मांगेंगे। खुद उनकी पार्टी को भी अब करतारपुर साहिब कॉरिडोर के नाम पर राजनीतिक फायदा नजर आने लगा है और अब कांग्रेस भी सिद्धू का ही साथ दे रही है। यह समझना जरूरी है कि करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने का मामला दो ही तरीके से हल हो सकता है। या तो पाकिस्तान 1947 के प्रोटोकॉल का पालन करे या फिर इस संबंध में भारत से बातचीत करने का प्रस्ताव दे। इसलिए सिद्धू को अब और आगे झूठी सफाई देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

- लेखक: दिव्य उत्कर्ष, आईसीएफएआई यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक हैं

Updated : 24 Sep 2018 3:51 PM GMT
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