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नवरात्रि का पंचम दिवस : कैकेयी साहस, शौर्य और सुंदरता की त्रिवेणी

महिमा तारे

नवरात्रि का पंचम दिवस : कैकेयी साहस, शौर्य और सुंदरता की त्रिवेणी
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राजा दशरथ की तीन प्रमुख रानियों में से एक हैं कैकेयी। राजा दशरथ की तीन रानियों में कैकेयी का क्रम तीसरा हे। पर वह पति की सबसे प्रिय पत्नी है ऐसा वाल्मीकि जी ने बार-बार उल्लेखित किया है। भरत उनके पुत्र हैं जो खीर के चतुष भाग के आधे से प्रकट हुए। इस तरह कैकेयी ने सत्यपराक्रमी भरत को जन्म दिया। कैकेयी का नाम आते ही हमारे मन में जो प्रतिबिम्ब उभरता है वह एक ऐसी स्त्री का होता है जो अभिमानी, क्रोधी, स्वार्थी और सत्तालोलुप है। पर ये वही कैकेयी है जिसके पास बुद्धि-प्रतिभा, साहस, शौर्य और सुंदरता जैसे अप्रतिम गुण थे। उनके शौर्य का हम सब को पता है कैसे देवासुर संग्राम के समय राजा दशरथ के रथ का वे सफल संचालन करती है और जब रथ का पहिया अपनी धुरी से निकलने वाला होता है तो वे कील के स्थान पर अपनी उंगली डाल देती है और दूसरे हाथ से घोड़ों की लगाम पकड़ती है। विजयी दशरथ होते हैं। इस पर राजा दशरथ कहते हैं कि आप सारथी के साथ-साथ रथ की धुरी भी स्वयं बन गई। यदि आप ऐसा न करती तो विजय पराजय में बदल चुकी होती। मैं बहुत प्रसन्न हूं और आप कोई भी दो वरदान मांग लें। उस वक्त कैकेयी कोई वर नहीं मांगती और दोनों वर को भविष्य के लिए सुरक्षित रख लेती है पर वाल्मीकि रामायण में इस तरह के उनके पराक्रम को अपेक्षाकृत नहीं बताया है। वे कहते हैं जब देवासुर संग्राम के दौरान दशरथ बहुत अधिक घायल हो गए थे तब युद्धभूमि पर ही कैकेयी ने उनकी बहुत सेवा की। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर उन्होंने कैकेयी को दो वर मांगने को कहा था।

वाल्मीकि जी ने मानव स्वभाव का बहुत गहराईयों में जाकर अध्ययन किया है। मन की गहराईयों में क्या-क्या पड़ा है और वो कब और कैसे प्रकट होगा इसका उदाहरण कैकेयी है। जो कैकेयी राम को पुत्र भरत जैसा ही स्नेह करती थी। राज्यारोहण का समाचार सुनकर मंथरा को उपहार देने लगती है वहीं मंथरा के कान भरने पर राजा दशरथ द्वारा दिए गए वचनों को आधार बना कर राजा दशरथ को राम को 14 वर्ष के लिए वनवास और भरत को अयोध्या का राजसिंहासन देने के लिए बाध्य कर देती हे। यह कैकेयी के सकारात्मक तत्वों को उसके ही मन के नाकारात्मक तत्वों ने हरा दिया। कैकेयी को उदाहरण बना कर महाकवि मानव हृदय के इस सनातन संघर्ष को बड़ी बारीकी से दिखाया है।

वाल्मीकि रामायण में कैकेयी के चरित्र के तीन पहलू मिलते हैं। पहला प्रसन्नचित्त और प्रेमालु माता का रूप। दूसरा भरत को राज्य और राम को वनवास मांगते समय स्वार्थी और पुत्र मोहिता का रूप। तीसरा भरत के ननिहाल से आने पर जब उन्हें ज्ञात होता है कि उनकी मां के कारण यह सारा घटनाक्रम हुआ है तो वे अपनी ही मां को कुलकलंकिनी, पापिनी, दुष्ट, मतिभ्रष्ट, पति घातिनी जैसे शब्दों से संबोधित करते हैं। जिनको सुनकर कैकेयी हमेशा के लिए मौन हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि राम वनवास ऋषि वशिष्ठ की ही योजना थी जिसमें कैकेयी सहयोगी बनी। ऐसा है भी तो राम को मर्यादापुरूषोत्तम राम बनाने वाली कैकेयी ही थी। यही घटना रामायण का आधार बनी। कारण यह सच है कि आयोध्या में राम राम थे पर जब वन से लौटे तो मर्यादा पुरूषोत्तम बन गए। राम राज का आशय सिर्फ अयोध्या का राज ही नहीं है। आर्यावर्त को राक्षसी शक्तियों से मुक्त करने का लक्ष्य क्या राम वन गमन के बगैर संभव है? 'और इस विष को किसने पीयाÓ कैकेयी ने।

कैकेयी ने पति, पुत्र, जेठानियों, मंत्री, प्रजाजन सबसे ङ्क्षनंदा सही ये सिर्फ लोकहित के लिए। कैकेयी ने लोकहित के लिए लोकनिंदा सही तो ये भी तो कितना कष्टप्रद रहा होगा। उनकी उस मन:स्थिति का आंकलन करना कठिन है और यदि नकारात्मक भावों के प्रभावी होने पर यह सब किया तो अमर्यादित आकांक्षा परिवार का कैसे अहित कर सकती है कैसे किसी को व्यक्तिगत रूप से पतन के मार्ग में धकेल सकती है।

इस प्रसंग के बाद आज भी लोग कैकेयी को कपटी स्वार्थी कहकर उसकी निंदा करते हैं हजारों वर्ष हो जाने पर भी कोई अपनी पुत्री का नाम कैकेयी नहीं रखता। इस प्रसंग पूर्व और बाद प्रसंग में उसका चरित्र कैसा था इस पर ध्यान ही नहीं जाता। क्या हमें कैकेयी के उन दैवीय गुणों का स्मरण नहीं करना चाहिए।

Updated : 5 Oct 2019 2:47 PM GMT
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